भारतीय महिलाओं की जिंदगी में क्रांति ला रहा सोशल मीडिया, जानें कैसे बदल रही है लाइफ
सोशल मीडिया सिर्फ तरह-तरह के वीडियो और रील्स देखने का जरिया मात्र नहीं है। सोशल मीडिया के माध्यम से कैसे बदल रही है महिलाओं की जिंदगी, बता रही हैं विनीता। यह अपनी आवाज और अपने प्रोडक्ट को पूरी दुनिया

सोशल मीडिया के तेजी से बदलते इस युग में एक चीज बहुत मुखरता से अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रही है। वह है, सोशल मीडिया पर महिलाओं की आवाज। सोशल मीडिया के माध्यम से ये महिलाएं ना सिर्फ अपनी आवाज को लाखों-करोड़ों लोगों तक पहुंचा रही हैं, विभिन्न मुद्दों को लेकर जागरूकता फैला रही हैं बल्कि आर्थिक रूप से सबल भी हो रही हैं। साक्षी सिदवानी जैसी इन्फ्लुएंसर बॉडी पॉजिटिविटी और सेल्फ लव का परचम लहरा रही हैं और इस क्रम में पूरी दुनिया को यह भी सिखा रही हैं कि किसी भी आकार, लंबाई और वजन की लड़की खूबसूरत हो सकती है। बस, हमें खुद को प्यार करना आना चाहिए। आरूषि सेठी अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से मानसिक सेहत को लेकर जागरूकता फैलाने और उससे उबरने का तरीका सिखा रही हैं। आम धारणा है कि पैसे और निवेश के मामले में महिलाओं की समझ बहुत कमजोर होती है। इसी अवधारणा पर प्रहार करने का काम निधी नागोरी कर रही हैं। यूट्यूब से अपने सफर की शुरुआत करने वाली प्राजक्ता कोली अभिनय की दुनिया में आज ना सिर्फ अपनी पहचान बना रही हैं बल्कि आज वो यूएन क्रिएटर फॉर चेंज प्रोग्राम की सदस्य बन चुकी हैं। वे कई अंततराष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। सोशल मीडिया और सस्ता इंटरनेट धीरे-धीरे भारतीय महिलाओं की जिंदगी में क्रांति और ताकत ला रहा है।
टूट रही हैं सीमाएं
अब सोशल मीडिया केवल शहरी और शिक्षित आबादी तक सीमित नहीं है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाएं भी वीडियो ब्लॉगिंग के माध्यम से पूरी दुनिया में अपनी पहचान बना रही हैं। सीमित साधनों के साथ भी अपने प्रयास से सीखते हुए वे कुकिंग, ग्रामीण जन-जीवन की दिनचर्या और खेती-किसानी से संबंधित वीडियोज बना कर सोशल मीडिया पर अपलोड करती हैं, जिन्हें लाखों लोग देखते हैं। इसकी वजह से वे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने और भविष्य संवारने का सपना साकार कर रही हैं।
बढ़ रही है जागरूकता
ऐसा सोचना गलत है कि महिलाएं स्मार्ट फोन का उपयोग केवल मनोरंजन के लिए करती हैं। आज सभी के हाथों में आधुनिकतम सुविधाओं से युक्त मोबाइल है, ऐसे में वे देश-विदेश में होने वाली हर घटना के प्रति जागरूक रहती हैं। महिलाएं सोशल मीडिया के माध्यम से स्वयं सहायता समूह बनाकर वंचित वर्ग के लोगों के लिए काम कर रही हैं। ‘सिल्वर लाइनिंग’ नामक एनजीओ की संस्थापक प्रीति मोंगा स्वयं दृष्टि बाधित हैं, वह सोशल मीडिया पर निरंतर सक्रिय रहती हैं। इसके माध्यम से वह न केवल देखने में असमर्थ छात्राओं से संबंधित जानकारी और सूचनाएं एकत्र करती हैं, बल्कि उनके लिए एक रेजिडेंशियल स्कूल भी चलाती हैं। प्रीति का मानना है कि सोशल मीडिया की वजह से उनका यह काम बहुत आसान हो गया है।
