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शादीशुदा जीवन को खुशहाल बनाना चाहते हैं तो समझें कैसे ना बढ़ें परिवारवालों का दखल

शादी से सिर्फ जिंदगी नहीं बदलती। बदलता है, रिश्तों को जीने और देखने का नजरिया भी। साथी के साथ अपने रिश्ते में बाहरी हस्तक्षेप को कैसे करें नियंत्रित, बता रही हैं दिव्यानी त्रिपाठी।

Aparajita लाइव हिन्दुस्तानFri, 27 Sep 2024 02:58 PM
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माता-पिता का तजुर्बा और नसीहतें नई गृहस्थी की शुरुआत में यकीनन मददगार होती हैं। पर, इन नसीहतों का दूसरा पक्ष भी है। इसकी अधिकता, अनचाही रोक-टोक शुरू हुए नए रिश्ते में जाने-अनजाने कड़वाहट घोलने की वजह बन सकती है। अब तो निचली अदालतों में बढ़ रहे अलगाव के मामलों को देखते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय भी कुछ ऐसा ही मानने लगी है। एक मामले में न्यायालय ने यह माना कि माता-पिता का ज्यादा हस्तक्षेप विवाह के बाद युवा जोड़ों के जीवन में तबाही लाने का काम करता है। आंकड़े भी इस बात की तसदीक करते हैं। पिछले कुछ दशकों में भारत में तलाक के मामले दोगुने हुए हैं, जिसके पीछे भले ही कारण अलग-अलग हों, पर एक बिंदू अक्सर इनमें समान नजर आता है, वह है पति-पत्नी के रिश्ते में अन्य लोगों की अनचाही दखलंदाजी।

ऐसा आपके साथ न हो इसके लिए आपको समझदारी से काम लेना होगा। आपको समझना होगा कि दोनों ही पक्ष आपके हैं और आपको उनके बीच रिश्तों को ठीक बनाए रखने के लिए मध्यस्तता करनी होगी। कुछ नियम बनाने होंगे, साथ ही कुछ सीमाएं तय करनी होगीं। जिसमें आपको आपके पार्टनर और माता-पिता दोनों के ही सहयोग की दरकार होगी।

तय करें सीमा

हर रिश्ते की अपनी खूबसूरती और सीमा होती है। वह सीमा रेखा पार होते ही रिश्ते की खूबसूरती फना हो जाती है। दबे पांव क्लेश आपकी जिंदगी में कब दस्तक देता है, आपको मालूम भी नहीं चलता। ऐसे में बेहतर होगा कि आप अपने रिश्तों की सीमाओं को पहले ही तय कर दें और गरिमा बनाए रखें। इसके लिए आप कुछ नियम बना सकती हैं जैसे गुस्सा आने पर भी माता-पिता के सामने एक-दूसरे पर चिल्लाने से बचें, आपसी झगड़ों में बड़ों को शामिल न करें, अपने व्यक्तिगत निर्णयों पर फैसला लेने की आजादी अपने हाथों में रखें, किसी कॉमन मुद्दे पर निर्णय लेते वक्त सभी की मौजूदगी रखें आदि।

नियम हो सबके लिए

हम अकसर सुनते हैं कि जहां मायकेवालों की दखलंदाजी हुई, वहीं घर-परिवार खराब हुआ। हो सकता है कुछ लोग इस बात से इत्तेफाक रखते हों, कुछ घरों में ऐसा हुआ हो। पर, यहां यह बात भी आती है कि जब घर दोनों का है, माता-पिता दोनों के हैं तो सिर्फ एक पक्ष ही जिम्मेदार कैसे हो सकता है? रिश्ते को खुशनुमा बनाए रखने के लिए नियम और सीमाएं दोनों पक्षों के लिए समान बनाएं। मेरे-तेरे का भेद आपकी समस्या और मनमुटावों को और भी बढ़ा सकता है।

दें पार्टनर को भी तरजीह

कई बार पार्टनर की अनदेखी समस्या को बढ़ाने का काम करती है। यकीनन आपके माता-पिता आपके लिए जरूरी हैं, पर आपको इस बात को भी जेहन में रखना है कि आपकी जिंदगी में एक शख्स और भी जुड़ चुका है, जिसके प्रति आपकी जवाबदेही है। आपका कोई भी फैसला प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उसकी जिंदगी पर भी असर डालेगा। ऐसे में उसे नजरअंदाज करना या महसूस कराना आपके रिश्ते में बट्टा लगा सकता है। साथी को अहसास करवाएं कि उसकी पसंद-नापसंद सब आपके फैसलों में शामिल है।

सही का रखें पक्ष

इंसान है, तो गलती हो सकती है। फिर चाहे आपका पार्टनर हो या फिर आपके माता-पिता। ऐसे में आपको सही का पक्ष बेझिझक लेना चाहिए। अगर आपके संस्कार आड़े आ रहे हों तो आप बात को घुमाकर रख सकती हैं। सिर्फ एक पक्ष को संतुष्ट करना रिश्तों के बीच की खाई को गहरा कर देगा।

न आने पाए असुरक्षा का भाव

घर में नए सदस्य के आने से कुछ बदलावों का आना लाजमी है। ऐसे में आपको इस बात का ख्याल रखना होता है कि कहीं आपके माता-पिता खुद को आपसे दूर होता न महसूस करें। इस बाबत मनोचिकित्सक डॉ. स्मिता श्रीवास्तव कहती हैं कि असुरक्षा का भाव अपने साथ नकारात्मकता को लेकर आता है। लिहाजा, बदलते रिश्तों के बीच माता-पिता खासतौर पर माता इस भाव को महसूस कर सकती हैं। ऐसा न होने पाए इसके लिए हर दिन उन्हें थोड़ा वक्त अलग से दें। उन्हें अपनी बात बोलने का मौका दें। उनसे परामर्श लें, उनके पक्ष को जानें। ये छोटे-छोटे प्रयास माहौल को ठीक रखने में मददगार होंगे।

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