शिव मंदिर विवाद के बीच PM मोदी ने अजमेर शरीफ दरगाह भेजी चादर, तीसरी पारी में पहली बार
- Ajmer Dargah: प्रधानमंत्री मोदी ने अजमेर दरगाह शरीफ पर चादर भेजी है। प्रधानमंत्री बनने के बाद यह लगातार 11वीं बार है। पीएम का यह फैसला ऐसे समय में आया है, जबकि अजमेर शरीफ दरगाह को लेकर विवाद जारी है। कोर्ट ने दरगाह के अंदर शिव मंदिर होने का दावा करने वाली याचिका को स्वीकार किया है।
अजमेर में दरगाह के अंदर शिव मंदिर होने के दावों और उसके ऊपर जारी विवाद के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दरगाह के लिए चादर भेजी है। प्रधानमंत्री पद पर बैठने के बाद नरेंद्र मोदी लगातार अजमेर शरीफ में उर्स के दौरान चादर भेजते रहे हैं। इस बार पीएम ने यह चादर केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री किरेन रिजिजू और भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी को सौंपी, जो कि इसे अजमेर शरीफ लेकर जाएंगे। केंद्रीय मंत्री रिजिजू ने अपन सोशल मीडिया हैंडल पर इस बात की जानकारी दी।
प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी लगातार दस सालों से अजमेर शरीफ पर चादर भेजते रहे हैं। तीसरी बार सरकार बनने के बाद यह उनकी पहली और कुल मिलाकर 11वीं चादर है। पिछले साल, 812 वें उर्स के दौरान पीएम मोदी ने चादर भेजी थी। तब इस चादर को लेकर तत्कालीन केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और जमाल सिद्दीकी अजमेर दरगाह शरीफ गए थे।
दरअसल, पीएम मोदी का यह फैसला ऐसे समय में सामने आया है, जब अजमेर शरीफ दरगाह को लेकर विवाद चल रहा है। इस विवाद की शुरुआत तब हुई जब राजस्थान कोर्ट ने दरगाह को शिवमंदिर बताने वाली याचिका को स्वीकार कर लिया। इस याचिका में कहा गया था कि राजस्थान की अजमेर शरीफ दरगाह वास्तव में भगवान शिव का मंदिर है। कोर्ट ने याचिका को स्वीकार तो किया ही इसके साथ ही तीनों पार्टियों को नोटिस जारी कर दिया। इसके बाद अजमेर दरगाह शरीफ कमेटी ने मुंसिफ कोर्ट में अपील दायर कर अजमेर शरीफ के खिलाफ दायर याचिका को रद्द करने की मांग की। इस अपील पर 24 जनवरी को सुनवाई होनी है।
इस्लाम धर्म की मान्याताओं के अनुसार उर्स के दौरान मजार पर चादर चढ़ाना एक अच्छा काम माना जाता है। इससे आशीर्वाद मिलता है और मन्नतें पूरी होती हैं। भारत की सबसे प्रतिष्ठित सूफी दरगाहों में से एख अजमेर शरीफ दुनियाभर में प्रसिद्ध है। यहां लगने वाले उर्स में हर साल लाखों लोग आते हैं। 28 दिसंबर से शुरू हुआ यह उर्स इस दरगाह का 813वां कार्यक्रम है। यह कार्यक्रम ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की पुण्यतिथी की याद में मनाया जाता है।