इंसान को चलाएंगे रोबोट? जानें मशीन के भरोसे कैसे चलेगी जिंदगी
इस दुनिया में इंसान हैं, तो रिश्ते हैं, गर्मजोशी है, खट्टे-मीठे पल हैं। लेकिन जब दुनिया मशीनों के भरोसे चलने लगेगी तब? ऐसा संभव है, क्योंकि रोबोट अब कुछ भी कर सकते हैं। जैसे हाल ही में खबर आई कि वे...
इस दुनिया में इंसान हैं, तो रिश्ते हैं, गर्मजोशी है, खट्टे-मीठे पल हैं। लेकिन जब दुनिया मशीनों के भरोसे चलने लगेगी तब? ऐसा संभव है, क्योंकि रोबोट अब कुछ भी कर सकते हैं। जैसे हाल ही में खबर आई कि वे प्रजनन भी कर सकेंगे। क्या दुनिया रोबोट्स की हो सकती है? बता रही हैं किरण मिश्रा-
इस बात पर यकीन नहीं होता और डर भी लगता है कि रोबोट धीरे-धीरे इंसानों जैसे हो जाएंगे। पर, विज्ञान इसे सच करने की राह पर आगे बढ़ रहा है। क्योंकि, खबर है कि आने वाले वक्त में रोबोट्स ना सिर्फ चोट लगने और बीमारी होने पर खुद को ठीक कर सकेंगे, बल्कि प्रजनन क्षमता भी विकसित कर लेंगे। दुनिया के पहले जीवित रोबोट ‘जेनोबोट्स’ बनाने वाले वैज्ञानिकों का दावा है कि ये रोबोट अपने जैसे अन्य रोबोट भी पैदा कर सकेंगे। कुछ दशक पहले विश्व में ‘रोबोट क्रांति’ की संभावना पर चर्चा छिड़ी थी, जो अब सच साबित होती दिख रही है। क्योंकि, रोबोट्स में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का प्रयोग अब उसे इनसानी बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ता दिख रहा। अब रोबोट उद्योगों से लेकर घर के कामों में सहायक तक बन गए हैं। कुछ देशों मेंमहामारी के दौरान ऐसे रोबोट्स ने अहम भूमिका निभाई थी। जैसे टेलडॉक रोबोट ने तमिलनाडु के अस्पताल को महामारी के महत्वपूर्ण महीनों के दौरान 40,000 से अधिक रोगियों की जांच करने में मदद की। इटली के कुछ अस्पताल रोगियों के कमरों को कीटाणुरहित करने के लिए यूवीडी रोबोट का उपयोग कर रहे हैं। विश्व के कुछ होटल्स हैं, जहां इनका उपयोग वॉयस गेस्ट कंट्रोल में इस्तेमाल हो रहा है। उद्योगों में तो लंबे समय से ये मौजूद हैं।
भारी-भरकम नहीं रोबोट
कल्पना में रोबोट का नाम लेेते ही भारीभरकम आदमकद लोहे के मानवाकार रोबोट आ जाते हैं। पर सच ये है कि रोबोट का इनसानी आकृति होना कोई जरूरी नहीं है। प्रजनन करने वाले रोबोट्स की बात करें, तो ये आकार में एक मिलीमीटर से भी छोटे हैं, जिन्हें पिछले साल ही दुनिया के सामने पेश किया गया था। ये चल सकते हैं, तैर सकते हैं , खुद को ठीक भी कर सकते हैं। इस साल इन्हें प्रजनन करने में भी सक्षम बना दिया गया है। दरअसल, इस जीते-जागते रोबोट को मेंढक की भ्रूण कोशिका से बनाया गया है। एआई और सुपर कंप्यूटर की मदद से कोशिकाओं को ऐसा आकार दिया गया है, जिससे उनमें प्रजनन की क्षमता विकसित हो गई है। वैज्ञानिकों का दावा है कि ये जीवित रोबोट्स भविष्य में समुद्र, नदी, तालाब आदि में माइक्रो प्लास्टिक की सफाई करने, कैंसर जैसी बीमारियों को रोकने और उम्र को थामने के भी काम आ सकते हैं। तो क्या, दुनिया की बागडोर रोबोट्स के हाथों में जा सकती है?
लेकिन डर भी है
इस सवाल पर कई सालों से तर्क चल रहे हैं। टेक एक्सपर्ट बालेन्दु दाधीच कहते हैं, ‘अगर यह सिलसिला यूं ही चलता रहा, तो कभी रोबोट्स अपने बनाने वाले का नुकसान भी कर सकते हैं, खासकर तब जब उनके भीतर भावनाएं पैदा हो जाएं। बेशक इंसानों के लिए रोबोट की उपयोगिता पर प्रश्न नहीं किए जा सकते, लेकिन इसकी सीमा भी तय होनी चाहिए।’
इंसान का विकल्प नहीं ये मशीनें
टेक एक्सपर्ट अभिषेक भटनागर का कहना है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लाभ को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, पर खतरे भी हैं, क्योंकि ये रोबोट धीरे-धीरे कार्यक्षेत्रों पर भी हावी हो रहे हैं। लेकिन रोबोट्स की वजह से आईटी के क्षेत्र में कई नए रोजगार बने भी हैं। रही बात, इनसानी जिंदगी की जगह ले लेने की, तो भले ही इंसान के हाव-भाव वाले ह्यूमेनॉयड रोबोट बन गए हों, मगर वर्तमान में रोबोट्स में इनसानी इमोशंस, रणनीतिक सोच आदि का अभाव है। मनोवैज्ञानिक, कानूनविद, शिक्षक जैसी कई भूमिकाएं हैं, जिन्हें कभी भी स्वचालित नहीं किया जा सकता है। निकट भविष्य में तो यह संभव नहीं।’
जुझारुपन रोबोट न लें
श्रीबालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीटॺूट के सीनियर कंसल्टेंट साइकाएट्रिस्ट डॉ. प्रशांत गोयल कहते हैं, ‘रोबोट की जितनी संख्या बढ़ेगी, मानव जीवन उससे उतना प्रभावित होगा। यहां यह चिंता भी जायज ही है कि कहीं इंसान पर हावी न हो जाएं रोबोट। लेकिन रोबोट का मूल संचालन तो केवल मानव को ही करना है। इसलिए जरूरी है कि रोबोट से मिलने वाली सहूलियतों और मौलिक मानव जीवन के बीच संतुलन बना रहे। यदि इन पर निर्भरता बढ़ी, तो शायद हमारी निष्क्रियता से सेहत संबंधी समस्याएं बढ़ें। हमारी जिजीविषा पर भी प्रभाव पड़ सकता है। हमें इस बात का खास ख्याल रखना होगा।’
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