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हिमाचल में हार पर भाजपा में रार, धूमल ने बेटे अनुराग को क्लीनचिट दे उठाए सवाल

अनुराग ठाकुर केंद्रीय मंत्री होने के अलावा पहाड़ी राज्य से ही सांसद भी हैं। उनके पिता की गिनती भी राज्य के दिग्गजों में होती है। ऐसे में चुनाव हारने के चलते वह सोशल मीडिया पर आलोचना का शिकार हो गए थे।

Nisarg Dixit लाइव हिन्दुस्तान, शिमलाMon, 12 Dec 2022 02:21 PM
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हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की हार के बाद केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर आलोचना का शिकार हो रहे थे। अब उनके पिता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल बचाव में आए हैं। उन्होंने साफ कर दिया है कि अनुराग ने हिमाचल प्रदेश चुनाव के दौरान बगैर रुके काम किया है। इसके अलावा ठाकुर गुजरात चुनाव में भी व्यस्त रहे।

अनुराग ठाकुर केंद्रीय मंत्री होने के अलावा पहाड़ी राज्य से ही सांसद भी हैं। उनके पिता की गिनती भी राज्य के दिग्गजों में होती है। ऐसे में चुनाव हारने के चलते वह सोशल मीडिया पर आलोचना का शिकार हो गए थे। अब एक चैनल से बातचीत में धूमल ने कहा है कि ठाकुर ने चुनाव में बगैर रुके प्रतिदिन काम किया है। भाजपा ने ठाकुर के गृह जिला हमीरपुर में पांचों सीटें गंवा दी।

धूमल ने कहा, 'हम हमीरपुर में पार्टी की हार से टूट गए हैं। पार्टी ने हार को गंभीरता से लिया है। जिस तरह से टिकट बांटे गए, उससे बागी नाखुश थे। पार्टी इस पर विचार कर रही है कि कैसे टिकटों का बंटवारा किया गया।' उन्होंने कहा, 'बीते 5 सालों में जो हुआ, मैं उसे शांति से देखता और सुनता रहा।' वरिष्ठ नेता ने आगे कहा, 'हमें उम्मीद है कि गलतियां दोहराई नहीं जाएंगी। हमने हमीरपुर को अपने खून-पसीने से सींचा है।'

नड्डा का गृहराज्य
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा भी हिमाचल प्रदेश से ही आते हैं। सोशल मीडिया पर यूजर्स ने राज्य में टिकट बंटवारे को लेकर ठाकुर और नड्डा पर ही सवाल उठाए थे। साथ ही कहा जा रहा है कि राज्य में भाजपा को बागियों की चुनौती का भी सामना करना पड़ा। आंकड़े बताते हैं कि 68 में से कम सेकम 21 में भाजपा के बागी मैदान में थे। हालांकि, इनमें से जीत केवल 2 की हुई, लेकिन अन्य उम्मीदवार बड़ी संख्या में वोट ले गए।

क्या रहे नतीजे
68 सीटों वाली हिमाचल प्रदेश विधानसभा में भाजपा के खाते में केवल 25 सीटें ही आई। वहीं, 2017 में हार का सामना करने वाली कांग्रेस को इस बार 40 सीटों के साथ बहुमत मिली। खास बात है कि 1985 से लेकर राज्य में सत्तारूढ़ दल के बदलने का सिलसिला जारी है।

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