समंदर बनकर लौट तो आए फडणवीस, पर किनारे घर बना चुके एकनाथ शिंदे का क्या होगा
- महाराष्ट्र में महायुति प्रचंड जीत की ओर बढ़ रही है और भाजपा 130 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है। ऐसे में पूर्व सीएम और भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस का पुराना बयान वायरल हो रहा है, जिसमें उन्होंने कहा था कि मेरा पानी उतरता देख घर मत बना लेना।
मी पुन्हा येईं यानी मैं फिर आऊंगा। इस नारे के साथ देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र में पिछला विधानसभा चुनाव लड़ा था। उसके बाद भाजपा 105 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी लेकिन तत्कालीन संयुक्त शिवसेना ने मुख्यमंत्री पद के बिना भाजपा के साथ सरकार में शामिल होने से इनकार कर दिया और फडणवीस को अपने राजनीतिक करियर का पहला बड़ा झटका लगा। इसके बाद फडणवीस ने एनसीपी नेता अजित पवार के साथ वैकल्पिक गठबंधन की तलाश की और सरकार बनाई। हालांकि, यह सरकार मात्र 80 घंटे में गिर गई और उद्धव ठाकरे कांग्रेस तथा एनसीपी के समर्थन से 28 नवंबर 2019 को सीएम बने।
पांच साल बाद खत्म होगा मलाल?
उसी समय बीजेपी नेता और पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र विधानसभा में कहा था, 'मेरा पानी उतरता देख, मेरे किनारे पर घर मत बसा लेना। मैं समंदर हूं, लौटकर वापस आऊंगा!' जाहिर है जब उन्होंने यह बात कही थी तो उनके मन कहीं न कहीं इसका मलाल था कि दूसरी बार महाराष्ट्र का सीएम बनने के बाद तुरंत ही इस्तीफा देना पड़ा था। अब महाराष्ट्र में महायुति की प्रचंड जीत के साथ ही फडणवीस 'समंदर' बनकर लौटे हैं, लेकिन देखना यह है कि महज तीन दिनों में सीएम पद गंवाने का मलाल क्या पांच साल बाद खत्म होगा।
शिंदे दावा छोड़ने को तैयार नहीं
यह सवाल इसलिए भी वाजिब है क्योंकि महायुति को पूर्ण बहुमत मिलते ही एकनाथ शिंदे ने मजबूती से मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी ठोक दी है। शिंदे हथियार डालते नजर नहीं आ रहे हैं।उन्होंने कहा है, ‘मुख्यमंत्री कौन बनेगा, यह एनडीए की बैठक में तय किया जाएगा। ऐसा कुछ फॉर्मूला तय नहीं हुआ था कि सबसे बड़ी पार्टी का सीएम होगा।’
बीजेपी अपने बूते बहुमत के करीब
खबर लिखे जाने तक बीजेपी अकेले 131 सीटों पर आगे चल रही थी और सहयोगी पार्टियों में शिवसेना (शिंदे गुट) 55 सीटों पर तथा एनसीपी 41 सीटों पर आगे चल रही थी। 288 सदस्यों वाली विधानसभा में बीजेपी अपने बूते बहुमत से मात्र 13 सीट पीछे है। बीजेपी के अप्रत्याशित स्ट्राइक रेट के बाद पार्टी में देवेंद्र फडणवीस को सीएम बनाए जाने की मांग उठने लगी है, जो अगले कुछ घंटों में मुखर होगी। पार्टी नेतृत्व के लिए इसे दरकिनार करना आसान नहीं होगा।
पार्षद से शुरू किया था सफर
पार्षद से लेकर नागपुर के सबसे युवा महापौर बने और फिर महाराष्ट्र में भाजपा के पहले मुख्यमंत्री फडणवीस भाजपा के लिए महाराष्ट्र में पोस्टर बॉय रहे हैं। विधानसभा चुनावों में पार्टी के शानदार प्रदर्शन से ऐसा लगता है कि वह तीसरी बार राज्य के शीर्ष पद पर आसीन होंगे। मराठा राजनीति एवं नेताओं के प्रभुत्व वाले राज्य में आरएसएस की पृष्ठभूमि से आए फडणवीस शिवसेना के मनोहर जोशी के बाद राज्य के मुख्यमंत्री बनने वाले दूसरे ब्राह्मण हैं।
हासिल है मोदी-शाह का भरोसा
वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले वह इस पद के लिए स्पष्ट रूप से पहली पसंद थे, जिसका मुख्य कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता अमित शाह दोनों का उन पर विश्वास था। मोदी ने एक चुनावी रैली में उनके बारे में कहा था,'देवेंद्र देश को नागपुर का उपहार हैं।' मोदी ने 2014 के लोकसभा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में हालांकि धुआंधार प्रचार किया था, लेकिन चुनाव में पार्टी की अभूतपूर्व जीत का कुछ श्रेय प्रदेश भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष फडणवीस को भी गया था।
संघ-जनसंघ से है परिवार का नाता
देवेंद्र फडणवीस जनसंघ और बाद में भाजपा के नेता रहे स्वर्गीय गंगाधर फडणवीस के पुत्र हैं। गंगाधर फडणवीस को भाजपा के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी अपना राजनीतिक गुरु कहते हैं। फडणवीस ने युवावस्था में ही राजनीति में कदम रख दिया था, जब वे 1989 में संघ की स्टूडेंट विंग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में शामिल हुए थे। 22 वर्ष की आयु में वे नागपुर नगर निगम में पार्षद बने और 1997 में 27 वर्ष की आयु में इसके सबसे युवा महापौर। उन्होंने अपना पहला विधानसभा चुनाव 1999 में लड़ा और जीत हासिल की। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और लगातार तीन विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की। महाराष्ट्र के कई नेताओं के विपरीत फडणवीस भ्रष्टाचार के आरोपों से बेदाग रहे हैं।
बेदाग रहा है फडणवीस का करियर
फडणवीस को कथित सिंचाई घोटाले को लेकर राज्य की पूर्ववर्ती कांग्रेस-एनसीपी सरकार को घेरने का श्रेय भी दिया जाता है। फडणवीस को 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद झटका लगा, जब तत्कालीन संयुक्त शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद को लेकर चुनाव पूर्व गठबंधन छोड़ दिया, जिससे भाजपा नेता का बहुप्रचारित 'मी पुन्हा येईं'नारा उम्मीद पर खरा नहीं उतर पाया। फडणवीस ने 23 नवंबर 2019 को दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और अजित पवार उपमुख्यमंत्री बनें। हालांकि, सु्प्रीम कोर्ट के आदेश पर विधानसभा में शक्ति परीक्षण से पहले ही फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद से 26 नवंबर को इस्तीफा दे दिया। इसके बाद उद्धव ठाकरे बाद में मुख्यमंत्री बने।
डिप्टी सीएम बनने के लिए नहीं थे तैयार
हालांकि ढाई साल बाद शिवसेना के वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे द्वारा पार्टी तोड़ने के बाद उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा। बड़ी संख्या में नेताओं के शिवसेना छोड़ने और ठाकरे के पद से हटने के बाद कई राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने सोचा कि फडणवीस मुख्यमंत्री बनेंगे। माना जा रहा था कि इस पूरे प्रकरण के पीछे फडणवीस का हाथ था। हालांकि, भाजपा नेतृत्व की योजना कुछ और ही थी और अनिच्छुक फडणवीस को उपमुख्यमंत्री का पद संभालने के लिए कहा गया।