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Hindi Newsमध्य प्रदेश न्यूज़Not having both hands and one leg have been teaching for the last 33 years

नहीं है दोनों हाथ और एक पैर, पढ़ा रहे पिछले 33 सालों से; पढ़ें एक ऐसे शिक्षक की कहानी जिसे स्कूल में नहीं मिला था एडमिशन

घर खर्च और पढ़ाई में हो रहे खर्च को निकालने के लिए ट्रायसिकल से घर घर जाकर बच्चो की ट्यूशन लेने लगा। एक एसटीडी बूथ पर भी काम किया। 1993 में सिविल जज की परीक्षा पास की लेकिन जॉइनिंग नहीं हो सकी।

Devesh Mishra लाइव हिंदुस्तान, शाजापुरMon, 5 Sep 2022 01:31 PM
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दिव्यांगता की वजह से एक छात्र को स्कूल ने एडमिशन देने से मना कर दिया था। वही छात्र 33 साल से सरकारी स्कूल में बच्चों को पढ़ा रहे हैं। दो बार नेशनल अवार्ड मिल चुका है। यह संघर्ष की कहानी है शाजापुर के सिद्धनाथ वर्मा की जो आज भी शासकीय कन्या माध्यमिक स्कूल हरायपुरा में शिक्षक हैं। इनका एक पैर काम नहीं करता, दोनों हाथ नहीं हैं। एक पैर के दम पर ही ब्लैकबोर्ड पर लिखकर बच्चों को पढ़ाते हैं। इस काम के लिए सन 1998 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और 2007 में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से सम्मान भी मिला।

सिद्धनाथ का जीवन परिचय
शाजापुर की तहसील मोहन बड़ोदिया के छोटे से गांव करजू में 1 जनवरी 1964 में सिद्धनाथ का जन्म हुआ। पिता देवीलाल छोटा सा सैलून चलाते थे। जन्म से ही दोनों हाथ नहीं हैं। बायां पैर दाहिने पैर की अपेक्षा छोटा है। परिवार गरीब था, लेकिन माता-पिता ने उनकी पढ़ाई-लिखाई में कोई कमी नहीं रखी। उनकी दिव्यांगता की वजह से प्राथमिक स्कूल से लेकर हाईस्कूल में एडमिशन तक दाखिला दिलाने में भी माता-पिता को काफी परेशानी उठानी पड़ी। गांव के प्राथमिक स्कूल में 8वीं क्लास तक पढ़ाई पूरी की।

स्कूल ने एडमिशन देने से किया मना
सिद्धनाथ ने बताया कि आगे की पढ़ाई के लिए शाजापुर के शासकीय उच्चतर माध्यमिक स्कूल में कोशिश की, लेकिन वहां एडमिशन देने से मना कर दिया। स्कूल मैनेजमेंट की ओर से कहा गया- क्लास 9 स्कूल के फर्स्ट फ्लोर पर लगती है, वहां तक कैसे पहुंचोगे। मैंने कहा भी कि सीढ़िया चढ़ लूंगा, लेकिन एडमिशन नहीं मिल सका।बाद में अभय पुर गांव के स्कूल में जैसे-तैसे एडमिशन मिला। यहां हाईस्कूल तक पढ़ाई पूरी की। इसके बाद शाजापुर पं. बालकृष्ण शर्मा नवीन महाविद्यालय कॉलेज से स्नातक, एमकॉम और एलएलबी (इंदौर) किया। एलएलबी में क्लास में टॉपर रहा। बीएड भी कंप्लीट किया। साल 1989 में सहायक शिक्षक की नौकरी मिली। तब से ही हरायपुरा के कन्या माध्यमिक स्कूल में टीचर है।

संघर्ष का समय
सन 1989 में नौकरी मिल गई लेकिन इसके पहले का समय बहुत संघर्ष पूर्ण था। 6 भाई बहनो में सबसे बड़ा रहा हूं इसलिए जिम्मेदारी भी बहुत थी। घर खर्च और पढ़ाई में हो रहे खर्च को निकालने के लिए ट्रायसिकल से घर घर जाकर बच्चो की ट्यूशन लेने लगा। एक एसटीडी बूथ पर भी काम किया। 1993 में सिविल जज की परीक्षा पास की लेकिन नियम के कारण जॉइनिंग नहीं हो सकी। इसी दौरान शादी भी हो गई। सिद्धनाथ ने अपनी दो बेटियों को हायर एजुकेशन दिलाई और उनकी शादी की। बेटा ग्रेजुएट कंप्लीट कर चुका है।

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