1962 चीन युद्ध में नेहरू ने बुलाया था विशेष सत्र, दिग्विजय सिंह ने PM को क्या याद दिलाया?
मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने मोदी सरकार को भारत और चीन के बीच हुए 1962 में हुए युद्ध के दौरान जवाहरलाल नेहरू के बुलाए स्पेशल सेशन की याद दिलाई। दिग्विजय सिंह ने कहा कि पंडित नेहरू ने यह सेशन तब अटल बिहारी वाजपेयी के अनुरोध पर बुलाया था।

शनिवार को भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर के बाद विपक्षी पार्टियां स्पेशल सेशन बुलाने की मांग कर रही हैं। विपक्ष मुख्यत:कांग्रेस चाहती है कि इस स्पेशल सेशन में पीएम मोदी भी उपस्थित रहें। इस बीच मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने मोदी सरकार को भारत और चीन के बीच हुए 1962 में हुए युद्ध के दौरान जवाहरलाल नेहरू के बुलाए स्पेशल सेशन की याद दिलाई। दिग्विजय सिंह ने कहा कि पंडित नेहरू ने यह सेशन तब अटल बिहारी वाजपेयी के अनुरोध पर बुलाया था। उन्होंने पूछा कि क्या भारत ने तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार कर ली है?
पीएम मोदी की चुप्पी पर सवाल उठाते हुए कहा कि मोदी सर्वदलीय बैठकों में भाग लें और सरकार संसद का विशेष सत्र बुलाए,क्योंकि नए घटनाक्रम-पहलगाम आतंकी हमला,ऑपरेशन सिंदूर और सीमा पार सैन्य टकराव के बीच भारत और पाकिस्तान के बीच बनी समझ है। भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते सैन्य टकराव के बीच शनिवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा घोषित युद्धविराम का जिक्र करते हुए, दिग्विजय सिंह ने कहा कि यह भारत का एक घोषित रुख है कि वह कभी भी तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप (सीमा पार मुद्दों पर) को स्वीकार नहीं करेगा। उन्होंने ट्रंप के बयानों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ने पत्रकारों से कहा, "ट्रंप कब और क्या कहेंगे इसकी कोई गारंटी नहीं है। लेकिन प्रधानमंत्री की चुप्पी ने हमें नाराज कर दिया है। प्रधानमंत्री सर्वदलीय बैठकों में भी भाग नहीं लेते हैं।" उन्होंने कहा कि 1962 में चीन के साथ युद्ध के दौरान,तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अटल बिहारी वाजपेयी की मांग पर संसदीय सत्र बुलाया था।
पूर्व सीएम ने कहा कि हमारी मांग है कि संसद का एक विशेष सत्र बुलाया जाए। कम से कम प्रधानमंत्री को सर्वदलीय बैठकों में भाग लेना चाहिए। यह पूछे जाने पर कि क्या अमेरिका भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता करने की कोशिश कर रहा है, सिंह ने कहा कि कश्मीर पर भारत का एकमात्र अधिकार है। उन्होंने कहा, "जम्मू और कश्मीर को भारत में विलय करने का निर्णय रियासतों पर छोड़ दिया गया था। जिसके बाद,कश्मीर के तत्कालीन महाराजा ने भारत के साथ रहने का फैसला किया।"भारत और पाकिस्तान शनिवार को चार दिनों के तीव्र सीमा पार ड्रोन और मिसाइल हमलों के बाद तत्काल प्रभाव से जमीन, हवा और समुद्र में सभी गोलीबारी और सैन्य कार्रवाई को रोकने के लिए एक समझौते पर पहुंचे।
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