महिलाओं को किस बात से मिलती है खुशी, स्टडी में हुआ खुलासा
हमारी दुनिया में हम से जुड़ी क्या खबरें हैं? हमारे लिए उपयोगी कौन-सी खबर है? किसने अपनी उपलब्धि से हमारा सिर गर्व से ऊंचा उठा दिया? ऐसी तमाम जानकारियां हर सप्ताह आपसे यहां साझा करेंगी, जयंती रंगनाथन
हम स्त्रियों को खुश रहने के लिए क्या चाहिए? कभी सोचा है आपने? नहीं तो मैं आपका काम आसान किए देती हूं। पिछले दिनों कनाडा के मैकगिल यूनिवर्सिटी में हुए व्हॉट वीमन वॉन्ट्स नाम से एक अध्ययन किया गया। इस अध्ययन में शामिल हुईं 16 से 62 साल की 2776 स्त्रियां। इस अध्ययन में शामिल 63 प्रतिशत महिलाओं ने माना कि आर्थिक स्वतंत्रता, परिवार और छुट्टियां उन्हें सबसे ज्यादा खुशी देती हैं।
कमोबेश हमारे यहां भी यही स्थितियां होंगी। प्रसिद्ध फेमिनिस्ट लेखिका सिमोन द बोउवार ने कहा था, ‘पता नहीं स्त्रियां खुश रहने से इतना क्यों डरती हैं? ऐसा लगता है जैसे वो खुश रहेंगी तो दुनिया उनसे इसका बदला चुकाने को कहेगी। हमें इस भ्रांति से जितना जल्दी हो सकता है, निकलना होगा। यह पहचानना होगा कि वो क्या चीजें हैं जिनसे हमें खुशी मिलती है और हमें अपने लिए वो करना होगा।’ खुशी कहते ही मेरे सामने सबसे पहले एक चेहरा आता है, वही चेहरा, जिन्हें इस साल पद्म भूषण दिया गया है। 76 साल की उषा उथुप हमारे देश का ऐसा गौरव हैं, जिन पर हमें नाज है। तमिल भाषी उषा ने कभी विधिवत संगीत नहीं सीखा। पर उनकी आवाज में एक जादू है। साठ के दशक में वे मुंबई, चेन्नई और कोलकता के नाइट क्लब्स में पॉप और रॉक गाने लगीं। देव आनंद ने उनका गाना सुन कर अपनी फिल्म हरे राम हरे कृष्ण में उन्हें .शीर्षक गीत गाने को दिया। उषा उथुप ने देसी-विदेशी 25 भाषाओं में गाने गाए हैं। कांजीवरम साड़ी, बड़ी बिंदी, बालों में गजरा उनका स्टाइल है। उम्मीद है कि आने वाले कई सालों तक वो हमें अपनी आवाज का सुख देती रहेंगी।
हम स्त्रियों को एक और बात से खुशी मिलती है, जब हमारा स्वास्थ्य ठीक रहता है। हम सबकी जिंदगी में महीने के वो पांच दिन मुश्किल भरे होते हैं। चाहे हमें घर में काम करना पड़े या बाहर, दिक्कत और दर्द तो होता ही है। पीरियड से संबंधित अब तक ना जाने कितने अध्ययन हो चुके हैं, इनमें सबसे नया है यह दिलचस्प अध्ययन जो हाल ही में डेली मेल अखबार में प्रकाशित हुआ है। इस अध्ययन में कहा गया है कि अधिकतर पीरियड गुरुवार या शुक्रवार को शुरू होता है। इस अध्ययन में शामिल 3 लाख महिलाओं, डॉक्टरों, विशेषज्ञों ने पूरे एक साल तक इस विषय पर काम किया। फर्टिलिटी एक्सपर्ट डॉक्टर स्टीवन पाल्टर इसकी वजह बताते हैं कि सप्ताह का अंत आते-आते महिलाओं में तनाव बढ़ने लगता है। इसकी वजह से हार्मोन कॉर्टिसोल का स्तर बढ़ने लगता है और यह तय करता है कि आपका पीरियड कब शुरू होगा।
