बुजुर्ग मानेंगे नहीं और युवाओं से संवाद मुश्किल, कैसे कांग्रेस के 'आलाकमान' बन पाएंगे मल्लिकार्जुन खड़गे
मल्लिकार्जुन खड़गे कर्नाटक समेत किसी भी राज्य में खुद कोई बड़ा जनाधार नहीं रखते हैं और केंद्र की राजनीति में भी उनका ऐसा कद नहीं रहा है कि तमाम वरिष्ठ नेता आसानी से उनको फॉलो करें।
मल्लिकार्जुन खड़गे ने चुनाव में जीत हासिल कर कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी संभाल ली है। 80 साल के मल्लिकार्जुन खड़गे दलित बिरादारी से आते हैं और गांधी परिवार के वफादार हैं। कांग्रेस ने उनमें वोटबैंक और हाईकमान से करीबी जैसी दो खूबियां देखते हुए अध्यक्ष पद सौंपा है। लेकिन सवाल यह है कि क्या कांग्रेस के लिए यह भी एक व्यवस्था ही है या फिर बदलाव की कोई शुरुआत मल्लिकार्जुन खड़गे कर पाएंगे? इसका जवाब दे पाना कांग्रेस के लिए आसान नहीं है। इसकी वजह यह है कि मल्लिकार्जुन खड़गे खुद कोई बड़ा जनाधार नहीं रखते हैं और केंद्र की राजनीति में भी उनका ऐसा कद नहीं रहा है कि तमाम वरिष्ठ नेता आसानी से उनको फॉलो करें।
इसके अलावा युवा नेताओं से संवाद स्थापित कर पाना भी उनके लिए आसान नहीं होगा। मल्लिकार्जुन खड़गे को अध्यक्ष बनाए जाने से उदयपुर में पारित प्रस्तावों पर भी सवाल खड़े किए हुए हैं। तब कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में कहा गया था कि युवाओं को मौका दिया जाएगा, लेकिन खड़गे को अध्यक्ष बनाने से इस पर प्रश्न चिह्न लगा है। यही नहीं वर्किंग कमेटी की औसत आयु भी 68 साल है, जिसमें 50 साल से कम की उम्र का कोई भी नेता शामिल नहीं है। इसलिए कांग्रेस की रणनीति पर भी पलीता लगता दिख रहा है। बिना युवाओं को जोड़े कांग्रेस खड़गे के भरोसे अपनी उम्मीदों को परवान चढ़ा पाएगी।
सत्ता के दो केंद्र होंगे, कैसे स्थापित हो पाएंगे खड़गे
भले ही मल्लिकार्जुन खड़गे की लीडरशिप में राहुल गांधी ने काम करने की बात कही है। उनका कहना है कि खड़गे ही उनका काम तय करेंगे। इस तरह गांधी परिवार ने खड़गे को स्थापित करने की कोशिश की है, लेकिन कांग्रेस में गांधी परिवार की हैसियत बैकसीट पर होने के बाद भी कम नहीं है। इसे इस बात से भी समझ सकते हैं कि अध्यक्ष के चुनाव में राहुल गांधी की उम्मीदवारी न होने के बाद भी कुछ लोग बैलेट पेपर पर उनका ही नाम लिख आए। ऐसे में खड़गे की अध्यक्षता के बाद भी गांधी परिवार सत्ता का केंद्र पहले की तरह बना रहेगा। ऐसे में अध्यक्ष के तौर पर उनके हाथ पूरी ताकत नहीं होगी। इस तरह सत्ता के दो केंद्र बनना पार्टी के कामकाज पर बुरा असर डाल सकता है।
गहलोत और कमलनाथ जैसों से कैसे डील करेंगे खड़गे
इससे भी बड़ी मुश्किल मल्लिकार्जुन खड़गे के आगे यह होगी कि वह राज्यों के क्षत्रपों को कैसे संभालें? जो अशोक गहलोत सोनिया गांधी तक को आंख दिखा चुके हैं, उनसे मल्लिकार्जुन खड़गे कैसे डील करेंगे? या फिर मध्य प्रदेश में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह उनकी कितनी सुनेंगे, यह भी एक सवाल है। ऐसी तमाम चीजों से 80 साल के खड़गे कैसे निपटते हैं, यह देखने वाली बात होगी।