तीन मांगें पूरी, एक पर ही फंसा पेच; सरकार से ऐसा क्या भरोसा मिला कि ड्यूटी पर लौटे पहलवान
आंदोलनकारी पहलवान सरकार से एक समझौते पर जरूर पहुंचते दिखे हैं। इसी के चलते तीनों खिलाड़ियों ने अपनी रेलवे की नौकरी दोबारा जॉइन कर ली है और फिलहाल कार्रवाई के लिए इंतजार पर सहमति जताई है।
कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर यौन शोषण के आरोप लगाते हुए आंदोलन करने वाले तीनों पहलवान रेलवे की अपनी नौकरी पर लौट गए हैं। सोमवार को यह खबर जब आई तो चर्चा शुरू हुई कि क्या पहलवानों ने आंदोलन खत्म कर दिया है? लेकिन साक्षी मलिक ने इन कयासों को गलत बताते हुए कहा कि हमारी लड़ाई जारी रहेगी। इस बीच सूत्रों के हवाले से खबर है कि पहलवान भले ही लड़ाई जारी रहने की बात कर रहे हैं, लेकिन सरकार से वह एक समझौते पर जरूर पहुंचते दिखे हैं। इसी के चलते उन्होंने नौकरी दोबारा जॉइन कर ली है और फिलहाल कार्रवाई के लिए इंतजार पर सहमति जताई है।
होम मिनिस्टर अमित शाह से पहलवानों ने शनिवार की शाम को मुलाकात की थी। सूत्रों का कहना है कि इस दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने पहलवानों को उनकी तीन मांगें मान लेने का भरोसा दिया। ये मांगे हैं- महिला पहलवानों के लिए कुश्ती महासंघ के अलग अध्यक्ष की नियुक्ति, 28 मई को आंदोलन के दौरान पहलवानों पर दर्ज केसों को वापस लेना और कुश्ती महासंघ के चुनाव में बृजभूषण का परिवार या कोई रिश्तेदार भी हिस्सा नहीं लेगा। अमित शाह से इन तीनों ही मांगों को मान लेने का भरोसा दिया गया है। हालांकि अब भी बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी की मांग को लेकर पेच फंसा हुआ है।
पहलवानों का कहना था कि वे बृजभूषण की गिरफ्तारी होने तक आंदोलन जारी रखेंगे। लेकिन अमित शाह ने इसे लेकर कहा कि कानूनी प्रक्रिया के तहत बृजभूषण सिंह की गिरफ्तारी पर फैसला होगा। यही नहीं अमित शाह से पहलवानों को भरोसा दिया गया कि यदि उन्हें लगता है कि कार्रवाई ठीक नहीं हो रही है तो फिर मामले की जांच सीबीआई को दी जा सकती है। इसके अलावा जांच के बाद मामला फास्ट ट्रैक कोर्ट में भी चलाया जा सकता है। माना जा रहा है कि गृह मंत्री के इन आश्वासनों से पहलवान संतुष्ट थे और इसी के चलते नौकरी पर लौटने का फैसला लिया।
पहलवानों के ड्यूटी पर लौटने से सरकार को क्या राहत
साक्षी मलिक, बजरंग पूनिया और विनेश फोगाट के ड्यूटी पर लौटने से सरकार को भी राहत मिली है। इसकी वजह यह है कि पहलवानों का आंदोलन राजनीतिक रंग लेता जा रहा था और दिल्ली के साथ ही हरियाणा एवं पश्चिम यूपी में भी किसान नेताओं और आरएलडी, कांग्रेस जैसी पार्टियां सक्रिय हो रही थीं। ऐसे में पहलवानों का ड्यूटी पर लौटना भले ही आंदोलन के लिए विराम है, लेकिन सरकार के लिए भी राहत लेकर आया है।
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