कर्नाटक के केसों की जांच नहीं कर पाएगी सीबीआई, कांग्रेस सरकार ने वापस ली परमिशन
कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार ने राज्य की भौगोलिक सीमा के अंदर केसों की जांच करने के लिए सीबीआई को दी गई आम सहमति वापस लेने का फैसला किया है। हालांकि, कानून मंत्री ने इस फैसले का मुख्यमंत्री पर लगे भूमि घोटाले के आरोपों से किसी तरह का संबंध होने से साफ तौर पर इनकार किया है।
कर्नाटक सरकार ने गुरुवार की दोपहर राज्य में मामलों की जांच के लिए सीबीआई को दी गई सामान्य सहमति वापस लेने का फैसला किया है। राज्य के कानून मंत्री एच के पाटिल ने यह जानकारी दी है। हालांकि, पाटिल ने इस फैसले का मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पर लगे भूमि घोटाले के आरोपों से किसी तरह का संबंध होने से साफ तौर पर इनकार किया है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार केंद्रीय जांच एजेंसी (CBI) की "पक्षपातपूर्ण" कार्रवाइयों को उजागर करना चाहती है।
पाटिल ने संवाददाताओं से कहा, "यह MUDA के कारण लिया गया फैसला नहीं है।" इससे आगे उन्होंने कहा, "हमने जितने भी मामले सीबीआई को भेजे हैं, उन मामलों में उन्होंने आरोप पत्र तक दाखिल नहीं किए हैं...जिससे कई मामले लंबे समय से लंबित हैं। उन्होंने हमारे द्वारा भेजे गए मामलों की जांच करने से भी इनकार कर दिया। ऐसे कई उदाहरण हैं। इसलिए हम उनसे सामान्य सहमति वापस ले रहे हैं।"
राज्य की कांग्रेस सरकार ने सीबीआई की परमिशन वापसी का फैसला ऐसे वक्त में लिया है, जब मुख्यमंत्री मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) द्वारा उनकी पत्नी को 14 भूखंड आवंटित किए जाने के मामले में आरोपों का सामना कर रहे हैं। हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने मुख्यमंत्री के खिलाफ केस चलाने की राज्यपाल थावर चंद गहलोत के आदेश को मंजूरी दे दी है। सिद्धारमैया ने इसे चुनौती दी थी। इसके अलावा एक स्थानीय अदालत ने एक दिन पहले ही MUDA भूमि आवंटन “घोटाले” में मुख्यमंत्री के खिलाफ मैसूर में लोकायुक्त पुलिस द्वारा जांच कराने का आदेश दिया है।
इस फैसले के साथ ही कर्नाटक अब उन विपक्ष शासित राज्यों की लिस्ट में शामिल हो गया है, जिन्होंने पहले ही सीबीआई की सहमति रद्द कर दी है। इस लिस्ट में ममता बनर्जी की सरकार वाला पश्चिम बंगाल, डीएमके शासित तमिलनाडु और वामपंथी नेतृत्व वाला केरल शामिल है।
बता दें कि संघीय ढांचे के तहत राज्यों से किसी भी मामले की जांच के लिए सीबीआई को एक आम खुली सहमति मिली हुई होती है लेकिन इसे रद्द कर देने के बाद अब किसी भी राज्य में जांच करने के लिए केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को राज्य सरकारों से लिखित सहमति लेने की जरूरत होगी। सीबीआई दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम के तहत सूचीबद्ध है और इसी से एजेंसी नियंत्रित होती है।
हाल के कुछ वर्षों में विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों और भाजपा के नेतृत्व वाले केंद्र सरकार के बीच कई मुद्दों पर बड़ा विवाद रहा है। इनमें सीबीआई जांच भी एक है। विपक्षी राज्यों का आरोप है कि भाजपा विरोधी नेताओं को निशाना बनाने के लिए, खासकर चुनावों से पहले, सीबीआई जैसी एजेंसियों का गलत इस्तेमाल करती है।