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सियासी किस्सा: जब BJP के 48 विधायक ले उड़े थे शंकर सिंह वाघेला, MP के कांग्रेसी CM ने की थी खूब सेवा सत्कार

शंकर सिंह वाघेला ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत जनसंघ के साथ की थी, जिसका बाद में 1977 में जनता पार्टी में विलय हो गया था। जनता पार्टी के विभिन्न गुटों में विभाजित होने के बाद, वाघेला बीजेपी में रहे।

Pramod Kumar लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीThu, 17 Nov 2022 04:50 AM
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बात 1995 की है। जब पहली बार गुजरात में बीजेपी की सरकार बनी थी। 182 सदस्यों वाले नौवीं गुजरात विधानसभा में बीजेपी ने तब 121 सीटें जीती थीं। केशुभाई पटेल राज्य के मुख्यमंत्री बनाए गए थे। राज्य और बीजेपी के कद्दावर नेता शंकर सिंह वाघेला इससे चूक गए थे। हालांकि, पार्टी के कई नेता वाघेला को मुख्यमंत्री के तौर पर देखना चाहते थे लेकिन पार्टी आलाकमान ने राज्य की कमान केशुभाई पटेल को सौंप दिया। कहा जाता है कि केशुभाई पटेल को सीएम बनाने में नरेंद्र मोदी की इसमें बड़ी भूमिका थी।

मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने से शंकर सिंह वाघेला नाराज चल रहे थे। केशूभाई पटेल की सरकार को अभी छह महीने ही हुए थे कि वाघेला ने सितंबर 1995 में बीजेपी के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंक दिया। 121 विधायकों में से एक तिहाई से ज्यादा यानी 48 बीजेपी विधायकों को साथ लेकर तब वाघेला मध्य प्रदेश के खजुराहो जा पहुंचे थे। मध्य प्रदेश में तब कांग्रेस की सरकार थी और दिग्विजय सिंह राज्य के मुख्यमंत्री थे। दिग्विजय सिंह ने तब वाघेला और बागी विधायकों की खूब आव-भगत करवाई थी।

ऐसा वाकया अन्य राज्यों में भी:
यह वाकया तब हुआ था, जब CM केशुभाई पटेल अमेरिका के दौरे पर थे। भारतीय राजनीति में इस तरह का वाकया पहले भी हुआ था, जब आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एनटी रामाराव विदेश दौरे पर थे, तब 1984 में एन भास्कर राव ने कांग्रेस के सहयोग से सत्ता पलट दी थी और खुद मुख्यमंत्री बन गए थे। हालांकि, उनकी सरकार एक महीने तक ही टिक पाई थी। एनटी रामाराव दोबारा सीएम बन गए थे। इसी तरह राजस्थान में भैरोसिंह शेखावत के साथ भी हो चुका था।

वाघेला की चाल से पार्टी हलकान:
बहरहाल, वाघेला के विद्रोह से पार्टी में संकट बढ़ गया था। बाद में वाघेला के विश्वस्त कहे जाने वाले सुरेश मेहता को केशुभाई पटेल की जगह पार्टी ने मुख्यमंत्री बनाया। वाघेला की चाल से बीजेपी के आलाकमान भी परेशान थे। यहां गौर करने वाली बात है कि शंकर सिंह वाघेला के चहेते मुख्यमंत्री रहने के बावजूद लोकसभा चुनाव में उनकी हार हो गई थी। मई 1996 में हुए लोकसभा के चुनावों में बीजेपी ने वाघेला को गोधरा से उम्मीदवार बनाया था लेकिन राज्य में बीजेपी की बड़ी जीत के बावजूद वाघेला चुनाव हार गए थे। तब बीजेपी ने गुजरात की 26 लोकसभा सीटों में से 15 पर जीत दर्ज की थी।

वाघेला ने बना ली थी अपनी पार्टी:
लोकसभा चुनाव हारने के बाद वाघेला ने अपने ही नजदीकी मुख्यमंत्री सुरेश मेहता को पदच्युत करने की रणनीति बनाई। उन्होंने राष्ट्रीय जनता पार्टी नाम से अपनी अलग पार्टी बना ली और सितंबर 1996 में सुरेश मेहता को पद से हटना पड़ा। तब केंद्र में संयुक्त मोर्चे की सरकार थी। राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। करीब एक महीने के बाद शंकर सिंह वाघेला कांग्रेस के सहयोग से 23 अक्टूबर, 1996 को राज्य के 12वें मुख्यमंत्री बने।  तब वो विधायक नहीं थे। उन्होंने 1997 की शुरुआत में राधनपुर से उप चुनाव जीतकर विधानसभा में एंट्री ली थी।  बाद में उन्होंने 1997 में अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय करा दिया। बाद में वाघेला ने भी पार्टी में विद्रोह के बाद अक्टूबर 1997 में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और उनके विद्रोही साथी और पूर्व बीजेपी नेता दिलीप पारीख मुख्यमंत्री बनाए गए।

'बापू' के नाम से लोकप्रिय:
गुजरात की राजनीति में 'बापू' के नाम से लोकप्रिय वाघेला 1995 में भाजपा के मजबूत नेता थे और पार्टी की बड़ी जीत दर्ज कराने में उनकी बड़ी भूमिका थी। यूपीए-1 के कार्यकाल में वाघेला मनमोहन सिंह सरकार में कपड़ा मंत्री भी रहे।

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