शहीद मेजर चित्रेश की NSG में जाने की चाहत रही अधूरी
मेजर चित्रेश बिष्ट (Major Chitresh Bisht) सेना की इंजीनियरिंग विंग में थे और उनकी चाहत थी कि वह एनएसजी से जुड़ें। इस हसरत को पूरा करने के लिए वह दोबारा एनएसजी के लिए भी चुने गए, लेकिन किस्मत को कुछ और...
मेजर चित्रेश बिष्ट (Major Chitresh Bisht) सेना की इंजीनियरिंग विंग में थे और उनकी चाहत थी कि वह एनएसजी से जुड़ें। इस हसरत को पूरा करने के लिए वह दोबारा एनएसजी के लिए भी चुने गए, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। हाल में ही सेना से रिटायर हुए राजीव कंसवाल भी शनिवार दोपहर में ओल्ड नेहरू कॉलोनी स्थित मेजर चित्रेश के घर पहुंचे। राजीव प्रेमनगर में रहते हैं। राजीव कहते हैं कि चित्रेश सेना में काबिल अफसर थे। बड़े अभियानों में वह सेना की पहली पसंद रहते थे। राजीव कंसवाल सेना में रहते हुए दो साल मेजर चित्रेश के साथ भी रहे। चित्रेश के पिता को सांत्वना देते-देते राजीव की आंखें भी छलक पड़ीं।
राजीव कहते हैं कि जोश और जुनून ऐसा कि पूरी टीम को पीछे कर वह हर काम में खुद आगे रहते थे। मेजर चित्रेश के पिता भी कहते हैं कि पहली बार सोनू जब एनएसजी ट्रेनिंग के लिए गया तो पांव में दिक्कत हो गई। उसे वापस लौटना पड़ा। बावजूद इसके वह एनएसजी में जाने के लिए फिर तैयारी करने लगा। दूसरी बार भी पांव में दिक्कत की वजह से वह एनएसजी में नहीं जा पाया।
मेरे और मेरे बेटे की आत्म एक थी
शहीद मेजर चित्रेश बिष्ट के पिता एसएस बिष्ट ने कहा कि मेरे और मेरे बेटे की आत्मा एक ही थी। बचपन से जब कभी बेटे के साथ कोई घटना या कोई बात होती थी, मुझे पता चल जाता था। उन्होंने कहा कि शुक्रवार रात बेचैनी बहुत हो रही थी। रातभर सोया तक नहीं। इस बीच पत्नी रेखा ने भी कहा कि देर रात हो गई है सोते क्यों नहीं। अगले दिन ज्यादा काम था तो बेटे से बात नहीं हुई। शादी का कार्ड गांव भेजने के लिए शनिवार को आईएसबीटी से वापस घर पहुंचा तो बेटे की शहादत की सूचना मिली।
मेजर बिष्ट अब भी गुल्लक में रखते थे रुपये
एसएस बिष्ट बेटे शहीद मेजर चित्रेश बिष्ट के साथ बिताये पल को सांत्वना देने आये नाते-रिश्तेदारों के साथ साझा कर बार-बार रोते रहे। कहा कि बेटे ने कभी फिजूलखर्ची नहीं की। जब कभी मैं उसे पैसा देता वह लेने से इनकार कर देता। जबरदस्ती उसे सफर में कुछ खाने के लिए पैसे देता तो अपने गुल्लक में रखकर चला जाता।