Fathers Day: पिता का प्यार पाने वाले बच्चे निकलते हैं काबिल, जानें क्यों है साथ जरूरी

  • पिता और बच्चे के संबंधों में पिछले कुछ दशकों में बड़ा बदलाव आया है। पिता अब बच्चे के दोस्त बनने की राह पर आगे बढ़ रहे हैं। फादर्स डे (16 जून) के मौके पर आइए डालें, इस बदलते रिश्ते पर एक नजर, बता रही हैं शाश्वती

Kajal Sharma हिंदुस्तान Fri, 14 June 2024 03:49 PM
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हमारे आसपास की दुनिया बदल रही है। इस बदलती दुनिया का असर न सिर्फ हमारे परिवेश पर पड़ रहा है बल्कि हमारे रिश्तों पर भी पड़ रहा है। मम्मी से तो बच्चों की दोस्ती पहले से रही है, अब पापा भी यार बनने लगे हैं। पहले पिता जहां बच्चों और परिवार के अन्य सदस्यों की जरूरतों को पूरा करने वाली अपनी भूमिका में बंधे हुए थे, वहीं अब बच्चे के जन्म से लेकर उसकी परवरिश के हर कदम पर मां का पूरा साथ देने लगे हैं। आज के बच्चे जितने सहज अपनी मां के साथ होते हैं, उतनी ही सहजता पिता के साथ उनके संबंधों में हो गई है।

वे दिन गए जब मां, पिता के नाम की धमकी देकर बच्चों से सारे काम करवाती थीं। पिता और बच्चे के रिश्ते में आई यह सहजता ही नए जमाने के पिता की असली कमाई है। आज के पापा अपने बच्चे को ना सिर्फ पढ़ाई व करियर से जुड़े सुझाव देते हैं बल्कि पीरियड से लेकर टीनएज से जुड़े मुद्दों पर भी उनसे बेझिझक होकर बात करते हैं। संभव है कि पिता और बच्चे के रिश्ते में आया यह बदलाव कई लोगों को अचरज भरा लगे, पर दोनों पक्षों के भावनात्मक जरूरतों के लिए यह एक ऐसे खाद का काम करता है, जिससे बच्चों के विकास पर न सिर्फ सकारात्मक असर पड़ता है बल्कि पिता की खुशियां भी कई गुना बढ़ जाती हैं।

लग्जरी नहीं, जरूरत है पिता का साथ

अगर कोई पिता अपने बच्चे के साथ खूब वक्त बिता रहा है, तो वह कुछ अलग नहीं कर रहा। ऐसा करना उसकी जिम्मेदारी है और वह सिर्फ अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है। एक्टर इमरान खान दस साल की बेटी इमारा के पिता है। इमरान अपनी पूर्व पत्नी से अलग हो चुके हैं, पर इसका असर उन्होंने इमारा के साथ अपने रिश्ते पर नहीं आने दिया। अपनी पूर्व पत्नी के साथ मिलकर वे अपनी बेटी की परवरिश कर रहे हैं। इमारा सप्ताह में तीन दिन अपनी मां के साथ और चार दिन पिता के साथ रहती है। एक वेबसाइट से बातचीत के दौरान इमरान ने बताया कि मैं इमारा की परवरिश का हिस्सा बनना चाहता था। वो सप्ताह के जिन दिनों में मेरे पास रहती है, उन चार दिनों में मैं कोई और काम नहीं करता। इमारा के लिए खाना बनाने से लेकर उसे स्कूल छोड़ने तक का काम मैं खुद करता हूं। उसकी देखभाल के लिए मैं किसी और की मदद नहीं लेता।

इमरान पेंगुइन डैड के उस लगातार बढ़ती टोली का हिस्सा हैं, जो नर पेंगुइन की तरह ही अपने बच्चों की परवरिश में मादा पेंगुइन जितनी ही सक्रिया भूमिका निभाना चाहते हैं। कुछ वक्त पहले 1700 पिताओं पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि बेंगलुरू के पिता परवरिश के मामले में ज्यादा सक्रिय हैं। शोध में शामिल 91 प्रतिशत पिता अपने बच्चों की विभिन्न गतिविधियों में उनका साथ देते हैं। शोध में शामिल लगभग 80 प्रतिशत पिता स्कूल की गतिविधियों हिस्सा लेते हैं और वहीं उनमें से 50 प्रतिशत को घर पर रहकर बच्चों की जिम्मेदारी उठाने में भी कोई गुरेज नहीं है।

वर्क फ्रॉम होम ने बनाया पिता को सुलभ

कोविड और उससे पहले की दुनिया अलग थी, कोविड के बाद की दुनिया अलग है। पहले एकाध हाउस हसबेंड की कहानियां हमें पढ़ने-सुनने के लिए मिल जाती थी, जहां पति घर और बच्चे की जिम्मेदारी उठाते थे और पत्नी नौकरी कर रही होती थी। पर, कोविड के दौरान वर्क फ्रॉम होम की सुविधा ने जाने-अनजाने में पिता और बच्चे के संबंध को और मजबूत बना दिया है। घर से काम करने के दौरान पिता अनजाने में ही सही अपने बच्चों की परवरिश में इस तरह से हिस्सा लेने लगे, जैसे अब तक मांएं करती थीं। इस बदलाव ने पिता को सुबह ऑफिस जाने और शाम को घर लौटने वाले पिता की जगह हमेशा उपलब्ध रहने वाले पिता में तब्दील कर दिया। अब पिता बच्चे को स्कूल से भी ला रहे हैं, उसका होमवर्क भी करवा रहे हैं और जरूरत पड़ने पर उन्हें खाना खिलाने का वक्त भी निकाल ही ले रहे हैं। इन बदलावों को असर पिता और बच्चों के संबंधों के इक्वेशन पर पड़ा है। आईटी सेक्टर में काम करने वाले नवीन कहते हैं, ‘मैं और मेरी पत्नी दोनों कामकाजी हैं। कोविड के दौरान मिले वर्क फ्रॉम होम के कारण मुझे अपनी बेटी के साथ इतना वक्त बिताने का मौका मिला, जिसकी मैं पहले कल्पना भी नहीं कर सकता था। बेटी के साथ उस दौरान मेरी बेहतरी बॉन्डिंग हुई और मुझमें धीरज भी बढ़ा, जो बच्चों की परवरिश के लिए बहुत जरूरी है। मुझे नहीं लगता है कि अगर मैं घर से काम नहीं करता, तो हमारे बीच का संबंध उसी रूप में होता, जैसा आज है।’

पिता की परवरिश के फायदे

यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स के अध्ययन के अनुसार जो पिता अपने बच्चे की पढ़ाई में हर दिन 10 मिनट का भी वक्त देते हैं, वे बच्चे पढ़ाई में बेहतर प्रदर्शन करते हैं।

पिता के साथ वक्त बिताने वाले बच्चे लाइफ स्किल्स के मामले में भी बेहतर होते हैं।

ऐसे बच्चे भावनात्मक रूप से ज्यादा मजबूत होते हैं। वे इस सोच के साथ बड़े होते हैं कि कुछ मुसीबत आने पर पिता उससे उबार लेंगे। उनमें आत्मवश्विास भी ज्यादा होता है।

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