सैनिकों की तैनाती, युद्धाभ्यास, पेट्रोलिंग और...पूर्वोत्तर में चीन की 4 हरकतों से टेंशन, भारत भी पलटवार को तैयार
पूर्वी लद्दाख के बाद चीन पूर्वोत्तर क्षेत्र में भी भारत के लिए चुनौती पैदा कर रहा है। अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में एलएसी पर चीन ने अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं। रक्षा सूत्रों का कहना है कि हाल के...
पूर्वी लद्दाख के बाद चीन पूर्वोत्तर क्षेत्र में भी भारत के लिए चुनौती पैदा कर रहा है। अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में एलएसी पर चीन ने अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं। रक्षा सूत्रों का कहना है कि हाल के दिनों में चीन की तरफ से चार किस्म के कार्य तेज किए गए हैं। जो उसकी मंशा पर सवाल उठाते हैं। हालांकि भारतीय सेना ने भी उसके अनुरूप अपनी तैयारियां कर रखी हैं।
रक्षा सूत्रों के अनुसार, चीन ने अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम से लगती वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अपनी तरफ वाले हिस्से में अचानक गतिविधियां तेज की हैं। पहली तो यह कि एलएसी के निकट सैनिकों की संख्या में बढ़ोत्तरी की गई है। दूसरे, तय स्थान से आगे आकर उसके सैनिकों द्वारा गश्त की जाने लगी है जिसके चलते हाल में तवांग क्षेत्र में चीनी सैनिकों और भारतीय सैनिकों को आमना-सामना हुआ था। चीन उन स्थानों तक गश्त करते हुए पहुंच रहा है, जहां उसका पहले दावा नहीं था।
हालांकि भारतीय सेना ने उन्हें बैरंग लौटा दिया। तीसरे, चीन ने इस क्षेत्र में युद्धाम्यास भी ज्यादा करने शुरू कर दिए हैं। वह ऊंचाई और विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले नए क्षेत्रों में युद्धाभ्यास कर अपनी क्षमता में इजाफा कर रहा है। चौथे एलएसी के निकट चीन अपने बुनियादी सैन्य ढांचे का विस्तार कर रहा है। इनमें सड़कों, हैलीपैड का निर्माण, सैनिकों के लिए स्थायी परिसर और युद्धक सामग्री भंडार केंद्रों की स्थापना आदि प्रमुख रूप से शामिल है।
रक्षा सूत्रों की मानें तो एलएसी के पूर्वी इलाके में भी आने वाले समय में चीन से टकराव बढ़ सकता है। सेना के पूर्वी कमान के प्रमुख लेफ्टनेंट जनरल मनोज पांडे ने हालांकि मंगलवार को एक बयान में माना है कि चीन के सैनिकों की गतिविधियां बढ़ी हैं, लेकिन उनके मुकाबले के लिए भारतीय सेना ने अपनी तैयारियां कर रखी हैं।
पूर्वोत्तर राज्यों में अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में एलएसी का 1346 किलोमीटर क्षेत्र पड़ता है। हालांकि इस क्षेत्र में भारतीय और चीनी सैनिकों का आमना-सामना कोई नई बात नहीं है लेकिन पहले जो घटनाएं होती थी, वह स्थानीय कमांडर स्तर पर सुलझा ली जाती थीं और कभी उन घटनाओं के चलते दोनों देशों को अपनी तैनातियों में परिवर्तन नहीं करना पड़ा था। लेकिन अब स्थिति बदल रही हैं। समग्रता में देखा जाए तो इस क्षेत्र में चीन के रुख में आक्रामकता साफ नजर आ रही है।