2002 के सहारे 2022 जीतने की कोशिश में बीजेपी, अहमदाबाद से समझें समीकरण
गुजरात विधानसभा चुनाव के दूसरे और अंतिम चरण के लिए प्रचार अभियान शनिवार शाम पांच बजे समाप्त हो गया। दूसरे चरण में 5 दिसंबर को 93 विधानसभा क्षेत्रों में मतदान होगा, जिसमें 833 उम्मीदवार मैदान में हैं।
गुजरात में विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण के लिए प्रचार शनिवार को थम हो गया। गुजरात का इस बार का चुनाव कई मायनों में काफी अहम माना जा रहा है। सत्ताधारी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (BJP) सत्ता में बने रहने के लिए कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रही है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो राज्य की सत्ताधारी पार्टी बीजेपी 2002 के सहारे 2022 को जीतने की कोशिश कर रही है। बीजेपी ने अहमदाबाद में नरोदा विधानसभा क्षेत्र से मनोज कुकरानी की 30 साल की बेटी पायल कुकरानी को मैदान में उतारा है। 2002 के गुजरात दंगे में नरोदा के नरोदा पाटिया जनसंहार केस में मनोज कुकरानी को उम्र कैद की सजा मिली हुई है। अब बीजेपी ने मनोज की बेटी को टिकट दे दिया है।
हिंदू बहुल नरोदा सीट 1990 के बाद से बीजेपी का गढ़ रही है क्षेत्र की अधिकांश आबादी के लिए पायल है एक असाधारण विकल्प हैं। सीट पर जातीय समीकरण की बात करें तो यहां सिंधी और प्रवासी वोटर अहम भूमिका निभाते हैं। सिंधी वोटरों की संख्या 60 हजार के करीब है। इतने ही प्रवासी वोटर भी हैं। 48 हजार ओबीसी हैं। इसके अलावा इस सीट पर 4000 मुस्लिम वोटर हैं। दलित, पटेल गुजराती क्षत्रिय, गुजराती ब्राह्मण आदि को मिलाकर वोटरों की संख्या करीब 2.2 लाख के आसपास पहुंच जाती है। ऐसे में बीजेपी के लिए मनोज कुकरानी से बेहतर उम्मीदवार कोई नहीं हो सकता है।
बीजेपी-कांग्रेस और आप में लड़ाई
कांग्रेस पार्टी के मनोज डोडवानी यहां राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के सिंबल पर चुनाव लड़ रहे हैं। एनसीपी जो कि गुजरात में कांग्रेस के साथ गठबंधन का हिस्सा है। दूसरी ओर अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी ने ओम प्रकाश तिवारी को मैदान में उतारा है। आप ने ओम प्रकाश तिवारी को मैदान में उतारकर ब्राह्मण वोटरों को साधने का प्रयास किया है।
पिता का जिक्र करने से बचती रहीं हैं पायल
इस चुनाव में सबसे कम उम्र की उम्मीदवारों में से एक पायल ने चुनाव प्रचार अभियान में युवाओं के साथ वरिष्ठ नागरिकों को अपनी तरफ मोड़ने का भरपूर प्रयास किया है। चुनाव प्रचार के दौरान पायल ने अपने पिता का जिक्र नहीं किया। टिकट की मांग को लेकर भाजपा को लिखे अपने औपचारिक पत्र में, उन्होंने इस तथ्य को रेखांकित किया कि उनके पिता पूर्व मंत्री माया कोडनानी के साथ नरोदा पाटिया मामले में जेल गए थे। पत्र में बताया गया था कोडनानी ने 1998, 2002, और 2007 में नरोदा सीट जीती थी। सजा होने के बाद साल 2012 के विधानसभा चुनाव में कोडनानी को बदल दिया गया। यह बात जरूर है कि सत्ताधारी पार्टी चुनाव प्रचार के दौरान केवल और केवल विकास की बात करते रही है।
कर्फ्यू राज का मुद्दा भी उठा
चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी की ओर से कांग्रेस पर निशाना साधने के लिए 'कर्फ्यू राज' का मुद्दा भी उठाया गया। बीजेपी नेताओं ने कहा कि कांग्रेस के सरकार में गुजरात में कर्फ्यू बहुत आम बात हो गई थी। गुजरात चुनाव प्रचार के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि बीजेपी के पिछले 27 साल के शासन में पैदा हुआ राज्य के युवाओं को कर्फ्यू के बारे में कोई जानकारी नहीं है, लेकिन आपमे में कई लोग होंगे जो 250 दिनों तक चलने वाले कर्फ्यू को देखा होगा। कांग्रेस ने दंगाइयों का समर्थन किया। राज्य में 2002 के बाद से शांति कायम है।
बीजेपी का गढ़ रहा है अहमदाबाद
अहमदाबाद शहर में 16 विधानसभा सीटें हैं, 11 पूर्व में और पांच पश्चिम में हैं। दशकों से बीजेपी ज्यादातर सीटें जीतती रही है। मणिनगर सीट जो कभी नरेंद्र मोदी का गढ़ हुआ करता था और नारनपुरा सीट जो अमित शाह का गढ़ माना जाता था। इन सीटों पर आज भी बीजेपी का कब्जा है। बीजेपी अपने वफादार पाटीदार वोटरों की बदौलत साल 2017 के चुनाव में नारोल, निकोल और ठक्करबपानगर में जीत सुनिश्चित की थी। ये वो दौर था जब कांग्रेस की कहीं न कहीं लहर थी और उसे 77 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। हालांकि, अहमदाबाद में बीजेपी ने 16 में 12 सीटों पर कब्जा जमाया था।
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