Explainer: सर्दियों में कैसे उत्तर भारत में है बारिश का रिवाज, मौसम का यह राज बेहद दिलचस्प
- पश्चिमी विक्षोभ भूमध्य सागर और अटलांटिक महासागर से नमी लेकर आता है। यह नमी पाकिस्तान होते हुए भारत में प्रवेश करती है और उत्तर भारत के पहाड़ी और मैदानी इलाकों में बारिश और बर्फबारी का कारण बनती है।
सर्दियों के मौसम में जब मॉनसून की सक्रियता थमी होती है, तब भी उत्तर भारत में बारिश और बर्फबारी क्यों होती है? इसका जवाब है पश्चिमी विक्षोभ। ये विक्षोभ भूमध्य सागर या कैस्पियन सागर में बनते हैं और पांच देशों कजाकिस्तान, ईरान, तुर्कमेनिस्तान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान का सफर तय कर उत्तर भारत में बारिश और बर्फबारी का कारण बनते हैं।
क्या है पश्चिमी विक्षोभ?
पश्चिमी विक्षोभ को एक ‘बहिरूष्ण उष्णकटिबंधीय तूफान’ कहा जा सकता है, जो भूमध्य सागर और आसपास के क्षेत्रों में निम्न दबाव वाले क्षेत्र के रूप में उत्पन्न होता है। यह तूफान ‘वेस्टरली जेट धाराओं’ के साथ पूर्व की ओर बढ़ता है और उत्तर भारत में गैर-मानसूनी बारिश, बर्फबारी और कोहरे का कारण बनता है। इस विक्षोभ के तहत वायु अपने दाब को सामान्य करने का प्रयास करती है, जिससे संतुलन बना रहता है। यह प्रकृति का एक अनूठा चक्र है, जो न केवल मौसम को प्रभावित करता है बल्कि कृषि, खासकर रबी फसलों के लिए भी महत्वपूर्ण होता है।
कैसे करता है काम?
पश्चिमी विक्षोभ भूमध्य सागर और अटलांटिक महासागर से नमी लेकर आता है। यह नमी पाकिस्तान होते हुए भारत में प्रवेश करती है और उत्तर भारत के पहाड़ी और मैदानी इलाकों में बारिश और बर्फबारी का कारण बनती है। इससे सर्दियों में रात के समय न्यूनतम तापमान बढ़ता है, जबकि दिन में तापमान सामान्य से अधिक हो जाता है।
भारत पर क्या होता है प्रभाव
पश्चिमी विक्षोभ का असर मुख्यतः उत्तर भारत में देखने को मिलता है। यह क्षेत्रीय बारिश, हिमपात और कोहरे का मुख्य कारण है। इसके साथ ही यह उत्तर-पश्चिम भारत में शीत ऋतु की बारिश और मानसून से पहले की बारिश का कारण भी बनता है। रबी फसलों जैसे गेहूं, सरसों और चने की खेती के लिए यह बारिश जीवनदायिनी साबित होती है। हालांकि, पश्चिमी विक्षोभ हमेशा फायदेमंद नहीं होता। कई बार यह बाढ़, भूस्खलन, धूल भरी आंधी, ओलावृष्टि और शीत लहर जैसी चरम मौसमी घटनाओं को जन्म देता है। ये घटनाएं न केवल जान-माल का नुकसान करती हैं, बल्कि बुनियादी ढांचे और आजीविका को भी प्रभावित करती हैं।
पिछले कुछ वर्षों में पश्चिमी विक्षोभ का पैटर्न
2022 की शुरुआत में पश्चिमी विक्षोभ के चलते जनवरी और फरवरी में भारी बारिश हुई थी। इसके विपरीत, नवंबर 2021 और मार्च 2022 में बारिश बिल्कुल नहीं हुई। मार्च के अंत में अचानक गर्मी बढ़ी, जो ग्रीष्म लहरों का संकेत था। फरवरी 2022 में बादलों के कारण तापमान गिरकर 19 सालों में सबसे कम दर्ज किया गया। वहीं, 2023 में मार्च में पश्चिमी विक्षोभ उत्तर-पश्चिम भारत से विस्थापित हो गया, जिससे बारिश नहीं हुई और तापमान असामान्य रूप से अधिक रहा। पिछले साल पश्चिमी विक्षोभ की स्थिति सामान्य रही।
ग्लोबल वार्मिंग का असर
हाल के वर्षों में पश्चिमी विक्षोभ की घटनाएं बढ़ी हैं, लेकिन इसके कारण होने वाली बारिश में कमी आई है। विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पीछे आंशिक रूप से ग्लोबल वार्मिंग जिम्मेदार है। तापमान में वृद्धि से मौसम के चक्र और उसकी तीव्रता पर असर पड़ रहा है। मजबूत पश्चिमी विक्षोभ जहां जल की कमी से जुड़ी समस्याओं को कम करता है, वहीं कमजोर विक्षोभ फसल उत्पादन में विफलता का कारण बनता है। किसान और सरकारें इस मौसम चक्र पर निर्भर हैं, क्योंकि यह फसल उत्पादन, जल संकट और ऊर्जा संसाधनों पर सीधा प्रभाव डालता है।