अपने लिए निकालें वक्त
आपने कई बार यह पढ़ा और सुना होगा कि रोज अपने लिए कुछ वक्त निकालें। कुछ ऐसा करें, जो आपको पसंद हो। साइकोलॉजिस्ट अरुणा ब्रूटा कहती हैं, घर में अपनी पसंद की जगह में बैठ कर पसंदीदा कप में चाय या कॉफी पीना भी आपको उत्साह से भर सकता है। इसके साथ-साथ हर रोज एक काम ऐसा भी करें, जो आपको आगे ले कर जाए। कुछ नया पढ़ें, नया देखें, नए लोगों से मिलें, कुछ अच्छा सोचें और करें। अच्छी किताब पढ़ने का सुख ही कुछ और होता है। क्या आपने 1967 में पहली बार प्रकाशित प्रसिद्ध लेखिका ऊषा प्रियंवदा का उपन्यास रुकोगी नहीं राधिका पढ़ी है? इस उपन्यास को अंग्रेजी की प्रतिष्ठित अनुवादक डेजी रॉकवेल ने वोंट यू स्टॉप राधिका नाम से प्रकाशित किया है। इस उपन्यास का कथानक आज भी सामयिक है। नायिका अपनी मां की मृत्यु के बाद अपने पापा का खूब ख्याल रखती है, लेकिन पापा की एक युवा लड़की से दूसरी शादी उसे तोड़ देती है।
अब बच्चों को भी बना सकती हैं नॉमिनी
भारत सरकार ने सरकारी क्षेत्र में काम कर रही महिला कर्मचारियों के लिए फैमिली पेंशन के नियमों में बदलाव किए हैं। अब महिला कर्मचारी पेंशन में अपने पति की जगह अपनी बेटी या बेटे को नॉमिनी बना सकती हैं। बेटे या बेटी को नॉमिनी बनाने के लिए महिला कर्मचारी को आवेदन देना होगा। इस आवेदन में उन्हें पति की जगह पर बेटे या बेटी को नॉमिनी बनाने की मांग करनी होगी। अगर बच्चा नाबालिग होता है तब उसके व्यस्क होने के बाद ही बच्चे को पेंशन का लाभ मिलेगा।
महिला सरपंचों को मिली शक्ति
पिछले सप्ताह की कुछ सकारात्मक खबरों में सबसे ज्यादा आकर्षित किया पंजाब से आई इस खबर ने। आपने भी यही देखा और सुना होगा कि गांवों में पंचायत प्रमुख के पद पर महिलाएं चुनीं तो जाती हैं, पर सिर्फ नाम के वास्ते। काम करते हैं और निर्णय लेते हैं सरपंच के पति, पिता या बेटा। पंजाब में आप की सरकार ने इस पर तुरंत रोक लगाते हुए कहा कि अगर किसी गांव की सरपंच महिला है तो र्मींटग से ले कर हर जगह उन्हें ही रहना पड़ेगा। अब वहां की महिला सरपंच पुरुषों की छाया से बाहर निकल कर वास्तव में काम करने मैदान में उतर रही हैं। गौरतलब है कि पंजाब में इस समय छह हजार पांच सौ से अधिक महिला सरपंच हैं। मानक खाना गांव की 27 साल की महिला सरपंच शेषनदीप कौर सिद्धू कहती हैं, ‘मैं अपने गांव के लिए निर्णय खुद लेती हूं, घरेलू और दूसरे झगड़े भी निबटाती हूं। मुझे देख कर गांव की दूसरी लड़कियां भी आगे आ रही हैं। मेरा मानना है कि हम लड़कियां राजनीति में आएंगी तो लोगों की सोच भी बदलेगी और काम भी ईमानदारी से होगा।
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