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कैसा है बरनावा का लाक्षागृह, जमीन में दबी राख, अब भी शापित मानते हैं लोग

मेरठ के पास बरनावा में लाक्षागृह पर हिंदुओं को कानूनी जीत हासिल हो गई है। बताया जाता है कि यह वही जगह है जहां दुर्योधन ने लाख का घर बनाकर पांडवों को मारने की साजिश की थी।

Ankit Ojha लाइव हिन्दुस्तान, मेरठTue, 6 Feb 2024 02:26 PM
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राजधानी दिल्ली से लगभग 100 किलोमीटर दूर हिंडन और कृष्णा नदी के  संगम के पास एक ऐतिहासिक टीला है। बीते 53 सालों से इस जगह को लेकर विवाद चल रहा था। हिंदू पक्ष इसे महाभारत कालीन लाक्षागृह बता रहा तो वहीं मुस्लिम पक्ष इसे दरगाह बता रहा था। कोर्ट ने इस मामले में मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज कर दी। यह केस मेरठ की अदालत में 1970 में फाइल किया गया था। इसके वाद में लाक्षागृह गुरुकुल के संस्थापक ब्रह्मचारी महाराज थे। वहीं मुकीम खान मुस्लिम पक्ष की तरफ से थे। फिलहाल दोनों का ही निधन हो चुका है। 

कैसा दिखता है लाक्षागृह
बरनावा नाम का गांव मेरठ से करीब 40 किलोमीटर की दूरी पर है। यह इलाका सुनसान ही नजर आता है। कहा जाता है कि यह महाभारत काल की जगह है जहां पर दुर्योधन औऱ शकुनि ने पांडवों को मारने के लिए लाख के महल का निर्माण करवाया था। बरनावा का नाम भी वार्णाव्रत का अपभ्रंश माना जाता है। यहां एक ऊंचा टीला है और उसके आसपास टूटी हुई दीवारें हैं। दीवारों पर कुछ जले हुए के निशान आज भी देखे जा सकते हैं। 

मुस्लिमों ने टीले के आसपास की जमीन पर दावा किया था और कहा था कि यह कब्रिस्तान और दरगाह की जमीन है। एएसआई सर्वे में भी यहां महाभारत काल के साक्ष्य मिलने की बात कही गई है। राजस्व रिकार्ड में भी इस जगह का नाम लाक्षागृह के नाम से ही दर्ज किया गया है। कोर्ट में हिंदू पक्ष ने बताया था कि यहां आज भी सुरंग मौजूद है जिसकी मदद से पांडव बच निकले थे। इसके अलावा लाख के किले की बड़ी सी ईंट जमीन के अंदर राख और शिव मंदिर के अवशेष मौजूद हैं। यह जगह एएसआई द्वारा संरक्षित है। 

कैसे हैं आज के हालात
कहा जाता है कि महाभारत काल में वर्णावत उन गावों में शामिल था जिनकी मांग श्रीकृष्ण ने दुर्योधन से की थी। श्रीकृष्ण ने पांडवों औऱ दुर्योधन की संधि करवाने और युद्ध टालने के लिए केवल पांच गांव मांगे थे जिसमें वर्णावत भी शामिल था। ये पांच गांव ऐसे थे जो कि हस्तिनापुर साम्राज्य की  अर्थव्यवस्था में बड़ी भूमिका निभाते थे। अगर पांडवों को ये गांव मिल जाते तो वे आराम से अपना राज्य बसा सकते थे। हालांकि दुर्योधन इस बात पर सहमत नहीं हुआ था। मौजूदा हालात की बात करें तो इस जगह पर विरले हीलोग आते हैं। 

यहां एक छोटा सा बोर्ड लगा है जिसमें लाक्षागृह बरनावा लिखा हुआ है। इसमें बताया गया है कि यह पांडवकालीन है। यहां लोग ना के बराबर ही आते हैं। 1952 में यहां एएसआई की देखरेख में खुदाई हुई थी। इसमें कई वर्ष पुराने मिट्टी के बर्तन मिले थे। इन बर्तनों की उम्र 4500 साल पुरानी बताई गई। लोगों का कहना है कि अब भी यहां खुदाई की जाए तो बहुत कुछ पाए जाने की संभावना है। 

क्यों शापित मानते हैं लोग
यहां के स्थानीय लोग इस जगह को शापित भी मानते आए हैं। इसीलिए यहां आसपास लोगों ने निर्माण नहीं किया है। उनका  कहना है कि यहां बस्ती बसना संभव नहीं है। इस लाक्षागृह में जब आग लगवाई गई तो बहुत सारे लोग मर गए थे। इसके बाद से यह जगह उजाड़ ही पड़ी रही। यहां ज्यादा परिवर्तन नहीं हुआ। 

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