औरंगजेब ने विदिशा के जिस मंदिर को ढहाया था, उसके जैसी ही दिखती है नई संसद; खास है इतिहास
यहां मिले शिलालेख बताते हैं कि यह देवी चर्चिका का मंदिर था, जिसका निर्माण 12वीं-13वीं शताब्दी में हुआ था। कहा जाता है कि औरंगजेब ने मंदिर को तबाह करने के बाद उसी सामग्री से मस्जिद तैयार कराई थी।
1927 और 2023। ताजा सियासी कहानी में ये दो साल बेहद अहम हैं। पहला गवाह है देश की पहली संसद का। वहीं, दूसरा इतिहास में दर्ज होने के लिए तैयार है। रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के नए संसद भवन का उद्घाटन करने जा रहे हैं। हालांकि, यहां सांसदों का जमघट लगने में समय है, लेकिन देश की सियासत का हृदय स्थान अब गोलाकार से त्रिकोण होने वाला है और इसके सीधे तार मध्य प्रदेश के छोटे शहर विदिशा से जुड़ते हैं।
हाल ही में एक टीवी डिबेट के दौरान जब कांग्रेस के प्रवक्ता ने सवाल उठाए कि भारतीय जनता पार्टी ने एक विदेशी इमारत 'पेंटागन' की नकल कर इमारत तैयार कर दी है। इसका भाजपा प्रवक्ता प्रेमशंकर शुक्ला ने पलटवार किया और साफ किया नई संसद विदिशा स्थित विजय मंदिर की रेप्लिका है। बेहद घनी बस्ती में दूर से बमुश्किल नजर आने वाली इस इमारत का इतिहास खास है।
ध्वस्त मंदिर पर खड़ी मस्जिद
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी ASI ने 1971-72 और 1973-74 में खुदाई की थी। उस दौरान यहां कई अभिलेख मिले थे। कहा जाता है कि मुगल राजा औरंगजेब ने साल 1682 में यहां आक्रमण कर इसे तबाह कर दिया था। पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुसार, कुछ जानकार बताते हैं कि यह वही ध्वस्त मंदिर है, जिसके स्थान पर मस्जिद खड़ी है। ASI की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, ध्वस्त हिंदू मंदिर पर मस्जिद का निर्माण किया गया था।
यहां मिले शिलालेख बताते हैं कि यह देवी चर्चिका का मंदिर था, जिसका निर्माण 12वीं-13वीं शताब्दी में हुआ था। कहा जाता है कि औरंगजेब ने मंदिर को तबाह करने के बाद उसी सामग्री से मस्जिद तैयार कराई थी।
प्रचीन संस्मारक, पुरातत्विक स्थल एवं अवशेष अधिनियम 1958 (प्राचीन संस्मारक एवं पुरातत्विक स्थल व अवशेष (संशोधन तता विधिमान्यकरण अधिनियम 2010 द्वारा संशोधित) के तहत राष्ट्रीय महत्व का घोषित किए गए इस मंदिर को वास्तविक रूप से परमार काल में तैयार कराया गया था।
मंदिर परिसर में रहस्यमयी बावड़ी
विजय मंदिर के विशाल परिसर में एक बावड़ी भी मौजूद है। स्थानीय लोग मानते हैं कि यहां का पानी कभी भी सूखता नहीं है। साथ ही इसकी गहराई और लंबाई को लेकर भी स्थिति साफ नहीं हो सकी है। एक धारणा यह भी है कि इस बावड़ी से एक रास्ता एमपी के ही एक औऱ प्राचीन शहर रायसेन तक जाता है।
क्यों है नया भवन त्रिकोण?
971 करोड़ रुपये में बनी इस नई इमारत का त्रिकोणीय आकार भी चर्चा में है। सेंट्रल विस्टा की आधिकारिक वेबसाइट बताती है कि इमारत में मौजूद जगह का भरपूर इस्तेमाल करने के मकसद से इसका आकार त्रिकोण रखा गया है। नए भवन में राष्ट्रीय पक्षी मोर के आधार पर तैयार लोकसभा में सदस्यों के बैठने की संख्या भी बढ़ाकर 888 की गई है। जबकि, कमल के आधार पर तैयार राज्यसभा में 348 सदस्य बैट सकेंगे।
पुरानी संसद का क्या होगा?
सवाल है कि 28 मई को जब देश को नई संसद मिल जाएगी, तो संविधान का गवाह बन चुकी पुरानी इमारत का क्या होगा? सरकार का कहना है कि पुरानी संसद की विरासत को सहेजना राष्ट्रीय महत्व का मुद्दा है। साथ ही सरकार यह भी साफ कर चुकी है कि पुराने भवन को ढहाया नहीं जाएगा। 1921 में शुरु हुआ निर्माण कार्य साल 1927 में पूरा हुआ था। इसकी डिजाइन ब्रिटिश आर्किटेक्ट्स सर एड्विन लुटियन्स और हर्बर्ट बेकर ने तैयार की थी।
मार्च 2021 में केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने राज्यसभा में बताया था कि नई इमारत तैयार है और पुराने भवन को किसी और इस्तेमाल के लिए उपलब्ध कराया जाएगा। हालांकि, अब तक तय नहीं है कि यहां क्या होगा।
एक रिपोर्ट में यह भी कहा जा रहा था कि मौजूदा संसद भवन के एक हिस्से को संग्रहालय में भी तब्दील कर दिया जाएगा। अगर ऐसा होता है, तो यहां पहुंचने वाली जनता लोकसभा को अंदर से भी देख सकेगी।
क्यों है खास?
खास बात है कि नए फ्लोर प्लान के तहत लोकसभा में ज्वाइंट सेशन्स के लिए 1272 सीटें होंगी। इन दो विशाल कमरों के अलावा भवन के मध्य में एक संविधान कक्ष होगा। नई इमारत में दफ्तरों को बेहद आधुनिक ढंग से तैयार किया गया है, जो सुरक्षा और संचार के लिहाज से लेटेस्ट टेक्नोलॉजी से लैस होगा
बड़े कमेटी रूम और नई लाइब्रेरी भवन का हिस्सा होंगे। इसके अलावा संसद परिसर को ऊर्जा के मामले में किफायती होने के चलते 'प्लेटिनम रेटेड बिल्डिंग' कहा जा रहा है। खास बात है कि करीब दो सालों की कड़ी मेहनत के बाद तैयार हुए भवन में 60 हजार से ज्यादा कर्मियों की मेहनत शामिल है।