अधिकारों के प्रति बढ़ती सजगता
सोशल मीडिया की वजह से आज की अल्प शिक्षित महिलाएं भी अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हैं क्योंकि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर आजकर्ल ंहदी के अलावा अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में भी जानकारीपूर्ण सामग्री उपलब्ध है। अब वे यह समझने लगी हैं कि अपने मताधिकार का उपयोग करना क्यों जरूरी है, घरेर्लू ंहसा और यौन उत्पीड़न की शिकार होने पर चुप रहने के बजाय ऐसी घटनाओं के खिलाफ आवाज क्यों और कैसे उठाना चाहिए... उन्हें इन बातों की जानकारी भी सोशल मीडिया के जरिये मिलती रहती है। आज के दौर में अगर महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति मुखर हो रही हैं, तो इसमें सोशल मीडिया का बहुत बड़ा योगदान रहा है। लखनऊ की उषा विश्वकर्मा ‘रेड ब्रिगेड’ नामक स्वयं सहायता समूह चलाती हैं। यह संगठन स्कूली छात्राओं को आत्मरक्षा के लिए जूडो-कराटे का प्रशिक्षण देता है। अपनी संस्था से जुड़ी समस्त गतिविधियों का संचालन वे सोशल मीडिया के माध्यम से करती हैं।
साझेदारी में है शक्ति
समान रुचि और हितों से जुड़ी महिलाओं के लिए सोशल मीडिया एक ऐसा सशक्त माध्यम है, जहां वे अपना ग्रुप बनाकर साथ मिलकर कोई व्यवसाय शुरू करती हैं या इस डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिये विचारों का आदान-प्रदान करके अपनी जानकारी में इजाफा करती हैं। कोविड के दौरान जब नोएडा की अभिलाषा पांडे के पति की नौकरी चली गई तो, उन्होंने पड़ोस की महिलाओं का व्हॉट्सएप ग्रुप बना कर टिफिन सर्विस की शुरुआत की, जिसमें उन्हें भरपूर कामयाबी मिली। वह कहती हैं, ‘अब तो पति को दूसरी नौकरी मिल गई है, फिर भी कुकिंग मेरी हॉबी है, इससे मुझे खुशी और संतुष्टि मिलती है, इसलिए मेरा यह काम अब भी जारी है और इससे अच्छी आमदनी हो जाती है।’ इसी तरह कुछ महिलाएं हस्तकला से जुड़े कार्यों की साझेदारी फेसबुक, व्हॉट्सएप के माध्यम से करती हैं या वे इंस्टाग्राम पर अपने काम से संबंधित वीडियोज अपलोड करती हैं, जिससे अधिक लोगों तक उनकी पहुंच बन पाती है और वे अपना सामान सभी तक आसानी से पहुंचा पाती हैं। सोशल मीडिया के माध्यम से आम घरेलू महिलाएं खुद अपने प्रोडक्ट की मार्र्केंटग करना सीख रही हैं, यह उनके लिए बड़ी उपलब्धि है।
बढ़ती स्व-चेतना
आजकल कई अच्छे डॉक्टर, मनोचिकित्सक और मोटिवेशनल स्पीकर भी सोशल मीडिया पर जानकारीपूर्ण वीडियोज अपलोड करते हैं। वहां विभिन्न क्षेत्रों के अनुभवी लोगों के पॉडकास्ट भी उपलब्ध होते हैं। जिनके माध्यम से महिलाओं को शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य के बारे में नई जानकारियां मिलती हैं। ऐसे उपयोगी और जानकारीपूर्ण वीडियोज देखकर उन्हें अब यह मालूम हो गया है कि उम्र के किस दौर में उन्हें कौन सी स्वास्थ्य समस्याएं परेशान कर सकती हैं और उनसे बचाव के लिए उन्हें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। इसके