Lok sabha Result 2019: बिहार में 161 प्रत्याशियों से ज्यादा वोट नोटा को
यूं तो बिहार में एनडीए को प्रचंड बहुमत मिला है, लेकिन नोटा का बटन भी यहां खूब दबा। राज्य की एक तिहाई सीटों पर नोटा तीसरे स्थान पर रहा। नतीजतन लोकसभा चुनाव में राज्य में विभिन्न सीटों पर लड़ने वाले...
यूं तो बिहार में एनडीए को प्रचंड बहुमत मिला है, लेकिन नोटा का बटन भी यहां खूब दबा। राज्य की एक तिहाई सीटों पर नोटा तीसरे स्थान पर रहा। नतीजतन लोकसभा चुनाव में राज्य में विभिन्न सीटों पर लड़ने वाले 161 निर्दलीय एवं कुछ अन्य छोटे दलों के उम्मीदवारों को मिले कुल वोट से कहीं अधिक वोट नोटा के हिस्से आए। आठ लाख से ज्यादा लोगों ने मतदान प्रतिशत में कुछ इजाफा तो किया लेकिन यह वृद्धि उन्होंने नोटा का बटन दबाकर किया। इससे उन्होंने पूरे सिस्टम को भी कटघरे में खड़ा कर दिया। विशेषज्ञ कहते हैं कि यह दलों और प्रत्याशियों के प्रति बेरुखी दर्शाता है, जिसे लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी माना जा सकता है।
नोटा ने इस चुनाव में नतीजों को भी प्रभावित किया। जहानाबाद इसका सटीक उदाहरण है। इस सीट पर हार-जीत का अंतर महज 1751 वोटों का है। जबकि यहां नोटा को 27 हजार 683 मत मिले। किशनगंज सीट पर कांग्रेस के डॉ. मोहम्मद जावेद को करीब 34 हजार से जीत मिली है, जबकि नोटा को भी यहां लगभग बीस हजार वोट मिले। अगर सबसे ज्यादा मत पाने वाले प्रत्याशी की बात करें तो बेगूसराय में भाजपा उम्मीदवार गिरिराज सिंह को छह लाख 92 हजार से अधिक वोट मिले। वहीं बिहार की सभी सीटों को मिलाकर नोटा के हिस्से आठ लाख 16 हजार 860 वोट आए। नोटा का बटन राज्य में सबसे ज्यादा गोपालगंज में 51 हजार 660 मतदाताओं ने दबाया, जबकि इसका सबसे कम प्रयोग मधुबनी संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं ने किया। यहां 5623 बार नोटा दबे।
इन सीटों पर तीसरे नंबर पर नोटा
बिहार की तेरह सीटों पर नोटा तीसरे स्थान पर रहा। पश्चिम चंपारण लोकसभा क्षेत्र में 45 हजार 699, पूर्वी चंपारण में 22 हजार 706, अररिया सीट पर 20 हजार 618, कटिहार में 20 हजार 584, दरभंगा में 20 हजार 468, गोपालगंज में 51 हजार 660, सारण में 28 हजार 267, समस्तीपुर में 35 हजार 417, भागलपुर में 31 हजार 528, आरा में 21 हजार, 825, गया में 30 हजार 30, नवादा में 35 हजार 147 और जमुई में 39 हजार 496 वोट नोटा पर पड़े।
नोटा संकेत है कि प्रत्याशियों ही नहीं पार्टियों पर भी विश्वास खत्म हो रहा है। रातों-रात दलीय निष्ठाएं बदलने से लोगों का विश्वास घटा है। लोगों की सोच है कि सभी दल और पार्टियां एक तरह के हैं। यह बहिष्कार से पहले की सीढ़ी है। जनतंत्र के लिए यह घातक और चिंतनीय संकेत है।
- एनके चौधरी, समाजशास्त्री
नोटा का पहला कारण है कि जनता जैसा नेता चाहती है, पार्टियां वैसा नहीं दे रहीं। दूसरे मामले में पार्टी बढ़िया है पर प्रत्याशी ठीक नहीं है। उसका बैकग्राउंड संदिग्ध है। तीसरा कारण है कैडर पॉलिटिक्स का खत्म हो जाना। नोटा संकेत है कि जनता की असंतुष्टि दलों और प्रत्याशियों से बढ़ रही है।
- डीएम दिवाकर, राजनीति विश्लेषक
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