कहानी देवेंद्र फडणवीस की: नागपुर का एक पार्षद कैसे बना महाराष्ट्र का टॉप लीडर, फिर सीएम की रेस में
- फडणवीस का राजनीतिक करियर उनके लिए अब तक एक सुनहरे दौर की तरह रहा है, जिसमें उन्होंने उतार-चढ़ाव तो देखे, लेकिन कभी पीछे नहीं हटे। यही कारण है कि फडणवीस डिप्टी सीएम रहने के बाद भी बेहद मजबूत हैं और अब उन्हें सीएम की रेस में फिर से माना जा रहा है।
महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में भाजपा को सूबे में जोरदार चुनावी जीत मिली है। अब तक भाजपा 233 सीटों पर विजय की ओर है और इसका श्रेय देवेंद्र फडणवीस को जाता है, जो 2014 से 2019 तक मुख्यमंत्री रहे थे और फिलहाल एकनाथ शिंदे के साथ डिप्टी सीएम हैं। फडणवीस का राजनीतिक करियर उनके लिए अब तक एक सुनहरे दौर की तरह रहा है, जिसमें उन्होंने उतार-चढ़ाव तो देखे, लेकिन कभी पीछे नहीं हटे। यही कारण है कि फडणवीस डिप्टी सीएम रहने के बाद भी बेहद मजबूत हैं और अब उन्हें सीएम की रेस में फिर से माना जा रहा है।
कैसे उन्होंने नागपुर नगर निगम के एक पार्षद से लेकर यहां तक का सफर तय किया है। यह कहानी भी दिलचस्प है। 54 साल के देवेंद्र फडणवीस (54) का करियर लचीलेपन और रणनीतिक कौशल का मिश्रण रहा है। फडणवीस का राजनीतिक सफर असाधारण रहा है। एक पार्षद से लेकर नागपुर के सबसे युवा महापौर बनने वाले देवेंद्र फडणवीस ने अपनी पार्टी के भीतर एक प्रमुख नेता के रूप में अपनी स्थिति मजबूत की है। वह शिवसेना के मनोहर जोशी के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने वाले दूसरे ब्राह्मण हैं।
फडणवीस का उत्थान 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले शुरू हुआ, जब उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता अमित शाह का भऱोसा हासिल किया। मोदी ने एक चुनावी रैली के दौरान फडणवीस को ‘नागपुर का देश को उपहार’ कहा और इस तरह से फडणवीस में अपने विश्वास को जाहिर किया था। हालांकि मोदी ने 2014 के लोकसभा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में धुआंधार प्रचार किया था, लेकिन चुनावों में पार्टी की अभूतपूर्व जीत का कुछ श्रेय प्रदेश भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष फडणवीस को भी गया था।
देवेंद्र फडणवीस जनसंघ और बाद में भाजपा के नेता रहे स्वर्गीय गंगाधर फडणवीस के पुत्र हैं। गंगाधर फडणवीस को भाजपा के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी अपना ‘राजनीतिक गुरु’ कहते हैं। देवेंद्र फडणवीस ने युवावस्था में ही राजनीति में कदम रख दिया था, जब वे 1989 में संघ की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में शामिल हुए थे। बाईस वर्ष की आयु में वह नागपुर नगर निगम में पार्षद बने और 1997 में 27 वर्ष की आयु में इसके सबसे युवा महापौर। फडणवीस ने अपना पहला विधानसभा चुनाव 1999 में लड़ा और जीत हासिल की। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और लगातार तीन विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की।
भ्रष्टाचार के आरोपों से बेदाग नेता माने जाते हैं
वह नागपुर दक्षिण पश्चिम सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं और अब तक की मतगणना के परिणाम के अनुसार वह इस चुनाव में भी जीत दर्ज करने की ओर बढ़ रहे हैं। महाराष्ट्र के कई नेताओं के विपरीत, फडणवीस भ्रष्टाचार के आरोपों से बेदाग रहे हैं। महाराष्ट्र के सबसे मुखर नेताओं में से एक, फडणवीस को कथित सिंचाई घोटाले को लेकर राज्य की पूर्ववर्ती कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) सरकार को घेरने का श्रेय भी दिया जाता है। फडणवीस को 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद झटका लगा था, जब तत्कालीन संयुक्त शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद को लेकर चुनाव पूर्व गठबंधन छोड़ दिया।
शिवसेना के अलगाव ने कैसे तोड़ा था फडणवीस का सपना
इससे देवेंद्र फडणवीस का बहुप्रचारित ‘मी पुन्हा येईं (मैं फिर आऊंगा)’ का नारा उम्मीद पर खरा नहीं उतर पाया। फडणवीस ने 23 नवंबर 2019 को दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, जबकि अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली। हालांकि, उच्चतम न्यायालय के आदेश पर विधानसभा में शक्ति परीक्षण से पहले ही फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद से 26 नवंबर को इस्तीफा दे दिया। शरद पवार के नेतृत्व वाली राकांपा के सहयोग से उद्धव ठाकरे बाद में मुख्यमंत्री बने। हालांकि शिवसेना के वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे द्वारा पार्टी तोड़ने के बाद उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा। बाद में एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने।
कैसे 72 घंटे की सरकार के सीएम बने थे फडणवीस, पर टिके नहीं
फडणवीस हालांकि एक राजनीतिक रूप से सक्रिय परिवार से आते हैं, उनके पिता और उनकी एक अन्य संबंधी, दोनों महाराष्ट्र विधान परिषद में रहे, लेकिन फिर भी फडणवीस ने अपनी अलग राजनीतिक पहचान बनाई है। उनका कार्यकाल चुनौतियों से खाली नहीं था। वर्ष 2019 का विधानसभा चुनाव फडणवीस की राजनीतिक दिशा में एक नाटकीय बदलाव लाया। मुख्यमंत्री पद को लेकर शिवसेना अलग हुई तो फिर उन्होंने अजित पवार के साथ वैकल्पिक गठबंधन की तलाश की। हालांकि, यह सरकार अल्पकालिक थी, जो केवल 72 घंटे बाद गिर गई। इसके बाद फडणवीस ने राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता की भूमिका निभाई।
कैसे बेमन से बने डिप्टी सीएम, फिर पूरे मन से किया काम
जून 2022 में, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के भीतर विद्रोह के बाद, फडणवीस को भाजपा नेतृत्व द्वारा शिंदे के अधीन उपमुख्यमंत्री के रूप में सरकार में लौटने का निर्देश दिया गया। हालांकि शुरू में अनिच्छुक, फडणवीस ने बाद में पार्टी नेतृत्व के प्रति अपनी निष्ठा का संकेत देते हुए भूमिका स्वीकार कर ली। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों में राज्य में पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद भी उन्होंने भाजपा और शिंदे गुट के बीच सीट बंटवारे की व्यवस्था को आकार देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।