दलित गांव पर हमले के 98 दोषियों की उम्रकैद की सजा पर रोक, घरों में आग लगाने का था आरोप
- फैसला दोषियों द्वारा दायर अपील के बाद आया, जिसमें उन्होंने कोप्पल जिले के अदालत द्वारा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत दी गई सजा को चुनौती दी थी।
कर्नाटक उच्च न्यायालय की धारवाड़ बेंच ने बुधवार को 2014 में कोप्पल जिले के एक दलित गांव पर हुए हमले के मामले में 98 दोषियों को दी गई उम्रकैद की सजा को निलंबित कर दिया। यह फैसला दोषियों द्वारा दायर अपील के बाद आया, जिसमें उन्होंने कोप्पल जिले के अदालत द्वारा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत दी गई सजा को चुनौती दी थी।
इस घटना में 29 अगस्त, 2014 को गंगावती क्षेत्र के मरुकुंबी गांव में दलितों के घरों में आग लगाई गई थी और इस हमले में 30 से अधिक लोग घायल हुए थे। पुलिस द्वारा तैयार चार्जशीट में 117 लोगों को आरोपी ठहराया गया था, जिसमें से जिला अदालत ने 101 लोगों को दोषी ठहराया था। उच्च न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ ने अपने आदेश में कहा कि, "ट्रायल के दौरान सभी आरोपी जमानत पर थे और कोई भी सबूत नहीं है कि उन्होंने इस दौरान जमानत का दुरुपयोग किया हो। पीड़ितों को सामान्य चोटें आई थीं, और जले हुए घरों के फोटो भी रिकॉर्ड पर हैं।"
पीठ ने आगे कहा कि, "हमारा मानना है कि ट्रायल कोर्ट द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों की गहन जांच की आवश्यकता है। इस कारण से, आरोपियों ने जमानत पाने का आधार बना लिया है और उनकी सजा को निलंबित करने का मामला बनता है।" कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ताओं को एक-एक लाख रुपये का व्यक्तिगत बंध पत्र और समान राशि की जमानत देने के बाद रिहा किया जाएगा। साथ ही उन्हें दो सप्ताह के भीतर जुर्माने की राशि जमा करनी होगी, यदि पहले से नहीं किया गया हो।
जाति आधारित हिंसा से जुड़ा यह मामला 28 अगस्त 2014 को गंगावती तालुका के मारकुंबी गांव का है। आरोपियों ने दलित समुदाय के लोगों के घरों में आग लगा दी थी। दलितों को नाई की दुकान और ढाबों में प्रवेश से मना करने को लेकर झड़प शुरू हुई थी। इस घटना के बाद राज्य के कई हिस्सों में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए। अभियोजन पक्ष के अनुसार, इस मामले में 117 लोगों को आरोपी बनाया गया था जिनमें से 16 की सुनवाई के दौरान मौत हो गई।