महाराष्ट्र चुनाव में शिवाजी फैक्टर, मूर्ति ढहने से महायुति में दरार! माफी और दोषारोपण के बीच किसे मौका
- मराठा योद्धा शिवाजी की मूर्ति गिरने की घटना पर राज्य भर के लोगों ने आक्रोश व्यक्त किया है। विपक्ष ने सरकार पर निशाना साधते हुए उस पर शिवाजी महाराज का अपमान करने का आरोप लगाया।
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव से पहले सत्ताधारी महायुति गठबंधन सहयोगियों के बीच तनाव बढ़ता नजर आ रहा है। पहले तो लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के चलते महायुति में दरार सामने आई और फिर अब छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा के ढहने से आग भड़क उठी। इस मुद्दे को लेकर शिवसेना, एनसीपी और भाजपा के नेता अलग-अलग स्वर में बात करते दिख रहे हैं। यह जरूर है कि छत्रपति की प्रतिमा गिरने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को माफी मांगी। उन्होंने कहा, 'छत्रपति शिवाजी महाराज... मेरे लिए सिर्फ नाम नहीं हैं, हमारे लिए छत्रपति शिवाजी महाराज आराध्य देव हैं। पिछले दिनों सिंधुदुर्ग में जो हुआ, आज मैं सिर झुकाकर मेरे आराध्य देव छत्रपति शिवाजी महाराज जी के चरणों में मस्तक रखकर माफी मांगता हूं।'
सिंधुदुर्ग जिले की मालवण तहसील में राजकोट किले में स्थापित मराठा योद्धा की 35 फुट ऊंची प्रतिमा 26 अगस्त को ढह गई थी। इसके गिरने के बाद पीएम मोदी की यह पहली टिप्पणी रही। मूर्ति गिरने की घटना पर राज्य भर के लोगों ने आक्रोश व्यक्त किया है। विपक्ष ने सरकार पर निशाना साधते हुए उस पर शिवाजी महाराज का अपमान करने का आरोप लगाया। शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) नेता अंबादास दानवे ने इस मुद्दे पर महाराष्ट्र सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से सवाल किया कि क्या प्रतिमा की ऊंचाई जैसी बारीकियों को तय करने से पहले कोई वैज्ञानिक अध्ययन किया गया था? क्या किसी की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए प्रतिमा की विशिष्ट ऊंचाई तय की गई थी? उन्होंने कहा कि यह मुद्दा महाराष्ट्र की आत्मा से जुड़ा है।
नेवी को ठहराया जाने लगा जिम्मेदार
यह जरूर है कि सत्तारूढ़ गठबंधन की शुरुआती प्रतिक्रिया मिली-जुली थी। सबसे पहले मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का रिएक्शन आया, जिन्होंने कहा कि मूर्ति नौसेना की ओर से बनाई गई थी, न कि महाराष्ट्र सरकार द्वारा। शिंदे ने गुरुवार को कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो वह इस पराक्रमी शासक के 100 बार पैर छूने और घटना के लिए माफी मांगने में संकोच नहीं करेंगे। उन्होंने ने कहा कि विपक्ष के पास राजनीति करने के लिए अन्य मुद्दे भी हैं, लेकिन महाराष्ट्र में पूजनीय शिवाजी महाराज को इससे दूर रखा जाना चाहिए। शिंदे ने कहा कि नौसेना ने मांग की है कि जिस क्षेत्र में प्रतिमा स्थापित की गई है, उसे निरीक्षण के लिए घेर कर अलग कर दिया जाए और पुनर्निर्माण कार्य शुरू किया जाए।
एनसीपी कार्यकर्ताओं का मौन प्रदर्शन
इस बीच, महायुति सरकार में शामिल अजित पवार की पार्टी एनसीपी ने शिवाजी की मूर्ति गिरने के खिलाफ मौन प्रदर्शन किया। साथ ही, इसके लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। एनसीपी कार्यकर्ताओं ने इसे लेकर तहसीलदारों और जिलाधिकारियों को ज्ञापन सौंपा। इसमें प्रतिमा की खराब गुणवत्ता के लिए जिम्मेदार कलाकार और अन्य लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की गई। हालांकि, महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री और एनसीपी प्रमुखय अजीत पवार ने शुक्रवार को राजकोट किले में उस जगह का दौरा किया जहां स्थापित छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा ढह गई थी। उन्होंने उसी स्थान पर शिवाजी महाराज की भव्य प्रतिमा स्थापित करने का संकल्प लिया। उन्होंने शिवाजी को महाराष्ट्र का गौरव और स्वाभिमान बताया।
महाराष्ट्र की राजनीति में ‘शिवाजी फैक्टर’
राजनीतिक जानकार बताते हैं कि शिवाजी की मूर्ति गिरने की घटना को लेकर सरकार काफी सतर्क है। इसका कारण छत्रपति शिवाजी महाराज से जुड़े पिछले विवादों से जुड़ा है। साल 2004 की बात है जब लेखक जेम्स लेन की एक किताब पर महाराष्ट्र में भारी बवाल मचा था। इसमें शिवाजी महाराज के बारे में विवादास्पद बातें लिखी गई थीं। उस वक्त कांग्रेस-एनसीपी का गठबंधन सत्ता में था। गठबंधन ने इसे राजनीतिक मुद्दा बनाते हुए लेखक के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। साथ ही, किताब पर पूरे देश में प्रतिबंध लगाने की मांग उठाई गई। उस साल विधानसभा चुनाव में शिवसेना और भाजपा के प्रति जनता का शुरुआती झुकाव दिख रहा था। इसके बावजूद, शिवाजी का मामला तूल पकड़ने से गठबंधन को सत्ता बरकरार रखने में काफी मदद मिली।
(एजेंसी इनपुट के साथ)