पत्नी ने पति की प्रेमिका के खिलाफ दर्ज कराई FIR, हाईकोर्ट बोला- उसका क्या कसूर है
दंपति ने 2016 में शादी की थी। कुछ साल बाद पत्नी ने पति पर मार-पिटाई का आरोप लगाया। पत्नी ने अपने आरोपों में कहा कि उसके पति और पति के माता-पिता ने उसे मानसिक और शारीरिक क्रूरता का शिकार बनाया।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में एक व्यक्ति की प्रेमिका के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि प्रेमिका किसी भी तरह से उसकी रिश्तेदार नहीं है। इस वजह से उसे क्रूरता के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। दरअसल इस शख्स की पत्नी ने उसके और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ क्रूरता का मामला दर्ज कराया था। इस FIR में शख्स की गर्लफ्रेंड का नाम भी शामिल था। उस पर भी 'मानसिक क्रूरता' का आरोप लगाया था।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, अब कोर्ट ने गर्लफ्रेंड को राहत दे देते हुए उसके खिलाफ दर्ज FIR को रद्द कर दिया है। न्यायमूर्ति अनुजा प्रभुदेसाई और न्यायमूर्ति नितिन बोरकर ने 18 जनवरी को प्रेमिका की याचिका स्वीकार कर ली और उसके खिलाफ दिसंबर 2022 में दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया। FIR सुरगना पुलिस स्टेशन (नासिक ग्रामीण) में दर्ज की गई थी। उनके खिलाफ 498A (पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा पत्नी के साथ क्रूरता) सहित आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज कराई गई थी।
क्या है पूरा मामला?
इस दंपति ने जुलाई 2016 में शादी की थी। कुछ साल बाद पत्नी ने पति पर मार-पिटाई का आरोप लगाया। पत्नी ने अपने आरोपों में कहा कि उसके पति और पति के माता-पिता ने उसे मानसिक और शारीरिक क्रूरता का शिकार बनाया। रिपोर्ट के मुताबिक, महिला के पति का एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर था जिसके कारण उनके बीच अक्सर झगड़े होते थे। महिला ने दावा किया कि उसका पति अपनी प्रेमिका से व्हाट्सएप पर बात करता था और उससे शादी भी करना चाहता था।
मामले की सुनवाई करते हुए न्यायाधीशों ने सुप्रीम कोर्ट के 2009 के फैसले का हवाला दिया। इस फैसले में धारा 498 ए के तहत 'क्रूरता' के दायरे को परिभाषित किया गया था। शीर्ष अदालत का कहना है कि आईपीसी की धारा-498 ए का दायरा काफी बड़ा है। इसने अपने फैसले में कहा था कि क्रूरता एक ऐसा आचरण है जो किसी महिला को आत्महत्या करने या उसके जिंदगी, अंगों या स्वास्थ्य (मानसिक या शारीरिक) को गंभीर चोट या खतरा पैदा करने के लिए उकसा सकता है। कोर्ट ने कहा कि "किसी भी स्तर पर एक प्रेमिका या यहां तक कि उसकी उपपत्नी (Concubine) किसी भी अर्थ में रिश्तेदार नहीं होगी।" इसके अलावा, "ऐसी स्थिति में रिश्तेदारी केवल खून या विवाह या गोद लेने को ही माना जाना चाहिए।"
इसी फैसले का हवाला देते हुए मुंबई हाईकोर्ट के न्यायाधीशों ने कहा कि इस प्रकार "आवेदक (प्रेमिका) पति की रिश्तेदार नहीं है"। हाईकोर्ट ने कहा कि महिला के खिलाफ एकमात्र आरोप यह है कि उसका शिकायतकर्ता के पति के साथ एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर है और वह उससे शादी करने के लिए अपनी पत्नी पर तलाक के लिए दबाव डाल रहा है। कोर्ट ने कहा कि प्रेमिका के खिलाफ "उकसाने का कोई आरोप नहीं" है। उन्होंने कहा, "ऐसी परिस्थितियों में, उस पर आपराधिक मुकदमा चलाना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।"