हाई कोर्ट शाहजहां नहीं है कि शाहजहांबाद बसा दे... क्यों अदालत ने कही यह बात
यह अदालत शाहजहां नहीं है और हम शाहजहांबाद को फिर से बनाने नहीं जा रहे हैं। गुरुवार को दिल्ली हाई कोर्ट ने चांदनी चौक इलाके के विकास को लेकर दायर 15 साल पुरानी याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही।...
यह अदालत शाहजहां नहीं है और हम शाहजहांबाद को फिर से बनाने नहीं जा रहे हैं। गुरुवार को दिल्ली हाई कोर्ट ने चांदनी चौक इलाके के विकास को लेकर दायर 15 साल पुरानी याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही। जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और अनूप जयराम भामभानी ने कहा, 'यह मामला 2007 से ही लंबित है। हम मुद्दों को अनंतकाल तक के लिए नहीं रख सकते। इस मामले को 15 साल हो चुके हैं। अब इसका कोई अर्थ नहीं रह गया है।' अदालत ने याची एनजीओ मानुषी संगठन से कहा कि वह अपनी अर्जी वापस ले सकता है। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि चांदनी चौक इलाके के पुनर्विकास से जुड़ी सिविक संस्थाओं को मामले की सुनवाई के दौरान दिए गए आदेशों का पालन करना होगा।
एनजीओ ने वकील इंदिरा उन्नीनायर के जरिए यह अर्जी दाखिल की थी। वकील इंदिरा उन्नीनायर ने गरुवार को केस की सुनवाई के दौरान कहा कि यह मामला बीते 15 सालों से चल रहा है। इस केस के दौरान अदालत की ओर से दिए गए अलग-अलग आदेशों के चलते इसका मकसद काफी हद तक पूरा हो गया है। हालांकि अर्जी को वापस लेने की मांग का सीनियर एडवोकेट संजीव रल्ली ने विरोध किया। चांदनी चौक सर्व व्यापार मंडल का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ने कहा कि इस मामले में अदालत की ओर से जो आदेश दिए गए थे, उनका पालन सही ढंग से नहीं किया गया है।
इसके अलावा चीफ नोडल ऑफिसर ने चांदनी चौक से जुड़ी परियोजनाओं को लेकर रिपोर्ट मांगी है। बेंच ने कहा कि याची को अर्जी वापस लेने से रोका नहीं जा सकता है। लेकिन रल्ली ने कहा कि अदालत को पहले यह जानना चाहिए कि उसकी ओर से दिए गए आदेशों का कितना पालन हुआ है। इस पर जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल ने कहा, 'क्या अदालत का काम चांदनी चौक में चल रही परियोजनाओं की मॉनिटरिंग करना है? यदि उनकी ओर से पालन नहीं होता है तो आप अवमानना की अर्जी दायर करें। यह अदालत शाहजहां नहीं है। यह अदालत शाहजहांबाद को बसाने नहीं जा रही है।'