हाइट का मजाक उड़ाने वाले PAK राष्ट्रपति को जब शास्त्री जी ने चखाया मजा, ट्रेन की बोगी से कूलर हटवाने का किस्सा
आमतौर पर पूर्व पीएम शास्त्री जी का नाम आते ही “जय जवान, जय किसान” का नारा फौरन याद आ जाता है। जिसकी विरासत को आगे ले जाने का काम अटल बिहारी वाजपेयी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया।
आज का दिन बहुत खास है। अति-विशेष इसलिए क्योंकि आज ही के दिन भारत माता के दो महापुरुषों ने जन्म लिया। जब हम आज के दिन दो महापुरुषों की बात करते हैं तो अनायास ही वे नाम हमारे सामने आ जाते हैं। एक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और दूसरे पूर्व प्रधानमंत्री व भारतरत्न लाल बहादुर शास्त्री। आजाद भारत को एक नया आकार देने में इनके विचारों और कार्यों का विशेष योगदान रहा। महात्मा गांधी कहते थे, “मानवता की महानता, मानव होने में नहीं, बल्कि मानवीय होने में हैं”।
लाल बहादुर शास्त्री का व्यक्तित्व इसी विशेषता का प्रतिबिंब हैं। महात्मा गांधी के सपने को साकार रूप देने, देश की एकता एवं अखंडता को बनाए रखने व राष्ट्र के विकास के मार्ग को प्रशस्त करने में लाल बहादुर शास्त्री का अमूल्य योगदान रहा है। कहते हैं कि गुदड़ी में भी लाल होते हैं। 2 अक्टूबर 1904 को इस कहावत को चरितार्थ करते हुए वाराणसी के समीप एक छोटे से कस्बे में एक सामान्य परिवार में लाल बहादुर नाम के ‘लाल’ का अवतरण हुआ। अभाव और संसाधनहीनता इस “गुदड़ी के लाल” का रास्ता न रोक सकी। शास्त्री जी कहते थे, “धैर्य बहुत सी कठिनाइयों पर विजय पाता है”। इनका जीवन इसका दर्शन है।
शास्त्री जी के अमूल्य योगदान के संदर्भ में 1991 में अनसूयाप्रसाद बलोदी अपनी पुस्तक “कर्मयोगी लालबहादुर शास्त्री” में लिखते हैं-
शस्य श्यामला भारत भू को, करता वह श्रमशील किसान।
प्रहरी जिसका सजग बना है, धरती का सुत वीर जवान॥
मातृभूमि के मेरु सबल ये, नहीं जानते हैं विश्राम।
पूर्ण मान दिया था इनको , लालबहादुर तुम्हें प्रणाम॥
फलासक्ति को त्यागा तुमने, कर्म उपासक रहे महान।
सत्तासुख से विमुख सदा ही, थी चरित्र की अपनी शान॥
अर्पित तन-मन और वचन-धन, मातृभूमि के उज्ज्वल नाम।
निष्काम कर्म की दिव्य मूर्ति तुम, हे राजर्षि तुम्हें प्रणाम।।
शास्त्री जी की ईमानदारी और उनकी सादगी पूरे विश्व में जगजाहिर है। नई दिल्ली स्थित लाल बहादुर शास्त्री मेमोरियल, शास्त्री जी के आदर्श जीवन का दर्पण है। वहां रखे हुए एक प्रशस्ति-पत्र पर लिखा है, “शास्त्री जी हमेशा कहते थे कि मैं साधारण जनमानस का हिस्सा हूं”।
उनकी सादगी और ईमानदारी पर बलोदी जी लिखते हैं-
जीवन सादा सरल शांत था, नहीं किया किंचित अभिमान।
सिर पर टोपी तन पर शोभित, धोती कुर्ते का परिधान। ।
आडंबर से दूर सदा ही, स्नेहार्पित जनता के नाम।
भारतीयता के प्रतीक तुम, महा मनीषी तुम्हें प्रणाम।।
गांधी जी को दिया वचन था, नहीं किया धन का संचय।
अपरिग्रह का पालन करके, किया विजित मन का संशय।।
