इंडिया नाम पर दावा कर सकता है पाकिस्तान? जिन्ना ने भी जताई थी आपत्ति, अब क्यों हो रही चर्चा?
माउंटबेटन और जिन्ना की आपस में नहीं बनती थी। 1973 में एक इंटरव्यू में माउंटबेटन ने जिन्ना को

देश का नाम इंडिया से बदलकर आधिकारिक तौर पर केवल भारत करने की अटकलें तेज हैं। भले ही संविधान के अनुच्छेद 1 में दो नामों का परस्पर इस्तेमाल किया गया है, लेकिन फिर भी यह मुद्दा एक बार फिर से चर्चा में आ गया है। संविधान के अनुच्छेद 1 में लिखा है, "इंडिया, जो कि भारत है, राज्यों का एक संघ होगा।" जून 2020 में, सुप्रीम कोर्ट ने संविधान से "इंडिया" को हटाने और केवल भारत को बनाए रखने की मांग करने वाली एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया था। हालांकि अब इंडिया हटाकर केवल भारत करने की मांग एक बार फिर हो रही है।
पाकिस्तान "इंडिया" नाम पर दावा कर सकता है
मामला अब केवल भारत के अंदर तक ही सीमित नहीं है। कहा जा रहा है कि अगर भारत ने 'इंडिया' नाम का त्याग किया तो पड़ोसी देश पाकिस्तान उसे फौरन लपक लेगा। एक ट्विटर हैंडल साउथ एशिया इंडेक्स ने पाकिस्तानी मीडिया के हवाले से लिखा है कि 'अगर भारत संयुक्त राष्ट्र के स्तर पर आधिकारिक तौर से अपना इंडिया नाम त्याग देता है तो पाकिस्तान "इंडिया" नाम पर दावा कर सकता है।' इसने आगे लिखा कि पाकिस्तान के राष्ट्रवादी लोग लंबे समय से तर्क देते आ रहे हैं कि (इंडिया) नाम पर पाकिस्तान का अधिकार है क्योंकि यह पाकिस्तान में सिंधु क्षेत्र (इंडस रीजन) से उत्पन्न हुआ है।
गौरतलब है कि जी20 से संबंधित रात्रिभोज के निमंत्रण पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को ‘प्रेसीडेंट ऑफ भारत (भारत के राष्ट्रपति)’ के तौर पर संबोधित किए जाने को लेकर मंगलवार को बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया। विपक्ष ने आरोप लगाया कि सरकार देश के दोनों नामों ‘इंडिया’ और ‘भारत’ में से ‘इंडिया’ को बदलना चाहती है। सूत्रों ने जी20 से संबंधित कुछ दस्तावेजों में देश के नाम के रूप में भारत का इस्तेमाल किए जाने की पुष्टि करते हुए कहा कि यह सोच-समझकर लिया गया निर्णय है। जी20 प्रतिनिधियों के लिए तैयार की गई एक पुस्तिका में कहा गया है, ‘‘भारत देश का आधिकारिक नाम है। इसका उल्लेख संविधान और 1946-48 की चर्चाओं में भी किया गया है।’’
जिन्ना को 'इंडिया' नाम पर जताई थी आपत्ति
पाकिस्तान का निर्माण 1947 में हिंदू-बहुल भारत से एक अलग मुस्लिम-बहुल राष्ट्र के रूप में किया गया था। सितंबर 1947 में, यानी ब्रिटिश हुकूमत के खत्म होने के महज एक महीने बाद, लुईस माउंटबेटन ने मोहम्मद अली जिन्ना को एक कला प्रदर्शनी का मानद अध्यक्ष बनने के लिए आमंत्रित किया था। माउंटबेटन जहां भारत तो वहीं जिन्ना पाकिस्तान के गवर्नर जनरल थे। माउंटबेटन ने ब्रिटिश हुकूमत के अंतिम वायसराय के रूप में विभाजन की देखरेख की थी और तब वह भारत के गवर्नर जनरल थे। माउंटबेटन का कद उस समय बिल्कुल वैसा ही था जैसा 1950 के बाद भारतीय गणराज्य के राष्ट्रपति का है।
माउंटबेटन और जिन्ना की आपस में नहीं बनती थी। 1973 में एक इंटरव्यू में माउंटबेटन ने जिन्ना को "कमीना" कहा था। फिर भी, 1947 में, दोनों गवर्नर जनरल थे, माउंटबेटन भारत के और जिन्ना पाकिस्तान के। जिन्ना को आमंत्रित करना महज एक औपचारिकता थी। लेकिन तब जिन्ना ने इसका विरोध किया। क्योंकि इस पर हिंदुस्तान की जगह इंडिया लिखा हुआ था। तब जिन्ना ने माउंटबेटन को लिखा, 'यह अफसोस की बात है कि कुछ रहस्यमय कारणों से हिंदुस्तान ने 'इंडिया' शब्द अपना लिया है, जो निश्चित रूप से भ्रामक है और इसका उद्देश्य भ्रम पैदा करना है।'
पाकिस्तान और हिंदुस्तान चाहते थे जिन्ना
दरअसल जिन्ना चाहते थे कि डिटेल में लिखा हो, "पाकिस्तान और हिंदुस्तान कला की प्रदर्शनी।" लेकिन माउंटबेटन को यह स्वीकार्य नहीं था। आखिरकार जिन्ना ने निमंत्रण वैसे ही स्वीकार कर लिया। यह कोई अकेली घटना नहीं थी। मुस्लिम लीग ने विभाजन से पहले "यूनियन ऑफ इंडिया" (भारत संघ) नाम पर आपत्ति जताई थी। कुछ टिप्पणीकारों ने तर्क दिया है कि इंडिया नाम पर जिन्ना की आपत्ति से पता चलता है कि उनका अंतिम लक्ष्य पूर्ण विभाजन के बजाय किसी प्रकार का ढीला संघ या परिसंघ बनाना था।
इंडिया नाम को लेकर भारतीय संघ के भीतर भी विवाद शुरू हो गया था। ब्रिटिशों ने उपमहाद्वीप में अपने साम्राज्य के नाम के रूप में इंडिया शब्द को चुना था जो ग्रीक मूल का है। इंडिया नाम को लेकर संविधान सभा में भी खूब बहस हुई थी। बाद में तय हुआ कि दोनों का इस्तेमाल किया जाएगा। इंडियन आर्मी से लेकर संयुक्त राष्ट्र की सीट तक, भारतीय संघ को ब्रिटिश इंडिया द्वारा प्राप्त अधिकांश कानूनी उपाधियां विरासत में मिलीं हैं।
लोग इंडिया या भारत कहने के लिए स्वतंत्र हैं: न्यायालय ने 2016 में याचिका खारिज करते हुए कहा था
उच्चतम न्यायालय ने सभी उद्देश्यों के लिए ‘इंडिया’ को ‘भारत’ कहे जाने का निर्देश देने का अनुरोध करने वाली एक जनहित याचिका 2016 में खारिज करते हुए कहा था कि लोग देश को अपनी इच्छा के अनुसार इंडिया या भारत कहने के लिए स्वतंत्र हैं। तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश टी एस ठाकुर और न्यायमूर्ति यू यू ललित की पीठ ने 2016 में महाराष्ट्र के निरंजन भटवाल द्वारा दायर जनहित याचिका खारिज करते हुए कहा था, ‘‘भारत या इंडिया? आप इसे भारत कहना चाहते हैं, कहिये। कोई इसे इंडिया कहना चाहता है, उन्हें इंडिया कहने दीजिए।’’