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AAP को समर्थन देना थी बड़ी गलती? दिल्ली से कैसे साफ होता गया कांग्रेस का पत्ता

एमसीडी में आम आदमी पार्टी जीत की ओर है वहीं कांग्रेस का हाल यह है कि डबल डिजिट में पहुंचना मुश्किल है। 2013 में आम आदमी पार्टी को समर्थन देने के बाद से उसके बुरे दिन दिल्ली में शुरू हो गए।

Ankit Ojha लाइव हिंदुस्तान, नई दिल्लीWed, 7 Dec 2022 08:05 AM
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राजधानी दिल्ली में एमसीडी का चुनाव परिणाम आगे की राजनीतिक दशा और दिशा तय करने वाले हैं। अब तक के नतीजों और रुझानों के मुताबिक एमसीडी पर आम आदमी पार्टी का कब्जा होने जा रहा है। इसके अलावा भाजपा भी कांटे की टक्कर जरूर दे रही है लेकिन 250 सीटों वाले निकाय में बहुत से काफी दूर है। बात करें कांग्रेस की तो उसके सामने दिल्ली में अपने अस्तित्व को बचाने की चुनौती है। ऐसा लगता है कि कांग्रेस सिंगल डिजिट में ही रह जाएगी। दिल्ली विधानसभा में आज कांग्रेस का एक भी प्रतिनिधि नहीं है। सवाल यह है कि क्या 2013 में आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनाना कांग्रेस की गलती थी?

कांग्रेस से आप ने छीन लिया था मुख्य विपक्षी का भी ताज
कांग्रेस एमसीडी में कब्जा करना तो दूर मुख्य विपक्षी पार्टी भी बनने नहीं जा रही है। अगर आम आदमी पार्टी की भी जीत होती है तो भाजपा मुख्य विपक्षी पार्टी होगी। साल 2017 में जब आम आदमी पार्टी ने पहली बार एमसीडी का चुनाव लड़ा था तभी उसने कांग्रेस से मुक्य विपक्षी होने का ताज छीन लिया था। आम आदमी पार्टी ने पहले ही चुनाव में 48 सीटें जीत ली थीं। 

दिल्ली का चुनावी इतिहास
दिल्ली में अब तक सात बार विधानसभा के चुनाव हुए हैं। इसमें कांग्रेस ने चार बार और भाजाप ने एक बार सरकार बनाई है। शीला दीक्षित दिल्ली में तीन बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। पहले ही चुनाव में केवल भाजपा ने जीत दर्ज की थी इसके बाद लगातार दिल्ली की विधानसभा में कांग्रेस का ही कब्जदा रहा। दिल्ली में पहला विधानसभा चुनाव 1952 में हआ था लेकिन 1967 के बाद से 1992 तक दिल्ली की विधानसभा भंग थी। हालांकि महानगर परिषद का चुनाव तब भी हुआ करता था। यहां हमेशा से ही चुनावी रण भाजपा और कांग्रेस के बीच होता रहा है लेकिन आम आदमी पार्टी की एंट्री के बाद सारे समीकरण ही बदल गए।

1993 में जब दिल्ली विधानसभा का चुनाव हुआ तो भाजपा के मदनलाल खुराना यहां के मुख्यमंत्री बने। इसमें भाजपा ने 70 और कांग्रेस ने 49 सीटें जीती थीं। लेकिन 1998 में प्याज की बढ़ती कीमत ने भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया और शीला दीक्षित मुख्यमंत्री बनीं। इसके बाद 2003 और 2008 मे भी कांग्रेस ने शीला दीक्षित की नेतृत्व में सरकार बनाई। 

2013 में पलट गया खेल
2013 के चुनाव में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की एंट्री हो चुकी थी। इस चुनाव में भाजपा ने 32 सीटें जीतीं लेकिन बहुमत से दूर रह गई। इसके बाद केजरीवाल ने कांग्रेस से बाहर से समर्थन लिया और मुख्यमंत्री बन गए। हालांकि 49 दिनों के बाद ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया और दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। 2015 में फिर से चुनाव हुए और अरविंद केजरीवाल बहुमत के साथ मुख्यमंत्री बन गए। इसके बाद 2020 में एक बार फिर आप की सरकार बनी लेकिन कांग्रेस की हालत यह हुई कि उसे विधानसभा का मुंह देखना नसीब नहीं हुआ।  
 

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