अब नहीं करेंगे नशा, राणा सांगा से करारी हार के बाद बाबर ने पूरी सेना को खिलाई थी कसम
- राणा सांगा से हार के बाद मुगल बादशाह बाबर बहुत घबरा गया था। इसके बाद उसने खुद भी कसम खाई कि वह शराब नहीं पिएगा और पूरी सेना को भी कुरान पर हाथ रखकर नशा छोड़ने की कसम खिलाई थी।

समाजवादी पार्टी के नेता रामजी लाल सुमन के राणा सांगा पर दिए गए विवादित ब बयान के बाद सियासी संग्राम छिड़ गया है। हिंदू महासभा की महिला मोर्चा की जिलाध्यक्ष मीरा राठौर ने रामजी लाल सुमन की जीभ काटकर लाने पर 1 लाख के इनाम की घोषणा कर दी है। रामजी लाल सुमन राज्यसभा सांसद हैं। रामजी ने कहा था कि बाबर को लाने वाले राणा सांगा थे और इब्राहिम लोधी को हराने के लिए उन्होंने बाबर के साथ समझौता कर लिया था और भारत आने का न्योता दिया था।उन्होंने कहा था कि बाबर की आलोचना की जाती है तो राणा सांगा की क्यों नहीं की जाती।
कौन थे राणा सांगा?
राणा सांगा मेवाड़ के राजपूत शासक थे। वह रिश्ते में महाराणा प्रताप के दादा लगते थे। उनका जन्म 12 अप्रैल 1482 को हुआ था। उनका नाम महाराणा संग्राम सिंह था। उनके पिता का नाम राणा रायमल था। तीन भाइयों में वह सबसे छोटे थे। उनके शासनकाल में राजपूताना का लोहा माना जाता था। उनके बड़े भाइयों के नाम कुंवर पृथ्वीराज, जयमल थे।
कैसे फूट गई थी राणा सांगा की आंख
कहा जाता है कि तीनों काजकुंवरों में उत्तराधिकार को लेकर संघर्ष हो गया जिसमें राणा सांगा की एक आंख फूट गई। पहले पृथ्वीराज राणा बने लेकिन बाद में संग्राम सिंह को राणा बनाया गया। 27 साल की उम्र में ही उन्होंने मेवाड़ की राजगद्दी संभाल ली थी। 1509 में अजमेर के राजपूतों के सहयोग से वह मेवाड़ की राजगद्दी पर बैठे थे। उनका शासनकाल 1509 से 1528 तक 19 साल रहा। उनका शासन पश्चिम में सिंधु नदी से लेकर पूर्व में ग्लालियर तक था। उन्होंने राजपूत राज्यों को एक छत्र के नीचे ला खड़ा किया था।
कैसे हुई बाबर की एंट्री
1517 में दिल्ली में सुल्तान इब्राहिम लोधी तख्तनशीं था। इब्राहिम लोधी भी क्रूर शासक था ऐसे में राजपूतों से उसकी दुश्मनी थी। लाहौर के गवर्नर दौलत खान ने इब्राहिम लोधी को तख्त से उतारने के लिए बाबर को न्योता दिया था। एक किताब के मुताबिक राणा सांगा भी चाहते थे कि दिल्ली की गद्दी से इब्राहिम लोधी को उतारा जाए। उधर आलम खान ने बाबर से हाथ मिलाया और दिल्ली की तरफ कूच हो गया। हालांकि इब्राहिम लोधी के सामने आलम खान की हार हो गई। उधर बाबर ने अपनी फौज के साथ सिंधु घाटी से भारत की तरफ कूच कर दिया। पानीपत में बाबर और इब्राहिम लोधी में युद्ध ठन गया।
29 अप्राल 1526 को बाबर और इब्राहिम लोधी के बीच युद्ध हुआ और दिल्ली पर बाबर का कब्जा हो गया। इब्राहिम लोधी मारा गया और इसके साथ ही भारत में मुगल वंश का शासन शुरू हो गया। किताब में कहा गया है कि राणा सांगा को आगरा की गद्दी की इच्छा थी लेकिन बाबर ने आगरा की गद्दी देने से इनकार कर दिया। बाबरा ने आगरा पर भी कब्जा कर लिया। बाबर के आगे अब राणा सांगा रोड़े की तरह थे। एक निजाम ने बाबर और महाराणा सांगा को लड़वा दिया।
बाबर ने बयाना में अपनी फौज भेज दी। निजाम के भाई अलीम खान ने मुगलों की सेना का अगुआई की। निजाम युद्ध हार गया और उसने बाबर के सामने सरेंडर कर दिया। 11 फरवरी 1527 को बाबर ने राणा सांगा के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया। चित्तौड़ से राणा सांगा की सेना भी कूच कर गई। युद्ध में राणा सांगा के साथ राजकुमार महमूद खान लोधी भी था। बाबर ने अपनी आत्मकथा में भी राणआ सांगा को ताकतवर और बहादुर बताया है। राणा सांगा ने बाबर की सेना को हरा दिया।
नशा छोड़ने की खाई कसम
बाबर की सेना राणा सांगा से हारने के बाद एकदम हताश हो गई। बाबर का मानना था कि नशे की लत की वजह से उसे हार कासामना करना पड़ा है। उसने अपनी पूरी सेना को कुरान पर हाथ रखवाकर नशा छोड़ने की कसम खिलाई। उधर राणा सांगा की सेना कई राजाओं की सेनाओं से मिलकर बनी थी। उनमें आपस में भी मतभेद थे। 12 मार्च 1527 को भीर महाराणा और बाबर के बीच युद्ध शुरू हो गया। इस बार युद्ध में मुगलों ने गन पाउडर का इस्तेमाल किया। उधर राणा सांगा के साथी राजा भी धोखा देने लगे। एक राजा ने बाबर के साथ हाथ मिा लिया। इस युद्ध में राणा सांगा के माथे पर एक तीर लग गया और वह बेहोश हो गए। उन्हें रणक्षेत्र से दूर ले जाया गया।
इस युद्ध में बाबर जीत गया। हालांकि राणा सांगा के साथ युद्ध में बाबर की सेना के पसीने छूट गए थे। महाराणा ने 1519 में गुजरात-मालवा की सेना के साथ युद्ध लड़ा। 1527 में खानवा में बाबर के खिलाफ युद्ध लड़ा। बयाना में बाबर को परास्त किया। लोधी के खिलाफ खतोली और बाड़ी की लड़ाई लड़ी और इब्राहिम लोधी को हराया। कहा जाता है कि अपने जीवन में उन्होंने 100 युद्ध लड़े। इस दौरान उनके शरीर पर 80 घाव हो गए थे। उन्हें अपनी एक आंख और अपना एक हाथ तक गंवाना पड़ा था। बाबर ने अपनी आत्मकथा में भी राणा सांगा की बहादुरी को बखाना है।