INDIA पर प्रहार, मजबूत हुआ नारा '400 के पार'; BJP के लिए क्या-क्या लाए नीतीश कुमार
साल 2009 में हुए लोकसभा चुनाव भी भारतीय जनता पार्टी और जनता दल (यूनाइटेड) के लिए अच्छी खबर लाए थे। दोनों पार्टियों ने गठबंधन कर 37.97 फीसदी वोट शेयर के साथ 32 सीटें अपने नाम की थीं।
बीते साल जून में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पटना में 17 विपक्षी दलों के साथ बैठक की थी। मीटिंग और नए गठबंधन का मकसद भारतीय जनता पार्टी का मुकाबला करना था। हालांकि, कुछ महीनों बाद ही स्थिति बदली और नीतीश दोबारा भाजपा के साथ आ गए हैं। अब कहा जा रहा है कि भाजपा को आगामी लोकसभा चुनाव में इसका फायदा भी मिल सकता है।
क्या फायदा
आंकड़े बताते हैं कि जेडीयू को भी अकेले के बजाए गठबंधन में चुनावी मैदान में उतरने पर फायदा होता है। साल 2014 में बिहार की तीनों बड़ी पार्टियां राजद, जदयू और भाजपा ने अलग-अलग चुनाव लड़ा। नतीजे आए, तो जदयू नालंदा और पूर्णिया की दो सीटों तक सीमित रह गई और वोट शेयर 16.04 प्रतिशत रहा। जबकि, 2019 में एनडीए के साथ लड़ने पर जदयू को 16, भाजपा को 17 और एलजेपी के खाते में 6 सीटें आई थीं।
2019 का वोट शेयर बताता है कि 39 सीटें जीतने वाली एनडीए का वोट शेयर 54.40 फीसदी का था, जिसमें 22.3 फीसदी का योगदान जेडीयू से आया था। कहा जा रहा है कि अगर साल 2024 में महागठबंधन पर बढ़त हासिल करने के लिहाज से नीतीश का आना भाजपा के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है, क्योंकि पहले आरजेडी (महागठबंधन) के साथ पहुंचा 22.3 फीसदी वोट शेयर फिर एनडीए के खाते में जुड़ सकता है।
2009 लोकसभा चुनाव भी भाजपा और जदयू के लिए अच्छी खबर लाए थे। दोनों पार्टियों ने गठबंधन कर 37.97 फीसदी वोट शेयर के साथ 32 सीटें अपने नाम की थीं। तब जदयू 25 सीटों में से 20 पर जीती थी और 15 सीटों पर लड़ने वाली भाजपा को 12 सीटें मिली थीं।
विपक्षी 'INDIA' गठबंधन का विघटन निश्चित है: हिमंत
असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने बिहार में जदयू के महागठबंधन से नाता तोड़ने और राज्य में भाजपा के नेतृत्व वाले NDA में शामिल होने के राजनीतिक घटनाक्रम के बाद कहा कि 'INDIA' गठबंधन का 'विघटन' निश्चित है, क्योंकि इसका 'कोई वैचारिक आधार नहीं है।' उन्होंने सोशल मीडिया मंच 'एक्स' पर पोस्ट किया, 'इस 'इंडी' गठबंधन का विघटन अब निश्चित है। इस गठबंधन का कोई वैचारिक आधार नहीं है।'
'INDIA' गठबंधन को झटका
साल 2022 में बिहार में एनडीए से अलग होने के बाद ही नीतीश विपक्ष को एकजुट करने में लग गए थे। तत्कालीन डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के साथ उन्होंने दिल्ली समेत कई राज्यों के दौरे किए। वह सफल भी हुए और कई बड़े नेताओं को एक मंच पर ले आए। उन्होंने विपक्षी गठबंधन 'INDIA'
के कप्तान के तौर पर देखा जाने लगा था, लेकिन खबरें रहीं कि संयोजक के तौर पर उनके नाम पर सहमति नहीं बन सकी।
भाजपा में एंट्री की कहानी
जनवरी की शुरुआत में INDIA गठबंधन की बैठक में जब नीतीश कुमार को संयोजक नहीं बनाया गया, बल्कि कांग्रेस अध्यक्ष को आगे बढ़ाया गया तभी नीतीश कुमार ने पाला बदलने का मन बना लिया। नीतीश के बेहद नजदीकी नेता ने भाजपा नेताओं से संपर्क किया। वह पहले से ही इनसे संपर्क में रहे हैं और उनसे नजदीकियां भी रही हैं।
सूत्रों के अनुसार, भाजपा नेतृत्व को भी लगा कि यही समय है जब वह न केवल INDIA गठबंधन को छिन्न-भिन्न कर सकते हैं, बल्कि अपने इस बार 400 पार के लक्ष्य के तरफ भी मजबूती से बढ़ सकते हैं। भाजपा से संकेत पाने के बाद नीतीश कुमार ने धीरे-धीरे INDIA गठबंधन से दूरी बढ़ानी शुरू की।
इस बार के गठबंधन में भाजपा के अनुसार लिए जाएंगे फैसले
सूत्रों के मुताबिक, भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व ने इस बार नीतीश कुमार से गठबंधन करने से पहले सारी स्थितियों और हर मुद्दे पर स्पष्ट बात भी रखी। पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद ही कहा कि अब अगर नीतीश कुमार INDIA गठबंधन से अलग होते हैं तो वह उनके साथ गठबंधन करने को तैयार है। नीतीश की भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से भी बात कराई गई और दोनों के बीच भावी तालमेल का खाका भी तय किया गया।
जब सब कुछ तय हो गया तो भाजपा ने अपने राज्य के नेतृत्व को विश्वास में लेने का फैसला किया और बीते तीन-चार दिनों में सारी पटकथा को अंजाम दिया गया। भाजपा ने भी साफ कर दिया कि लोकसभा चुनाव तक नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री रहेंगे। उसके बाद की स्थितियों पर आगे विचार किया जाएगा।
सूत्रों के अनुसार, जद(यू) को यह भी साफ कर दिया गया कि लोकसभा में सीटों के बंटवारे में इस बार उसे भाजपा से कम सीटों पर चुनाव लड़ना होगा। इसके अलावा, बिहार के अलावा अन्य किसी राज्य में कोई समझौता नहीं होगा। साथ ही बिहार में भाजपा के अन्य सहयोगी दलों को मिलने वाली सीटों में भाजपा का फॉर्मूला ही माना जाएगा।
भाजपा की छवि
कहा जाता है कि बार-बार सियासी साथी बदलने के चलते नीतीश की छवि पर असर पड़ा है। दरअसल, भाजपा पर सरकार गिराने के आरोप विपक्षी दल लगाते रहते हैं। ऐसे में इस बार बिहार में हुए राजनीतिक घटनाक्रम में भाजपा के निशाने पर आने की संभावनाएं कम हैं। इसके अलावा संख्या बल के लिहाज से भी भाजपा बिहार में जदयू से आगे हैं और दो डिप्टी सीएम का फॉर्मूला लगाकर पार्टी ने पहले ही पकड़ मजबूत रखने के संकेत दे दिए हैं।