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पत्नी चुप है इसका मतलब यह नहीं कि वह कमजोर है; मियां बीवी के झगड़े में HC की टिप्पणी

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने कहा है कि यदि कोई पत्नी अपने वैवाहिक जीवन को बचाने के एकमात्र इरादे से धैर्य और चुप्पी बनाए रखती है, तो यह नहीं कहा जा सकता कि यह उसकी कमजोरी है। इसके विपरीत यह उसके वैवाहिक जीवन के प्रति उसकी ईमानदारी को दर्शाता है।

Subodh Kumar Mishra लाइव हिन्दुस्तान, भोपालMon, 23 Dec 2024 05:06 PM
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मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने कहा है कि यदि कोई पत्नी अपने वैवाहिक जीवन को बचाने के एकमात्र इरादे से धैर्य और चुप्पी बनाए रखती है, तो यह नहीं कहा जा सकता कि यह उसकी कमजोरी है। इसके विपरीत यह उसके वैवाहिक जीवन के प्रति उसकी ईमानदारी को दर्शाता है।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया की पीठ एक पत्नी द्वारा पति और ससुरालवालों के खिलाफ दर्ज कराई गई एफआईआर के खिलाफ याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में कहा गया था कि पत्नी ने प्रतिकार के रूप में पति द्वारा तलाक की अर्जी दाखिल करने के बाद यह एफआईआर दर्ज कराई है, इसलिए इसे रद्द किया जाए। पत्नी ने आईपीसी की धारा 498-ए, 323, 294, 506, 34 और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई है।

पीठ ने याचिका को रद्द करते हुए कहा कि अगर यह महसूस करने के बाद कि सुलह संभव नहीं है, एक बहू अपने साथ हुई क्रूरता की शिकायत करते हुए एफआईआर दर्ज कराने का फैसला करती है, तो यह नहीं कहा जा सकता कि यह तलाक की याचिका का प्रतिकार है।

पीठ ने कहा कि महिला का दावा था कि उनकी बेटी के जन्म के बाद ससुरालवालों ने दहेज के रूप में अतिरिक्त 5 लाख रुपये और एक होंडा कार की मांग की। जब उसने कहा कि उसके पिता यह नहीं दे सकते तो उन्होंने उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया। सुलह के सभी प्रयास विफल होने के बाद महिला ने प्राथमिकी दर्ज कराई थी।

एफआईआर को चुनौती देते हुए आवेदकों के वकील ने तर्क दिया कि पति द्वारा तलाक की मंजूरी के लिए याचिका दायर करने के बाद, प्रतिकार के रूप में एफआईआर दर्ज कराई गई थी। दूसरी ओर, पत्नी के वकील ने तर्क दिया कि तलाक की याचिका के बाद एफआईआर का समय इसे जवाबी हमला नहीं बनाता है। बल्कि यह दर्शाता है कि पत्नी अपनी शादी को बचाने की कोशिश में धैर्यवान और सहनशील थी।

इन दलीलों को सुनने के बाद पीठ ने कहा कि एफआईआर और उसमें लगाए गए आरोपों के अनुसार, यह स्पष्ट हो जाता है कि अपनी बहू के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार करने का उन पर लगे आरोप स्पष्ट हैं। जहां तक ​​आवेदकों के वकील द्वारा दी गई दलील का सवाल है कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत एक आवेदन के बाद एफआईआर दर्ज की गई थी, अदालत ने कहा कि अगर पत्नी अपने वैवाहिक जीवन को बचाए रखने के इरादे से धैर्य और चुप्पी बनाए रखती है तो तो यह नहीं कहा जा सकता कि यह उसकी कमजोरी थी, बल्कि यह विवाह के प्रति उसकी ईमानदारी को दर्शाता है।

इसके बाद यह मानते हुए कि एफआईआर में लगाए गए आरोप आवेदकों पर मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त हैं, अदालत ने कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया और याचिका खारिज कर दी।

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