शाही को मारो एक नहीं 2 AK-47 दूंगा; पूर्व IPS ने बताई श्रीप्रकाश शुक्ला और सूरजभजान की दोस्ती की कहानी
- उन्होंने बताया कि अगर टेंडर फॉर्म जमा करने के लिए इन दोनों के गैंग से इतर कोई आता तो उनसे फॉर्म छीन ली जाती थी और उसे फाड़ दिया जाता था। जबरदस्ती करने पर गोली मार दी जाती थी।
बिहार के सूरजभान सिंह और उत्तर प्रदेश के श्रीप्रकाश शुक्ला का संबंध अपराध की दुनिया में गुरु-चेले का रहा है। जब केंद्र सरकार में रेलवे मंत्री बिहार के नेताओं को बनाया जाता था, उस समय में पूर्वांचल के गुंडों का रेलवे की ठेकेदारी में दबदबा हुआ करता था। इस दौरान सूरजभान सिंह भी रेलवे में ठेकेदारी किया करता था। उसने कई बार गोरखपुर के आसपास के इलाकों में काम करने की कोशिश की, लेकिन उसे वीरेन्द्र प्रताप शाही के गुंडे खदेड़ दिया करते थे। इस बात का खुलासा एक पॉडकास्ट के दौरान पूर्व आईपीएस अधिकारी राजेश पांडेय ने की है, जिन्होंने श्रीप्रकाश शुक्ला के एनकाउंटर के लिए बनाए गए एसटीएफ का नेतृत्व किया था।
पत्रकार शुभांकर मिश्रा के साथ पॉडकास्ट के दौरान उन्होंने सूरभान सिंह और श्रीप्रकाश शुक्ला के रिश्तों को लेकर कई राज खोले हैं। उन्होंने कहा, 'एक मर्डर के पाद श्रीप्रकाश शुक्ला बैंकॉक भाग गया था। जब वह वापस लौटा तो उसे सूरजभान सिंह ने आश्रय दिया।' उन्होंने कहा कि यह वह दौर था जब रेलवे में पेपर टेंडर हुआ करता था। रेलवे से यह टेंडर पेपर कौन खरीदकर लेकर जा रहा है, यह देखने के लिए एक तरफ हरिशंकर तिवारी और दूसरी तरफ वीरेंद्र शाही के लोग खड़े रहते थे। जो लेकर जाता था तो सभी का नाम लिखा जाता था। उन्होंने बताया कि अगर टेंडर फॉर्म जमा करने के लिए इन दोनों के गैंग से इतर कोई आता तो उनसे फॉर्म छीन ली जाती थी और उसे फाड़ दिया जाता था। जबरदस्ती करने पर गोली मार दी जाती थी।
पूर्व आईपीएस राजेश पांडेय आगे बताते हैं, टेंडर फॉर्म सूरजभान सिंह जमा करना चाहते थे। उन्हें किसी स्थानीय दबंग की जरूरत थी। इसी दौरान सूरजभान को श्रीप्रकाश शुक्ला के बारे में बताया गया। सूरजभान सिंह जब गोरखपुर आया करता था तब वह अपने साथ दो-दो एके-47 लेकर आता था। श्रीप्रकाश शुक्ला को नए और ब्रांडेड हथियार का काफी शौक था। वह कपड़े भी ब्रांडेड पहनता था। एक मुलाकात के दौरान श्रीप्रकाश शुक्ला ने सूरजभान से कहा कि दादा आप मुझे एक एके-47 दे दीजिए।
राजेश पांडेय बताते हैं, 'सूरजभान सिंह ने श्रीप्रकाश शुक्ला से छूटते ही कहा, एक नहीं दो एके-47 दूंगा, लेकिन वीरेंद्र शाही को मार दो। इसपर श्रीप्रकाश शुक्ला ने सूरजभान से कहा, ठीक है, कोशिश करते हैं। आप साथ रहिएगा। इसे मैं चलाऊंगा। इसके बाद गोरखपुर में श्रीप्रकाश शुक्ला और वीरेंद्र शाही की मुलाकात हो जाती है। श्रीप्रकाश शुक्ला पहली बार एके-47 से फायरिंग करता है। इसमें शाही का गनर मारा गया। शाही के पैंरों में गोली लगी और उसकी जान बच गई।'
इस घटना के बाद श्रीप्रकाश शुक्ला ने सूरजभान से कहा, 'यह उसका मुकद्दर था कि वह बच गया। मैंने अपना काम कर दिया। मुझे एके-47 देकर ही मोकामा जाइएगा।' हालांकि सूरजभान अपनी शर्तों पर कायम था। उसने कहा, 'नहीं, शाही को मारोगे उसके बाद ही तुम्हें दोनों एके-47 दूंगा। यह जरूरी काम है क्योंकि शाही के रहते हम गोरखपुर में रेलवे का ठेका नहीं ले पा रहे हैं। इसके बाद से वह वीरेंद्र शाही का श्रीप्रकाश शुक्ला का पीछा करना शुरू कर दिया।'