घर में ही भेदभाव का शिकार हो रहीं महिलाएं, एक्सपर्ट से जानें कैसे करें आत्मविश्वास के साथ डील
हम सबके पास ढेरों सवाल होते हैं, बस नहीं होता जवाब पाने का विश्वसनीय स्रोत। इस कॉलम के जरिये हम एक्सपर्ट की मदद से आपके ऐसे ही सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे। इस बार मनोविशेषज्ञ देंगी आपके सवालों के जवाब। हमारी एक्सपर्ट हैं, डॉ. गगनदीप कौर
हम सभी के जीवन में कुछ ऐसे सवाल होते हैं जिन्हें हम पूछना तो चाहते हैं लेकिन कई बार सही लोगों के ना मिलने से या अपनी खुद की झिझक के चलते पूछ नहीं पाते। खासतौर से महिलाएं ऐसी स्थिति काफी ज्यादा फेस करती हैं। समाज में शुरू से ही भेदभाव का शिकार होती आई महिलाएं जब जीवन में कुछ करने निकल पड़ती हैं, तो समाज की ऐसी प्रतिक्रिया उन्हें मिलती है कि कई बार उन्हें खुद पर ही प्रश्नचिन्ह उठाने का मन करता है। महिलाओं के लिए सबसे ज्यादा शॉकिंग तब होता है जब उन्हें अपने घर से ही वो सपोर्ट नहीं मिलता, यहां तक कि उल्टा घर पर भी उन्हें उसी भेदभाव का सामना करना पड़ता है जो समाज उनके साथ करता है। ये सब उनकी मानसिक स्थिति और आत्मविश्वास पर बुरा असर डालता है। इसी सेल्फ डाउट और आत्मग्लानि को दूर करने का पाठ पढ़ा रही हैं मनोविशेषज्ञ डॉ गगनदीप कौर, कुछ ऐसी ही महिलाओं के प्रश्नों का उत्तर दे कर।
1) मेरी उम्र 21 साल है और मैं कॉलेज की पढ़ाई कर रही हूं। बचपन से ही मैंने अपने घर में लड़का और लड़की के आधार पर अपने साथ भेदभाव झेला है। इसका नकारात्मक असर मेरे आत्मविश्वास पर पड़ा है। अब कॉलेज में नए लोगों के साथ घुलने-मिलने में भी मुझे दिक्कत हो रही है। उम्र के इस पड़ाव पर अपने आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए मैं क्या कर सकती हूं? -अर्पिता पांडेय, लखनऊ
-कहने को तो हम एआई की सदी में आ चुके हैं, पर अभी भी लोगों के दिमाग से लड़का-लड़की का भेदभाव खत्म नहीं हुआ है। लड़कों को आज भी लड़कियों से बेहतर माना जाता है। एक बच्चे का आत्मविश्वास उसके परिवार से ही आता है। अगर आपको बचपन से बार-बार यह कहा जाता है कि तुम्हारा भाई तुमसे बेहतर है या फिर लड़कियां हमेशा लड़कों की परछाई ही होती हैं, तो मन में खुद को लेकर संशय होना या फिर आत्मविश्वास जड़ से डगमगा जाना बहुत स्वभाविक है। अगर आपको इससे बाहर निकलना है, तो सबसे पहले इस सोच को त्यागना होगा। आपको खुद के बारे में अपनी राय बदलनी होगी।
आपको ये मानना होगा कि पार्वती के बिना शिव कुछ नहीं, लक्ष्मी के बिना विष्णु कुछ नहीं और सरस्वती के बिना ब्रह्मा कुछ नहीं। दोनों अपने आप में पूर्ण हैं। आपको ये मानना होगा कि आपमें उतनी ही बुद्धि और क्षमता है, जितनी किसी पुरुष में है। अगर आप इस विश्वास पर कायम रहें और आगे बढ़ें, तो आपको दिक्कत नहीं होगी। धीरे-धीरे आपको समाज की धारणाओं से इतर अपनी धारणा बनानी होगी। नकारात्मक विचारधारा के कारण आप जिन चीजों से इतने वक्त से बचने की कोशिश कर रही हैं, उनका सामना करना शुरू कीजिए। अपने जीवन में जो भी आप लक्ष्य प्राप्त करना चाहती हैं, उसके लिए लगातार कोशिश करते रहें। जैसे-जैसे आप अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल होती जाएंगी, आपका आत्मविश्वास भी खुद-ब-खुद बढ़ता चला जाएगा।
2) मैं कामकाजी महिला हूं। दो बच्चों की मां हूं और संयुक्त परिवार में रहती हूं। पिछले कुछ माह से जिम्मेदारियों के बोझ और अपने लिए वक्त न मिल पाने की वजह से मैं मानसिक रूप से परेशान रहने लगी हूं। बात-बात में आंखों में आंसू आ जाते हैं। स्थिति को ठीक करने के लिए क्या करूं? - आकांक्षा शरण, मेरठ
-आपकी समस्या दुनिया भर की कामकाजी महिलाओं की समस्या है। दुनिया भर में महिलाओं से यह अपेक्षा की जाती है कि नौकरी के क्रम में दस से बारह घंटे घर के बाहर मशक्कत करने के बाद वो घर से जुड़ी जिम्मेदारियां भी उतनी ही शिद्दत से निभाएं। महिलाएं ऐसा करने की कोशिश भी करती हैं, नतीजतन उनके पास अपने लिए वक्त नहीं मिलता और धीरे-धीरे वे गुस्से से भर जाती हैं। यह गुस्सा गाहे-बगाहे घर-परिवार और बच्चों पर निकलता है। अपनी इस परेशानी से उबरने के लिए सबसे पहले अपनी सीमाएं तय कीजिए।
ज्वॉइंट फैमिली में जहां काम ज्यादा होता है, वहीं उसे करने के लिए लोग भी ज्यादा होते हैं। ऐसे में अपने सिर उतनी ही जिम्मेदारियां लें, जितनी आप खुद के लिए वक्त निकालने के साथ आसानी से उठा सकें। आप जितनी ज्यादा जिम्मेदारियां लेंगी, लोग आप पर काम का बोझ डालते चले जाएंगे। खुद के लिए वक्त निकालना आपकी अपने प्रति जिम्मेदारी है। आप कमाती हैं, तो अपनी आर्थिक आजादी से अपने लिए वक्त खरीदें। कोई एक कामवाली घर पर रख लें, जो घर के कामकाज में आपके लिए मददगार बन सके। इससे जिंदगी बहुत आसान हो जाएगी। कामकाजी महिलाओं को कभी-कभार घरवालों का ताना सुनना पड़ता है। पर, आपको इन सबसे से ऊपर उठकर यह तय करना होगा कि आपकी जिंदगी का लक्ष्य क्या है। आप क्यों नौकरी कर रही हैं? अपने घरवालों को अपनी परेशानी बताएं। कई बार बोलने मात्र से ही समस्या का हल मिल जाता है।
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