चीन-पाक जैसे दुश्मनों की अब खैर नहीं, सेना को मिलेगा खतरनाक हथियार; जानें खासियत
डीआरडीओ ने जोरावर टैंकों को विकसित किया है, जिसका ट्रायल शुरू हो गया है। इस हल्के टैंकों को जल्द सीमा की निगरानी के लिए भारतीय सेना को सौंपा जाएगा।
भारतीय सीमा पर आंख गड़ाए दुश्मन देश पाकिस्तान और चीन की अब खैर नहीं है। अब भारत का 'जोरावर' दुश्मन देशों की हर एक हरकत का मुंहतोड़ जवाब देगा। भारतीय सैन्य हथियारों और उपकरणों का निर्माण करने वाली कंपनी डीआरडीओ ने जोरावर टैंक को विकसित किया है, जिसका ट्रायल शुरू हो गया है। इस हल्के टैंकों को जल्द सीमा की निगरानी के लिए भारतीय सेना को सौंपा जाएगा। रक्षा अधिकारियों ने न्यूज एजेंसी एएनआई को बताया कि नए इंजन के साथ हल्के टैंकों को 100 किलोमीटर से अधिक दूरी तक चला कर टेस्ट किया गया। इस साल अप्रैल तक इसे भारतीय सेना को सौंपे जाने की उम्मीद है।
डीआरडीओ कंपनी अपनी साझेदार लार्सन एंड टुब्रो (एल-एंड-टी) के साथ मिलकर हल्के जोरावर टैंक का उत्पादन कर रही है। इस हल्के टैंक को पहले रेगिस्तान और ऊंचाई वाले स्थानों पर परीक्षण के बाद दिसंबर तक भारतीय सेना को सौंपा जाना था, लेकिन जर्मनी से इंजन आपूर्ति में देरी के कारण परियोजना में देरी हुई है।
ऐसे हुआ अमेरिकी कंपनी से डील
टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक, रक्षा के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि महीनों की बातचीत के बावजूद जर्मन कंपनी राजनयिक हस्तक्षेप के बाद भी समय पर इंजन देने के लिए प्रतिबद्ध नहीं हो सकी। इस देरी ने हल्के टैंक को तैयार करने में बाधाएं आ रही थी। परिणामस्वरूप, अमेरिकी कंपनियों के साथ जुड़ने का निर्णय लिया गया और कमिंस के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया।
क्या है प्रोजेक्ट जोरावर?
भारतीय सेना के मुताबिक, उसे लद्दाख के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में 354 हल्के टैंकों की आवश्यकता है। इनमें से एल-एंड-टी और डीआरडीओ 59 टैंकों का निर्माण करेगी, जबकि शेष टैंकों का उत्पादन बोली प्रक्रिया के बाद अन्य भारतीय कंपनियों द्वारा किया जाएगा। भारतीय लाइट टैंक की विकास योजना को प्रोजेक्ट जोरावर नाम दिया गया है। इस टैंक में एआई इंटीग्रेटेड, ड्रोन युद्ध क्षमताएं और सक्रिय सुरक्षा प्रणाली जैसी आधुनिक विशेषताएं शामिल होंगी।
एल-एंड-टी और डीआरडीओ द्वारा बनाया जा रहा जोरावर टैंक के9 वज्र ऑटोमेटिक तोपखाने के चेसिस पर आधारित है, जो मौजूदा वक्त में सर्विस में है और सेना के लिए इसे भारत में बनाया गया है। हल्के टैंक उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों और द्वीप क्षेत्रों सहित विभिन्न इलाकों में प्रभावी ढंग से काम करने में सक्षम होंगे। इसके अतिरिक्त, तेजी से तैनाती के लिए उनका हवाई-परिवहन योग्य होना आवश्यक है। भारतीय सेना ने पर्याप्त मारक क्षमता, सुरक्षा, निगरानी और संचार क्षमताओं वाले हल्के और फुर्तीले प्लेटफॉर्म के महत्व पर जोर दिया है।
होगी एलएसी पर तैनाती
हल्के टैंक की आवश्यकता तीन साल पहले तब पैदा हुई जब चीन ने पूर्वी लद्दाख में विवादित क्षेत्रों में बड़ी संख्या में सैनिकों और भारी टैंकों को तैनात किया। अप्रैल 2020 में एलएसी पर चीन द्वारा नए प्रकार के 15 हल्के टैंकों की तैनाती से लाभ मिला। जवाब में, भारतीय सेना ने कई टी-72 और टी-90 टैंक तैनात किए, जो भारी थे और मैदानी इलाकों और रेगिस्तानों में ऑपरेशन के लिए डिजाइन किए गए थे। मगर आने वाले दिनों में भारतीय सेना हल्के टैंकों के साथ अपनी सीमाओं के बेतहर निगरानी और सुरक्षा कर पाएगी।
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