यूनियन कार्बाइड कचरे के निपटान का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, सरकारों को देना होगा जवाब
भोपाल गैस त्रासदी के जानलेवा कचरे के निपटान का मामला अब सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा है। सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर केंद्र, मध्य प्रदेश सरकार और राज्य के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से जवाब तलब किया है।
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भोपाल गैस त्रासदी के जानलेवा कचरे के निपटान का मामला अब सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर केंद्र सरकार के साथ ही मध्य प्रदेश सरकार और राज् के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से जवाब तलब किया है। शीर्ष अदालत ने स्वास्थ्य के अधिकार और इंदौर सहित आसपास के क्षेत्रों के लोगों के लिए जोखिम के मौलिक मुद्दे को उठाने वाली याचिका पर गौर करते हुए उक्त निर्देश जारी किए।
पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस बीआर गवई और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के 3 दिसंबर 2024 और इस साल 6 जनवरी के आदेशों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने पर सहमति जताई। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने पिछले साल दिसंबर में अपने आदेश में अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद भोपाल में यूनियन कार्बाइड साइट को खाली नहीं करने के लिए फटकार लगाई थी।
अधिवक्ता सर्वम रीतम खरे के जरिए सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता पीथमपुर में 337 टन खतरनाक रासायनिक कचरे के निपटान के अधिकारियों के फैसले से चिंतित हैं। याचिकाकर्ता चिन्मय मिश्रा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत पेश हुए। इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के साथ ही मध्य प्रदेश सरकार और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
याचिका में कहा गया है कि निपटान वाली जगह से एक किलोमीटर के दायरे में कम से कम चार से पांच गांव मौजूद हैं। ऐसे में इस जहरीले कचरे के कारण इन गांवों के लोगों का जीवन और स्वास्थ्य अत्यधिक जोखिम में है। यह भी गौर करने वाली बात है कि जिस जगह पर कचरे का निपटान किया जाना है, उस फैक्ट्री से नदी नजदीक है। यह नदी 'यशवंत सागर बांध' को पानी उपलब्ध कराती है।
याचिका में बताया गया है कि 'यशवंत सागर बांध' इंदौर की 40 फीसदी आबादी को पीने का पानी उपलब्ध कराता है। ऐसे में प्रतिवादियों की घोर लापरवाही और अस्पष्टता के कारण हजारों लोगों का जीवन संकट में पड़ सकता है। याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि प्राधिकारियों ने इंदौर और धार जिलों के प्रभावित निवासियों को खतरों के बारे में सूचित नहीं किया है, न ही स्वास्थ्य संबंधी एडवाइजरी जारी की है।
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