अलावा स्त्री स्वास्थ्य से संबंधित कंटेंट भी सोशल मीडिया पर भरपूर मात्रा में उपलब्ध होता है, इसके माध्यम से उनके लिए अपनी सेहत का खयाल रखना आसान हो जाता है। मानसिक सेहत आज के दौर में ऐसा महत्वपूर्ण मुद्दा है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। ऐसी स्थिति में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता लाने वाले वीडियोज भी स्त्रियों का मनोबल बढ़ाने में मददगार होते हैं।
सकारात्मक सोच के साथ शुरुआत
कुछ लोग यह कह कर सोशल मीडिया की आलोचना भी करते हैं कि इसकी वजह से वक्त की बर्बादी होती है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। यहां केवल नजरिये का अंतर है। अगर सही ढंग से और स्वविवेक के साथ इसका उपयोग किया जाए तो यह महिलाओं को ताकतवर बनाने की दृष्टि से बहुत उपयोगी साबित हो सकता है। अब तक जो महिलाएं घर की चारदीवारी में कैद रहती थीं, सोशल मीडिया ने उनके लिए उन सारी खिड़कियों-दरवाजों को खोल दिया है, जहां से वे घर बैठे ही पूरी दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले लोगों से संपर्क स्थापित कर सकती हैं।
अचार से मिली पहचान
भारत में महिलाएं बहुत पुराने समय से अपने घर-परिवार के लिए अचार-पापड़, चटनी और इस तरह की दूसरी चीजें बनाने का काम करती आ रही हैं। लेकिन उनके व्यावसायिक उपयोग के बारे में कम लोग ही सोच पाते हैं। जो लोग ऐसा सोच पाते हैं, वो अपनी सफलता की अलग ही कहानी लिख डालते हैं। ऐसी ही एक सफलता की कहानी है दरभंगा की कल्पना झा और उनकी भाभी उमा झा की। दोनों ने मिलकर एक अचार ब्रांड ‘झा जी पिकल्स’ की शुरुआत की, जो बहुत जल्दी सुर्खियों में छा गया है। हालांकि इसके लिए उन्होंने कोई आउटलेट नहीं खोला है, बल्कि ई-कॉमर्स का मॉडल अपनाया है और प्रचार-प्रसार के लिए सोशल मीडिया की मदद ली है। अपने ऑनलाइन स्टोर ‘झाजीस्टोर.कॉम’ के जरिये वे मिथिला के जायके वाले घर में बने 12-15 तरह के अचार बेच रही हैं।कल्पना शुरू से ही बहुत स्वादिष्ट और चटपटे अचार बनाती थीं। दोस्त-रिश्तेदार अचार को चटखारे ले-लेकर खाते थे और कल्पना की प्रशंसा करते नहीं थकते थे। अपने इस हुनर को व्यावसायिक रूप देने का उनका विचार पक्का हुआ कोरोना काल के दौरान। घर से समर्थन मिलने के बाद कल्पना ने अपनी भाभी उमा झा से इस बारे में चर्चा की, जो एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका हैं। उन्हें भी अचार बनाना बहुत पसंद है। उमा ने भी इस प्रस्ताव पर काफी उत्साह दिखाया और कारोबार में शामिल होने के लिए सहमति दे दी। जून, 2021 में उन्होंने अपने ऑनलाइन अचार ब्रांड ‘झा जी’ की शुरुआत की। उनके अचार की खासियत है कि उन्हें प्राकृतिक तरीके से बनाया जाता है। फलों-सब्जियों को धूप में सुखाया जाता है, उनमें किसी प्रकार के केमिकल और प्रिजर्वेटिव का इस्तेमाल नहीं किया जाता। कल्पना और उमा के अचार की खुशबू अब दूर-दूर तक फैल रही है और कमाई में भी बढ़ोतरी हो रही है।
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