Hindi Diwas 2022 Hindi has also become a victim of politics in South India Kumaraswamy again protest against - India Hindi News दक्षिण भारत में सियासत की भी शिकार हुई है हिंदी, कुमारस्वामी ने फिर छेड़ा राग; पहले भी हुई है रार, India Hindi News - Hindustan
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दक्षिण भारत में सियासत की भी शिकार हुई है हिंदी, कुमारस्वामी ने फिर छेड़ा राग; पहले भी हुई है रार

दक्षिण के राज्यों में इस प्रस्ताव का जमकर विरोध होता है। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने तो यहां तक कहा है कि 14 सितंबर को होने वाला हिंदी दिवस जबरदस्ती मनाना गलत है।

Himanshu लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्ली।Wed, 14 Sep 2022 06:35 AM
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दक्षिण भारत में सियासत की भी शिकार हुई है हिंदी, कुमारस्वामी ने फिर छेड़ा राग; पहले भी हुई है रार

Hindi Diwas 2022: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का कहना था कि हिंदी आम जनमानस की भाषा है। कई इतिहासकार तो यह भी बताते हैं कि वह हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के भी पक्षधर थे। हालांकि, अभी तक यह संभव नहीं हुआ है। दक्षिण के राज्यों में इस प्रस्ताव का जमकर विरोध होता है। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने तो यहां तक कहा है कि 14 सितंबर को होने वाला हिंदी दिवस जबरदस्ती मनाना, कर्नाटक के लोगों के साथ अन्याय की तरह होगा।

उन्होंने अपने एक पत्र में कहा, "कर्नाटक में 14 सितंबर को केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित हिंदी दिवस कार्यक्रम को जबरदस्ती मनाना, राज्य सरकार द्वारा कन्नडिगों के साथ अन्याय होगा। मैं आग्रह करता हूं कि बिना किसी कारण के कर्नाटक सरकार को राज्य के करदाताओं के पैसे का उपयोग करके हिंदी दिवस नहीं मनाना चाहिए।" 

आपको बता दें कि यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी हिंदी का विरोध होता रहा है। आइए यह जानने की कोशिश करते हैं कि कब-कब हिंदी को लेकर दक्षिण के राज्यों में विरोध हुआ है।

कुमारस्वामी ने की थी हिंदी दिवस को खत्म करने की मांग
इससे पहले भी कुमारस्वामी ने ही हिंदी दिवस समारोह का विरोध करते हुए कहा था कि इसका उन लोगों के लिए कोई मतलब नहीं है जिनकी मातृभाषा हिंदी नहीं है। उन्होंने हिंदी दिवस को खत्म करने की भी मांग की थी। पिछले साल हिंदी दिवस के लिए कन्नड़ समर्थक संगठनों द्वारा बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया पर विरोध प्रदर्शन किया गया था।

आजादी से पहले से होता आ रहा हिंदी का विरोध
हिंदी का विरोध कोई नई बात नहीं है। भारत के आजाद होने से पहले भी कई मौकों पर इसका विरोध हुआ है। तमिलनाडु में 1937 में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की सरकार ने मद्रास प्रांत में हिंदी को लाने का समर्थन किया था। पेरियार की जस्टिस पार्टी तब विपक्ष में थी। उसने इसका विरोध करने किया। आंदोलन हुए। अलग-अलग जगहों पर हिंसा भी भड़की। दो लोगों की जान भी चली गई थी। इसके बाद राजगोपालाचारी सरकार ने 1939 में त्यागपत्र दे दिया। 

1965 में भी हुई हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की कोशिश
साल 1965 में दूसरी बार  हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने की कोशिश हुई। इस दौरान भी गैर हिंदी भाषी राज्यों में जमकर विरोध प्रदर्शन हुआ था। डीएमके नेता रहे डोराई मुरुगन को पचाइअप्पन कॉलेज से गिरफ्तार कर लिया गया था। बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में मुरुगन ने कहा था, "हमारे नेता सीएन अन्नादुराई 26 जनवरी के दिन सभी घरों की छतों पर काला झंडा देखना चाहते थे। गणतंत्र दिवस को देखते हुए उन्होंने इस तारीख को बदलकर 25 जनवरी कर दी थी।"

हिंदी के खिलाफ आंदोलन में 70 लोगों की गई थी जान
मुरुगन के ही मुताबिक, तमिलनाडु में हजारों लोग गिरफ्तार हुए थे। मदुरई में विरोध प्रदर्शनों ने हिंसक रूप ले लिया। स्थानीय कांग्रेस दफ्तर के बाहर एक हिंसक झड़प में आठ लोगों को जिंदा जला दिया गया था। विरोध प्रदर्शन और हिंसक झड़पें तकरीबन दो हफ्तों तक चलीं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस दौरान विरोध-प्रदर्शन में 70 लोगों की जानें गईं।

बंगाल में भी हिंदी का विरोध
हिंदी का विरोध सिर्फ दक्षिण भारत के राज्यों में नहीं हुआ था। पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री बीसी रॉय भी हिंदी थोपे जाने के खिलाफ थे। विरोध करने वालों में दक्षिण के कांग्रेस शासित राज्य भी शामिल थे। विरोध प्रदर्शनों को शांत करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री को आश्वासन देना पड़ा था।

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