हिन्दुओं पर जितने अत्याचार हुए सामने आने चाहिए... भागवत के बयान पर क्या बोलीं साध्वी ऋतंभरा
मंदिर-मस्जिद विवादों के फिर से गरमाने पर हाल ही में आए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान पर साध्वी ऋतंभरा की प्रतिक्रिया सामने आई है। उन्होंने रविवार को यहां कहा कि अतीत में हिन्दू समाज पर जितने अत्याचार हुए हैं वो सामने आने ही चाहिए।
हाल ही में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने मंदिर-मस्जिद विवादों के फिर से गरमाने पर पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ लोगों को लग रहा है कि वे ऐसे मुद्दों को उठाकर हिंदुओं के नेता बन सकते हैं। हर दिन एक नया मामला उठाया जा रहा है। इसकी अनुमति कैसे दी जा सकती है? इस बयान को लेकर सामने आ रही साधू संतों की प्रतिक्रियाओं के बीच साध्वी ऋतंभरा का भी बयान सामने आया है। उन्होंने रविवार को यहां कहा कि अतीत में हिन्दू समाज पर जितने अत्याचार हुए हैं वो सामने आने ही चाहिए।
साध्वी ऋतंभरा उज्जैन में विश्व हिंदू परिषद की मातृशक्ति दुर्गा वाहिनी मालवा प्रांत के 'शक्ति संगम' के अवसर पर पहुंची थीं। भगवान महाकाल का दर्शन करने के बाद साध्वी ऋतंभरा संवाददाताओं के सवालों का जवाब दे रही थीं। उनसे जब संवाददाताओं ने विभिन्न धार्मिक स्थलों पर सर्वे के आदेशों और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के इस संबंध में आए बयान पर प्रतिक्रिया जाननी चाही तो साध्वी ऋतंभरा ने कहा- हमें कानून के सहारे अपनी प्राचीन परंपराओं से परिचय पाने का अधिकारी है।
साध्वी ऋतंभरा ने आगे कहा- अतीत के भारत में हिन्दू समाज पर बड़े अत्याचार हुए हैं। हमारे मंदिरों को ध्वस्त किया गया। अतीत में हिन्दू समाज पर जितने अत्याचार हुए हैं वो हर हाल में सामने आने ही चाहिए। यह उसी का उपक्रम है। यह पूछे जाने पर कि मंदिरों के पास गैर हिन्दुओं की दुकानों पर आप क्या कहेंगी। इस पर साध्वी ऋतंभरा ने कहा कि इसकी इजाजत बिल्कुल नहीं दी जानी चाहिए। मंदिरों के आसपास हिन्दू समाज का ही व्यापार चलना चाहिए।
साध्वी ऋतंभरा ने आगे कहा- यदि आप हज करने जाएं और मुसलमान न हों तो आपको प्रवेश नहीं मिलेगा। फिर हमारे यहां इतनी छूट क्यों दी जाती है? यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि लोग छद्म नाम से हमारे यहां व्यापार कर रहे हैं। धार्मिक स्थलों की पवित्रता को बनाए रखने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए। हमारे यहां देवों की आराधना के दौरान खान-पान की पवित्रता सबसे महत्वपूर्ण मानी गई है। इस परंपरा में प्रदूषण नहीं होना चाहिए। स्त्री न अबला है, न असहाय; वह स्वयं सिद्ध और सक्षम है। 25 हजार दुर्गाओं के जोश को देखकर यह विश्वास हो गया है कि स्त्री अपनी रक्षा स्वयं कर सकती है।
रिपोर्ट- विजेन्द्र यादव
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