अंधे होकर पश्चिमी देशों के पीछे नहीं चल सकते, कैसे पता लगेगा पत्नी ने नहीं दी सेक्स की मंजूरी: सरकार
केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट से मैरिटल रेप यानी पत्नी से रेप से संबंधित जनहित याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि हम अंधे होकर पश्चिमी देशों के पीछे नहीं चल सकते हैं। केंद्र ने यह भी कहा कि इस बात...
केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट से मैरिटल रेप यानी पत्नी से रेप से संबंधित जनहित याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि हम अंधे होकर पश्चिमी देशों के पीछे नहीं चल सकते हैं। केंद्र ने यह भी कहा कि इस बात का पता कैसे लगेगा कि पत्नी ने सेक्स की मंजूरी नहीं दी है। इसके साथ ही केंद्र सरकार ने दहेज उत्पीड़न से जुड़ी आईपीसी की धारा 498 के दुरुपयोग का भी हवाला दिया।
केंद्र ने अपनी लिखित दलील में हाईकोर्ट से कहा है कि "साक्षरता, बहुसंख्यक महिलाओं का आर्थिक रूप से सशक्त नहीं होना, समाज की मानसिकता, विशाल विविधता, गरीबी वैगरह ऐसे कई अलग-अलग कारकों की वजह से इस देश की अपनी अनूठी समस्याएं हैं। वैवाहिक बलात्कार को अपराधीकरण बनाने से पहले इन पर ध्यान से विचार किया जाना चाहिए"।
वहीं, दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को केंद्र से यह बताने को कहा कि क्या वह 2017 के अपने उस हलफनामे को वापस लेना चाहता है, जिसमें उसने दलील दी थी कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता क्योंकि यह विवाह रूपी संस्था को अस्थिर कर सकता है और पति को प्रताड़ित करने के लिए एक आसान हथकंडा बन सकता है।
न्यायमूर्ति राजीव शकधर और न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर की पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल चेतन शर्मा को इस पहलू पर निर्देश प्राप्त करने को कहा और विषय को 31 जनवरी के लिए सूचीबद्ध कर दिया। पीठ, वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में रखने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई कर रही है।
अदालत का यह निर्देश याचिकाकर्ता एनजीओ (गैर सरकारी संस्था) आरआईटी फाउंडेशन और ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वुमंस एसोसिएशन का प्रतिनिधित्व कर रही वकील करूणा नंदी द्वारा यह स्पष्टीकरण मांगे जाने के बाद आया, जिसमें उन्होंने कहा कि क्या वह केंद्र द्वारा दी अब तक दी गई लिखित दलीलों और दाखिल हलफनामों पर दलील पेश कर सकती हैं। इस पर न्यायमूर्ति शकधर ने कहा, ''श्रीमान शर्मा उस पर भी निर्देश प्राप्त करें।''
इससे पहले 24 जनवरी को केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय में कहा था कि वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध बनाने में ''परिवार के मामले''के साथ-साथ महिला के सम्मान का भी मुद्दा जुड़ा हुआ है। केंद्र ने इसके साथ ही अदालत से कहा कि उसके लिए इस मुद्दे पर तत्काल अपना रुख बताना संभव नहीं है।
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