Hindi Newsदेश न्यूज़Husband can give social media photos as evidence of adultery of wife said Punjab Haryana High Court

सोशल मीडिया से भी दिए जा सकते हैं पत्नी की 'बेवफाई' के सबूत, HC की बड़ी टिप्पणी

  • पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा है कि पत्नी के खिलाफ व्यभिचार की शिकायत पर पति सोशल मीडिया के पोस्ट को सबूतों को तौर पर पेश कर सकता है। साथ ही पति इस केस के बाद भरण पोषण के लिए पैसे देने से भी मना कर सकता है।

Jagriti Kumari लाइव हिन्दुस्तान, चंडीगढWed, 2 Oct 2024 02:34 PM
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पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा है कि पत्नी के व्यभिचार के बारे में पति द्वारा सोशल मीडिया से लिए गए सबूतों को परवरिश के लिए पत्नी की याचिका पर फैसला करते समय नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। जस्टिस सुमीत गोयल ने तर्क दिया है कि फैमिली कोर्ट को अपने न्यायिक विवेक के आधार पर किसी भी ऐसे सबूत पर गौर करने का अधिकार है जो उसके मामले के फैसले तक पहुंचने के लिए जरूरी हैं। कोर्ट ने इस मामले में कहा, "पत्नी के व्यभिचार को साबित करने के लिए पति द्वारा प्रस्तुत सोशल मीडिया और ऐसी किसी चीज पर कोर्ट भरण-पोषण और मुकदमे से जुड़े खर्च के फैसले के लिए गौर कर सकता है।"

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह भले ही वह सबूत इंडियन एविडेंस एक्ट और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के प्रावधानों को पूरा करती हो या नहीं लेकिन कोर्ट उस पर विचार कर सकती है। कोर्ट ने कहा, "कानून की व्याख्या न्याय, समानता और विवेक के सिद्धांतों के अनुसार होनी चाहिए और पुरानी व्याख्याओं से बंधी नहीं होनी चाहिए, जो मौजूदा समय में अपनी प्रासंगिकता खो चुकी हैं। सोशल मीडिया टाइमलाइन और प्रोफाइल से मिलने वाली चीजों को प्रतिद्वंद्वी पक्ष अपने मामले को पुख्ता करने के लिए पेश कर सकते हैं।" जस्टिस गोयल ने कहा कि मौजूदा समय में सामाजिक जीवन फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और ऐप से खुले तौर पर जुड़ा हुआ है। कोर्ट ने कहा कि तस्वीरों, टेक्स्ट मैसेज सहित सोशल नेटवर्क के फुटप्रिंट को सबूतों के तौर पर मैप किया जा सकता है और कोर्ट इसका न्यायिक संज्ञान ले सकती हैं।

फैमिली कोर्ट ने भरण-पोषण देने का दिया था आदेश

कोर्ट फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ एक पति द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें उसे अपनी पत्नी को हर महीने 3,000 रुपये का भरण-पोषण और के मुकदमे के खर्च के रूप में 10,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था। पति के वकील ने आरोप लगाया कि महिला के दूसरे पुरुष के साथ संबंध थे और इसलिए वह CrPC की धारा 125 के तहत अंतरिम भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं थी। उन्होंने यह दावा करने के लिए कुछ तस्वीरों का हवाला दिया कि वह किसी अन्य व्यक्ति के साथ रह रही थी। पत्नी द्वारा दायर याचिका की एक कॉपी भी पेश की गई, जिसमें दिखाया गया कि उसने खुद उस व्यक्ति के साथ रहने का दावा किया था।

'कोर्ट सिर्फ पत्नी को न्याय नहीं देता'

हालांकि पत्नी का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने तर्क दिया कि भरण-पोषण की मांग में व्यभिचार की दलील नहीं उठाई जा सकती। यह भी तर्क दिया गया कि पति के पास व्यभिचार के दावे को साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं है। दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने माना कि पति अंतरिम भरण-पोषण और मुकदमेबाजी की खर्च के अनुदान के लिए याचिका का विरोध करने के लिए पत्नी द्वारा व्यभिचार की दलील उठा सकता है। कोर्ट ने टिप्पणी की, "कोर्ट एक संतुलित दृष्टिकोण को दर्शाती है और यह सुनिश्चित करते हुए कि न्याय न केवल पत्नी को दिया जाता है बल्कि जब पत्नी के आचरण से वैवाहिक दायित्वों का उल्लंघन होता है तो पति पर भी अनावश्यक बोझ नहीं पड़ने देता है।" 

पति से भरण-पोषण लेने पर कोर्ट ने लगाई रोक

कोर्ट ने कहा कि दोनों पति-पत्नी के एक-दूसरे के प्रति कुछ दायित्व हैं और उन्हें समान अधिकार प्राप्त हैं। कोर्ट ने जब महिला से तस्वीरों के बारे में पूछा कि वह किस हैसियत से उस व्यक्ति के साथ रह रही थी तब महिला ने इसके बारे में कोई उचित स्पष्टीकरण नहीं दिया है। इसके बाद कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि वह पति से भरण-पोषण और किसी भी तरह के खर्च का दावा नहीं कर सकती है।

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