दिल्ली में खेला कर पाएंगे कन्हैया कुमार? लंबी तैयारी में कांग्रेस, लेकिन इस बात का है डर
37 वर्षीय कन्हैया कुमार राजधानी में पार्टी के लिए एक बड़ी भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं। बता दें कि यह वही सीट है जो चार साल पहले दिल्ली में हुए भीषण दंगे में सबसे ज्यादा प्रभावित हुई थी।
कांग्रेस पार्टी ने हाल ही में आगामी लोकसभा चुनाव के लिए दिल्ली, पंजाब और उत्तर प्रदेश से 10 उम्मीदवारों की सूची जारी की। पार्टी ने चांदनी चौक संसदीय सीट से जेपी अग्रवाल, उत्तर पूर्वी दिल्ली से कन्हैया कुमार और उत्तर पश्चिम दिल्ली से उदित राज को मैदान में उतारा है। राष्ट्रीय राजधानी में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ रही हैं। आप चार सीटों पर और कांग्रेस तीन सीटों चुनाव लड़ रही है। उत्तर पूर्वी दिल्ली से कन्हैया कुमार की उम्मीदवारी काफी दिलचस्प है। उनका मुकाबला दो बार के भाजपा सांसद मनोज तिवारी से है। सत्तारूढ़ दल ने मनोज तिवारी को छोड़कर दिल्ली के सभी सांसदों का टिकट काट दिया है।
दिल्ली की सत्ता पर लंबे समय तक काबिज रही कांग्रेस फिलहाल नीचे की ओर जा रही है। ऐसे में उत्तर पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट का नतीजा चाहे जो भी हो, लेकिन 37 वर्षीय कन्हैया कुमार राजधानी में पार्टी के लिए एक बड़ी भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं। बता दें कि यह वही सीट है जो चार साल पहले दिल्ली में हुए भीषण दंगे में सबसे ज्यादा प्रभावित हुई थी।
वोटों का ध्रुवीकरण करने में मदद मिलेगी?
भाजपा नेताओं का तर्क है कि तेजतर्रार छात्र एक्टिविस्ट से नेता बने कन्हैया की एंट्री से इस सीट पर वोटों का ध्रुवीकरण करने में मदद मिलेगी। उनका ये भी कहना है कि वे 'कम्युनिस्ट बनाम सनातन धर्म' नैरेटिव को लेकर पब्लिक में जाएंगे। यानी साफ है कि भाजपा कन्हैया की वामपंथी और जेएनयू पृष्ठभूमि को लेकर खूब हमले करने वाली है। हालांकि, कांग्रेस नेताओं की मानें तो पार्टी यहां लंबा खेल खेलने के इरादे से कन्हैया को लेकर आई है। कांग्रेस पार्टी की नई सहयोगी आम आदमी पार्टी (आप) को भी इसका एहसास है।
AAP के सूत्रों ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि पार्टी ने खुद एक समय पर कन्हैया को शामिल करने पर "गंभीरता से विचार" किया था। उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस कन्हैया का अच्छी तरह से इस्तेमाल करती है तो वह (राष्ट्रीय राजधानी में) कुछ जमीन हासिल कर सकती है। कन्हैया फिलहाल एक शिक्षित व्यक्ति, प्रभावशाली वक्ता, धाराप्रवाह हिंदी बोलने वाला, एक पूर्वांचली चेहरा और एक राष्ट्रीय नाम हैं। दिल्ली में अपने राजनीतिक पैर जमाने वाले एक कार्यकर्ता के रूप में, कन्हैया दोनों पार्टियों के लिए सही विकल्प माने जा रहे हैं।
'कन्हैया को होनहार मानते हैं राहुल'
रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, "कांग्रेस आलाकमान, खासकर राहुल (गांधी) जी, कन्हैया को ऐसे होनहार कांग्रेसियों में से एक मानते हैं, जिन्हें न केवल पार्टी की विचारधारा बल्कि संगठन के लिहाज से भी कमान सौंपी जा सकती है।" राजधानी में पार्टी के साथ लगभग तीन दशकों से जुड़े एक अनुभवी कांग्रेस नेता ने कहा, “कन्हैया अभी सिर्फ 37 साल के हैं, पार्टी उन्हें बड़ी जिम्मेदारियां देगी, खासकर संगठनात्मक स्तर पर। इन चुनावों में वह चाहे जो भी हासिल कर पाएं, लेकिन एक बढ़ता हुआ वर्ग है जो उन्हें भावी पीसीसी अध्यक्ष के रूप में देखता है।”
राहुल की टीम का हिस्सा रहे कन्हैया
लोकसभा चुनाव में ये कन्हैया की दूसरी कोशिश होगी। उन्हें 2019 के चुनावों में सीपीआई के टिकट पर अपने मूल राज्य बिहार की बेगुसराय सीट पर हार मिली थी। हालांकि जब से वे कांग्रेस में आए हैं, उन्हें राहुल का करीबी माना जाने लगा है। वर्तमान में, वह कांग्रेस स्टूडेंट बॉडी, नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया के इनचार्ज हैं और इस लिहाज से वह कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य हैं। वह राहुल गांधी की दोनों भारत जोड़ो यात्राओं का हिस्सा थे। कांग्रेस ने अपने पीसीसी प्रमुख अरविंदर सिंह लवली और पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित जैसे अन्य नेताओं के बजाय उन्हें उत्तर पूर्वी दिल्ली का टिकट दिया है। कन्हैया का मुकाबला अपने साथी पूर्वांचली और उत्तर पूर्वी दिल्ली से दो बार सांसद रहे भाजपा के मनोज तिवारी से होगा।
लेकिन इस बात का है डर...
हालांकि, कांग्रेस के भीतर सभी लोग कन्हैया को टिकट देने के पक्ष में नहीं हैं। कई लोगों को आशंका है कि न केवल वह हारेंगे, बल्कि वह पार्टी की कम्युनिस्ट झुकाव वाली ऐसी छवि को मजबूत करेंगे, जो "राष्ट्र-विरोधियों" का समर्थन करती है। कुछ लोग राजधानी के लिए पार्टी के पूर्वांचली चेहरे के रूप में कन्हैया की पसंद पर भी सवाल उठाते हैं। एक नेता ने कहा, "कन्हैया बिहार के भूमिहार हैं और राज्य के अन्य समुदायों जैसे ब्राह्मण, क्षत्रिय और यादव की तुलना में दिल्ली में उनकी संख्या बहुत कम है।"