महाराष्ट्र में वोटिंग के बीच खेला, सुशील कुमार शिंदे का निर्दलीय को समर्थन; उद्धव को झटका
- महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव की वोटिंग के बीच बड़ा उलटफेर देखने को मिला है। कांग्रेस के सीनियर नेता सुशील कुमार शिंदे और उनकी बेटी प्रणीति शिंदे ने सोलापुर दक्षिण सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार धर्मराज कडाड़ी को समर्थन कर दिया है।
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव की वोटिंग के बीच बड़ा उलटफेर देखने को मिला है। कांग्रेस के सीनियर नेता सुशील कुमार शिंदे और उनकी बेटी प्रणीति शिंदे ने सोलापुर दक्षिण सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार धर्मराज कडाड़ी को समर्थन कर दिया है। यहां से उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने उम्मीदवार उतारा था, जो कांग्रेस के साथ महाविकास अघाड़ी गठबंधन का हिस्सा है। ऐसे में सुशील कुमार शिंदे के फैसले ने सबको चौंका दिया है। अब देखना होगा कि इस सीट पर उनके समर्थन का क्या असर दिखता है। सुशील कुमार शिंदे वोट डालने पहुंचे थे और जब बूथ से बेटी के साथ बाहर आए तो उन्होंने निर्दलीय कैंडिडेट के समर्थन का ऐलान कर दिया।
अपने स्टैंड के बारे में जानकारी देते हुए सुशील कुमार शिंदे ने कहा, 'मेरा भरोसा है कि धर्मराज कडाड़ी एक अच्छे उम्मीदवार हैं और क्षेत्र के भविष्य के लिए ठीक रहेंगे। शुरुआत में दिलीप माने को कांग्रेस से मौका मिलता दिख रहा था, लेकिन उन्हें AB फॉर्म नहीं मिला। ऐसे में अब हमने धर्मराज के ही समर्थन का फैसला लिया है।' इससे पहले भी शिंदे ने इस सीट को उद्धव सेना के खाते में देने पर हैरानी जताई थी। उनका कहना था कि यहां कांग्रेस का मजबूत जनाधार रहा है। ऐसे में उद्धव सेना के खाते में इस सीट का जाना गलत है।
देश के पूर्व होम मिनिस्टर सुशील कुमार शिंदे ने कहा था, 'यह क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ रहा है। मैं यहां से चुना जा चुका हूं और महाराष्ट्र के सीएम के तौर पर काम करने का मौका मिला था। शिवसेना ने जल्दबाजी में यहां से अमर पाटिल को उम्मीदवार घोषित किया, लेकिन यहां से उनका दावा बनता नहीं है। कांग्रेस ने यह सीट लगातार अपने पास रखी है और उसे जीत मिलती रही है। ऐसे में शिवसेना के खाते में यह सीट देना समझ से परे है।' वहीं उनकी बेटी प्रणीति ने भी पिता की बात को ही सही करार दिया था।
शिंदे का कहना था कि सोलापुर साउथ सीट ऐतिहासिक तौर पर कांग्रेस के पास ही रही है। प्रणीति ने कहा कि यहां तो कांग्रेस का गढ़ रहा है और सीएम तक यहां से जीतकर बने हैं। हम अब तक यहां से अघाड़ी धर्म निभा रहे थे। लेकिन यहां पंढरपुर की तरह फ्रेंडली मुकाबला संभव नहीं था। ऐसी स्थिति में हमने निर्दलीय कैंडिडेट का ही समर्थन करने का फैसला लिया।