शक्ति और साधन का सम्यक, जनहित में करते उपयोग।
आजीवन अनिकेत रहे पर, सिद्धांतों से न था वियोग।।
कद काठी की वजह से शास्त्री जी को हल्के में लेने का दुःसाहस
कहते हैं कि व्यक्ति की शारीरिक ऊंचाई मायने नहीं रखती, बल्कि व्यक्तित्व का ऊंचा होना मायने रखता है। शास्त्री जी की कद काठी की वजह से कई नेता उन्हें हल्के में लेने का दुःसाहस भी करते थे, लेकिन वे उनकी असाधारण प्रतिभा और सक्षम नेतृत्व से अनभिज्ञ थे। ऐसा ही काम उनके साथ कराची एयरपोर्ट पर पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब ख़ान ने किया और शास्त्री जी का मजाक उड़ाया था। शास्त्री जी ने इस मजाक को बखूबी याद रखा।
इसकी एक झलक उन्होंने अयूब खान को तब दिखाई जब पाकिस्तानी राष्ट्रपति ने भारत के पहले पीएम पंडित नेहरू के निधन के बाद अपनी भारत यात्रा रद्द की थी। तब लाल बहादुर शास्त्री ने तंज कसते हुए कहा था कि आपको दिल्ली आने की जरूरत नहीं, हम खुद ही लाहौर तक आ जाएंगे। तब शायद अयूब खान ने यह बात हल्के में ली होगी। पर शास्त्री जी ने 1965 के युद्ध में अपनी कथनी को करनी में बदल दिया। पाकिस्तान को ऐसी धूल चटाई कि पड़ोसी देश समेत विश्व के नेताओं को उनके असल कद का भान हो गया। शास्त्री जी पर यहां बिहारी सतसई के दोहे की एक पंक्ति प्रासंगिक है, “देखन में छोटे लगैं, घाव करैं गम्भीर”
वे एक मजबूत और दूरदर्शी नेता थे। एक बार उन्होंने कहा था, “जैसा मैं दिखता हूं, उतना साधारण मैं हूं नहीं”। निश्चित तौर पर, शास्त्री जी का पूरा जीवन और उनके द्वारा संकल्पित लक्ष्यों की प्राप्ति इस तथ्य को प्रमाणित करता है। शास्त्री जी दूरदर्शिता के प्रतीक, अत्यंत सरल प्राकृति, निर्लिप्त, सत्यनिष्ठ एवं मिष्टभाषी थे। शास्त्री जी ने सार्वजनिक और पारिवारिक दोनों ही जीवन में श्रेष्ठता के प्रतिमान स्थापित किए। शास्त्री जी का व्यक्तित्व असाधारण था। इनके असाधारण व्यक्तित्व को देखते हुए इनको अजातशत्रु की संज्ञा दी गई। अर्थात, जिसका कोई शत्रु या दुश्मन पैदा न हुआ हो, जो ‘शत्रुविहीन’ हो।
कष्ट उठाकर दूसरों को सुखी देखना शास्त्री जी की अप्रतिम महानता को दर्शाता है। समाजसेवा उनके व्यक्तित्व का एक महत्वपूर्ण अंग था। संत तुलसीदास की वाणी “पर हित सरिस धर्म नहिं भाई, पर पीड़ा सम नहिं अधमाई” को उन्होंने सच्चे रूप में अपने जीवन में उतारा। शास्त्री जी को खुद कष्ट उठाकर दूसरों को सुखी देखने में सुकून मिलता था। शास्त्री जी के पुत्र सुनील शास्त्री अपनी पुस्तक ‘लालबहादुर शास्त्री, मेरे बाबूजी’ में एक घटना का जिक्र करते हैं, जो इस प्रकार है-
रेलगाड़ी के डिब्बे से कूलर निकलवाने का किस्सा
