जब संसद में बेहद डर गई थीं इंदिरा गांधी, मोरारजी देसाई ने बता दिया था 'गूंगी गुड़िया'
- पूर्व पीएम लालबहादुर शास्त्री के निधन के बाद जब इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री बनीं तो सार्वजनिक भाषण देने से वह हिचकिचाती थीं। बजट पेश करते वक्त मोरारजी देसाई ने उन्हें गूंगी गुड़िया कह दिया था।
कांग्रेस ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जयंती पर मंगलवार को उन्हें श्रद्धांजलि दी और देश के प्रति उनके योगदान को याद किया। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने ‘शक्ति स्थल’ पहुंचकर इंदिरा गांधी के स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित की। देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवंबर, 1917 को प्रयागराज में हुआ था। वह जनवरी 1966 से मार्च 1977 तक प्रधानमंत्री रहीं। इसके बाद 1980 में वह फिर से प्रधानमंत्री बनीं।
इंदिरा गांधी पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की इकलौती संतान थीं। उनका पूरा नाम इंदिरा प्रियदर्शिनी नेहरू था। इंदिरा गांधी को उनके कड़े फैसलों की वजह से भी 'आयरन लेडी' कहा जाता था। 1971 में उनके नेतृत्व में भी भारत ने पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए थे और नया देश बांग्लादेश बना दिया था। वहीं उनके एक फैसले की वजह से उनकी हत्या कर दी गई।
इंदिरा गांधी ने राजनीति में डेब्यू मंत्री के तौर पर किया था। लाल बहादुर शात्री के कार्यकाल में वह 1964 से 1966 तक सूचना प्रसारण मंत्री रहीं। उनके निधन के बाद उन्होंने पहली महिला प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली। शुरू में वह भाषण देने से कतराती थीं। वह सार्वजनिक कार्यक्रमों में थोड़ा असहज रहती थीं।
मोरारजी देसाई ने बता दिया था गू्ंगी गुड़िया
1969 में देश का बजट पेश करने के दौरान संसद में वह इतना असहज हो गई थीं कि मोरारजी देसाई ने उन्हें गूंगी गुड़िया बता दिया था। हालांकि इसके बाद इंदिरा गांधी ने अपनी छवि में काफी बदलाव किया। इसके बाद वह जहां भाषण देने जाती थीं, लोगों भीड़ उमड़ पड़ती थी। वह अपनी वाक्पटुता की वजह से भी जनी जाने लगीं।
इंदिरा गांधी ने इंटरकास्ट शादी की थी। 1942 में फिरोज गांधी से उनकी शादी हुई। हालांकि शादी हिंदू रीति-रिवाजों से हुई थी। 1971 में बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने भी उनकी तारीफ करते हुए उन्हें दुर्गा का अवतार बता दिया था। 25 जून 1975 को उन्होंने आपातकाल लगा दिया था। अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में ऑपरेशन ब्लू स्टार चलवाने की वजह से खालिस्तान का समर्थन करने वाले सिख उनसे चिढ़े थे। 31 अक्टूबर 1984 को उनके ही दो सुरक्षाकर्मियों बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने ताबड़तोड़ गोलियां चलाकर उनकी हत्या कर दी थी।