फ्रांस में हो रहे चुनाव, भारत में हुई वोटिंग, 3 राज्यों में बने थे मतदान केंद्र
France Election: अधिकारियों ने चार स्थानों पर अलग-अलग मतदान केंद्र बनाए थे, जिसमें दो पुदुचेरी, एक चेन्नई में और एक कराईकल में था। फ्रांस की महावाणिज्य दूत लिसे टैलबोट बैरे ने भी अपना वोट डाला।
फ्रांस में हो रहे संसदीय चुनावों के पहले दौर में रविवार को भारत में भी फ्रांसीसी नागरिकों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। तमिलनाडु, केरल और केंद्रशासित प्रदेश पुडुचेरी में फ्रांसीसी नागरिकों ने मतदान किया। पुडुचेरी में फ्रांस के महावाणिज्य दूतावास और चेन्नई में ब्यूरो डी फ्रांस ने स्थानीय अधिकारियों की मदद से चुनाव का आयोजन किया। इन जगहों पर 4,550 फ्रांसीसी नागरिक हैं।
अधिकारियों ने चार स्थानों पर अलग-अलग मतदान केंद्र बनाए थे, जिसमें दो पुडुचेरी, एक चेन्नई में और एक कराईकल में था। फ्रांस की महावाणिज्य दूत लिसे टैलबोट बैरे ने भी अपना वोट डाला।
फ्रांस में रिकॉर्डतोड़ मतदान
फ्रांस में पहले चरण के संसदीय चुनाव में रविवार को 65.5 प्रतिशत तक मतदान हुआ। वहीं, पिछले चुनाव 2022 में 47.5 फीसदी मतदान हुआ था। अनुमान लगाया जा रहा है कि नाजी युग के बाद सत्ता की बागडोर पहली बार राष्ट्रवादी और धुर-दक्षिणपंथी ताकतों के हाथों में जा सकती है। देश में तीन साल पहले दो चरणों में हो रहे संसदीय चुनाव सात जुलाई को संपन्न होंगे।
फ्रांस में संसदीय चुनाव के लिए रविवार सुबह आठ बजे मतदान शुरू हुआ। चुनाव परिणाम के रुझान देर रात आने शुरू होंगे। बंपर मतदान से कयास लगा जा रहा है कि मैक्रों को इस चुनाव में झटका लग सकता है। बावजूद इसके वह राष्ट्रपति बने रहेंगे। इस मध्यावधि चुनाव में मैक्रों का 'टुगेदर फॉर द रिपब्लिक' गठबंधन, मरीन ले पेन की नेशनल रैली (आरएन), न्यू पॉपुलर फ्रंट अलायंस मैदान में हैं।
चुनाव परिणाम संबंधी पूर्वानुमान के अनुसार संसदीय चुनाव में 'नेशनल रैली' की जीत की संभावना है। नया वामपंथी गठबंधन 'न्यू पॉपुलर फ्रंट' भी व्यापार समर्थक मैक्रों और उनके मध्यमार्गी गठबंधन 'टुगेदर फॉर द रिपब्लिक' के लिए चुनौती पेश कर रहा है। 'नेशनल रैली' का नस्लवाद और यहूदी-विरोधी भावना से पुराना संबंध है और यह फ्रांस के मुस्लिम समुदाय की विरोधी मानी जाती है।
मध्यावधि चुनाव घोषणा की थी
इस साल जून की शुरुआत में यूरोपीय संसद के चुनाव में 'नेशनल रैली' से मिली करारी शिकस्त के बाद मैक्रों ने फ्रांस में मध्यावधि चुनाव की घोषणा की थी। यूरोपीय संघ में बड़ी हार के कारण राष्ट्रपति मैक्रों ने समय से पहले इसी महीने संसद भंग कर दिया था।
महंगाई बड़ा मुद्दा
कई फ्रांसीसी मतदाता महंगाई और आर्थिक चिंताओं से परेशान हैं और वे राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के नेतृत्व से भी निराश हैं। मरीन ले पेन की आव्रजन विरोधी 'नेशनल रैली' पार्टी ने इस असंतोष को चुनाव में भुनाया है और उसे विशेष रूप से टिकटॉक जैसे ऑनलाइन मंचों के जरिये हवा दी है।
परिणाम का असर
चुनाव परिणाम से यूरोपीय वित्तीय बाजारों, यूक्रेन के लिए पश्चिमी देशों के समर्थन और वैश्विक सैन्य बल एवं परमाणु शस्त्रागार के प्रबंधन के फ्रांस के तौर-तरीके पर काफी प्रभाव पड़ने की संभावना है।
इसलिए राष्ट्रपति बने रहेंगे मैक्रों
इस चुनाव से राष्ट्रपति पद का फैसला नहीं होगा, क्योंकि मौजूदा राष्ट्रपति मैक्रों का कार्यकाल 2027 तक है और उन्होंने निर्धारित समय से पहले पद न छोड़ने की बात कही है। भले ही उन्हें ऐसे प्रधानमंत्री के साथ काम करना पड़े, जिससे उनकी राय न मिलती हो। मैक्रों को संसद के निचले सदन यानी नेशनल एसेंबली में बहुमत रखने वाले समूह से प्रधानमंत्री चुनना होगा।
अगर संसदीय चुनावों में धुर दक्षिणपंथियों या वामपंथियों को जीत मिलती है तो उनके सामने 'कोहैबिशन' वाली स्थिति होगी। यह वह स्थिति होती है जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री का संबंध अलग-अलग राजनीतिक समूहों से होता है और इस तरह कार्यकारी शक्तियां विभाजित हो जाती हैं।
चुनाव की प्रक्रिया
- भारत की तरह फ्रांस में भी संसद के दो सदन हैं।
- संसद के उच्च सदन को सीनेट और निचले सदन को नेशनल असेंबली कहा जाता है।
- नेशनल असेंबली के सदस्य को आम जनता द्वारा चुना जाता है।
- सीनेट को सदस्यों को नेशनल असेंबली के सदस्य और अधिकारी मिलकर चुनते हैं।
राष्ट्रपति का चुनाव अलग
- फ्रांस में राष्ट्रपति का कार्यकाल पांच साल का होता है।
- पूरा चुनाव दो चरणों में होता है।
- चुनाव में मतदान प्रतिशत का अहम रोल होता है।
- पहले चरण के चुनाव में 50% तक वोट लाने वाला उम्मीदवार विजयी घोषित होता है।
- अगर ऐसा नहीं होता है तो दूसरे चरण का चुनाव होता है।
संसद में दलीय स्थिति
- 577 सदस्य नेशनल एसेंबली में हैं
- 289 सीटें बहुमत के लिए जरूरी
- 169 सीटें हैं मैक्रों की रेनेसां पार्टी की
- 88 सीटें हैं नेशनल रैली के पास