“जब शास्त्री जी रेल मंत्री थे और वह किसी कार्य से मुंबई जा रहे थे। उनके लिए फ़र्स्ट क्लास का डिब्बा लगा था। गाड़ी चलने पर शास्त्री जी बोले, डिब्बे में काफ़ी ठंडक है, वैसे बाहर गर्मी है। उनके पी.ए. कैलाश बाबू ने कहा, जी, इसमें कूलर लग गया है। शास्त्री जी ने पैनी निगाह से उन्हें देखा और आश्चर्य व्यक्त करते हुए पूछा, ‘कूलर लग गया है? बिना मुझे बताए? आप लोग कोई काम करने से पहले भला मुझसे पूछते क्यों नहीं हैं? क्या और सारे लोग जो गाड़ी में चल रहे हैं, उन्हें गर्मी नहीं लगती होगी?’ शास्त्री जी ने कहा, "कायदा तो यह है कि मुझे भी थर्ड क्लास में चलना चाहिए, लेकिन उतना तो नहीं हो सकता, पर जितना हो सकता है उतना तो करना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि बड़ा गलत काम हुआ है। आगे गाड़ी जहां भी रुके, पहले कूलर निकलवाइए। मथुरा स्टेशन पर गाड़ी रुकी और कूलर निकलवाने के बाद ही गाड़ी आगे बढ़ी।"
शास्त्री जी की त्याग की भावना का दर्शन तब भी देखने को मिला था जब वे जेल में थे। जेल में वे अपने हिस्से की वस्तुओं को दूसरों को देकर प्रसन्न होते थे। एक बार एक जरूरतमंद कैदी को लैंप की आवश्यकता थी, तब वे टॉलस्टॉय की किताब अन्ना केरिनिना को पढ़ रहे थे। उन्होंने उस कैदी को अपना लैंप दे दिया ताकि वह कैदी अपना कार्य सुलभता से कर सके। और स्वयं सरसों के तेल का दिया जलाकर टॉलस्टॉय की पुस्तक को पढ़ने लगे।
जय जवान, जय किसान का नारा
आमतौर पर शास्त्री जी का नाम आते ही “जय जवान, जय किसान” का नारा फौरन याद आता है। जिसकी विरासत को आगे ले जाने का काम अटल बिहारी वाजपेयी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। 22 अगस्त 2022 को लाल किले की प्राचीर से शास्त्री जी को याद करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि “शास्त्री जी का जय जवान, जय किसान का मंत्र आज भी देश के लिए प्रेरणा है। बाद में अटल बिहारी वाजपेयी जी ने उसमें ‘जय विज्ञान’ कहकर उसमें एक कड़ी जोड़ दी थी। लेकिन अब अमृत काल के लिए एक और अनिवार्यता है, और वह है ‘जय अनुसंधान’”। यानी एक तरह से पहले वाजपेयी और बाद में पीएम मोदी, दोनों ही नेताओं ने शास्त्री जी की परंपरा को आत्मसात करते हुए देश की प्रगति और उन्नति का खाका बुनने की कोशिश की है।
‘सक्षम नेतृत्व’ मानव में ईश्वर का दिया हुआ सर्वश्रेष्ठ गुण है। लाल बहादुर शास्त्री की नेतृत्व क्षमता इसका परिचायक है। शास्त्री जी ने संकट के घड़ी में इसका परिचय दिया। फिर चाहे, पाकिस्तान के साथ युद्ध में सफलता हो या खाद्य संकट की समस्या से निपटारा। एक बार मन बना लेने के बाद वे अपना निर्णय कभी नहीं बदलते थे। बाहर से मृदु स्वभाव के दिखने वाले शास्त्री जी अदंर से चट्टान की तरह दृढ़ थे। उनकी लोकनीति (पब्लिक पॉलिसी) क्षमता अद्भुत थी।
लोकतंत्र के सच्चे पैरोकार लाल बहादुर शास्त्री जी का मूल विचार पूरे राष्ट्र को एकजुट रखने में था, ताकि देश को तरक्की के राह पर आगे ले जाया जा सके। आज जरूरत है, आदर्शों के प्रति निष्ठा रखने वाले शास्त्री जी के विचारों को आत्मसात करने की, उनसे सीख लेने की, ताकि राष्ट्र के विकास का मार्ग अविलंब प्रशस्त हो सके। इसकी जिम्मेदारी केवल राजनेता और नौकरशाह वर्ग की ही नहीं, बल्कि समस्त जनमानस की है।