बचत भी सुरक्षा भी, भारत ने एक तीर से किए दो शिकार; हर साल ऐसे बचा रहा करोड़ों रुपये
ब्लैक बॉक्स की कीमत 50 लाख रुपये से भी नीचे लाने की योजना है। एचएएल अधिकारियों के अनुसार अब भारत में निर्मित किसी भी विमान के लिए विदेशों से ब्लैक बाक्स आयात करने की जरूरत खत्म हो गई है।
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रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने के लिए बनाए जा रहे स्वदेशी उपकरणों से देश को हर साल भारी बचत भी हो रही है। हिन्दुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा निर्मित ब्लैक बॉक्स से अब तक सरकार को करोड़ों रुपये की बचत हो चुकी है। जिस ब्लैक बाक्स को विदेशों से एक करोड़ रुपये में आयात किया जाता था, वह एचएएल में महज 60 लाख में तैयार हो रहा है।
एचएएल के एक अधिकारी ने बताया कि ब्लैक बाक्स वह उपकरण है जो चालक दल से जुड़े सभी संदेशों को रिकॉर्ड करता है। यदि कोई विमान दुर्घटनाग्रस्त होता है तो ब्लैक बाक्स की रिकार्डिंग के आधार पर कारणों का पता लगाया जाता है। अमेठी स्थित एचएएल के सेंटर फार एक्सीलेंस में इसका निर्माण किया जा रहा है।
एचएएल के अनुसार आने वाले दिनों में ब्लैक बॉक्स की कीमत 50 लाख से भी नीचे लाने की योजना है। एचएएल अधिकारियों के अनुसार अब भारत में निर्मित किसी भी विमान के लिए विदेशों से ब्लैक बाक्स आयात करने की जरूरत खत्म हो गई है।
फ्लाइट डाटा रिकॉर्डर एचएएल ने एक अलग उपकरण फ्लाइट डाटा रिकॉर्डर भी तैयार किया है। विमान के क्रैश होने की स्थिति में यह अलग हो जाता है। समुद्र में गिरने पर यह पानी में तैरने लगता है और सैटेलाइट से लिंक हो जाता है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि पानी में डूबे विमान को ट्रैक करने में मदद मिलती है। इसे ड्रोनियर विमानों में लगाया जा रहा है।
रखरखाव पर आने वाले खर्च में भी भारी कमी
एचएएल के अधिकारियों ने बताया कि देश में ब्लैक बॉक्स का निर्माण होने से दोहरी बचत हुई है। पहला, ब्लैक बॉक्स की कीमत में 40 फीसदी की आरंभिक बचत होती है। दूसरा, रखरखाव पर आने वाले खर्च में भी भारी कमी हुई है। पहले इसे विदेशी एजेंसियों को ही सौंपना पड़ता था, अब यह कार्य एचएएल स्वयं करता है।
जब इसकी रिकार्डिंग की जरूरत पड़ती है, तो विदेशों से विशेषज्ञ बुलाने पड़ते थे, लेकिन अब भारतीय विशेषज्ञ ही यह काम पूरा कर सकते हैं। खरीद प्रक्रिया में लगने वाले समय और आपूर्ति में विलंब से भी छुटकारा मिला है।