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भावनाओं में बहकर टॉक्सिक रिश्ते से निकलना लग रहा मुश्किल तो इन पहलूओं पर जरूर ध्यान दें

दूसरों की भावनाओं की कद्र करना अच्छी बात है। पर, आसानी से किसी से भावनात्मक रूप से जुड़ जाना आपकी मानसिक सेहत के भविष्य के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है। कैसे भावनाओं के चक्रव्यूह में बार-बार फंसने से खुद को बचाएं, बता रही हैं दिव्यानी त्रिपाठी

Aparajita हिन्दुस्तानFri, 7 June 2024 07:33 AM
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जहां आज अधिकांश रिश्ते एक तकरार की भेंट चढ़ जाते हैं। वहीं, एक जमात ऐसे लोगों की भी है, जो बेहद आसानी से किसी से भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं और ऐसे रिश्तों के टूटने पर अलगाव का दर्द अकेले झेलने के लिए बाध्य होते हैं। यह टीस कि मेरे साथ ही ऐसा बार-बार क्यों होता है या फिर मेरी भावनाओं की कद्र ही लोग क्यों नहीं करते हैं, आपको मानसिक रूप से परेशान कर सकता है। इस विषय में लगातार सोचने से मन परेशान हो उठता है। इस बाबत रिलेशनशिप कोच इला जैन कहती हैं कि भावनात्मक जुड़ाव हर शख्स का जन्मजात व्यवहार होता है। बचपन में देखभाल करने वालों के साथ से ही इसकी शुरुआत होती है, जिसके आधार पर बच्चा शारीरिक निकटता और सुरक्षा सुनिश्चित करता है। बच्चा उस व्यक्ति से भावनात्मक जुड़ाव महसूस करेगा या नहीं, यह प्राथमिक देखभाल करने वाले के व्यवहार पर निर्भर करता है। जैसे बच्चा खतरे की स्थिति में किसी खास शख्स के व्यवहार पर सुरक्षित महसूस करता है। सकारात्मक व्यवहार उसके सामाजिक और भावनात्मक विकास में मददगार होता है, जो कि भविष्य में दूसरों के साथ सकारात्मक संबंध बनाने में मददगार साबित होता है। लिहाजा, एक अच्छा बचपन बेहद जरूरी है। बड़े होने के साथ ही अलगाव की भावना अकसर बचपन के शुरुआती अनुभवों, खासतौर पर प्राथमिक देखभाल करने वालों के साथ बातचीत से आकार लेती है। पर, इससे इतर बचपन में उपेक्षा, दुव्र्यवहार, असंगत देखभाल आदि भावनात्मक लगाव के विकास को बाधित कर सकता है। ईला कहती हैं कि ऐसी स्थितियों में उम्र बढ़ने के साथ लगाव संबंधी समस्याएं होने की आशंका बढ़ जाती हैं।

तब होता है जल्दी भावनात्मक जुड़ाव

अपनापन महसूस करना एक बुनियादी जरूरत है। खासतौर पर अकेलेपन की जिंदगी जीने वाले लोगों के लिए। ऐसे लोग जाहिर तौर पर स्नेह की किसी भी संभावना से जल्दी जुड़ जाते हैं। अकेलेपन या अलगाव की अवधि के बाद अकसर जुड़ाव की हमारी गहरी जरूरत और भी बढ़ जाती है। अध्ययन बताते हैं कि यह व्यवहार अकसर सामाजिक और भावनात्मक जुड़ाव की इच्छा को संतुष्ट करने का प्रयास होता है। लोगों से जल्दी जुड़ जाने के सवाल का उत्तर हमारी लालसा हो सकती है, जिसे हम भावनात्मक सांत्वना और मान्यता पाने के साधन के रूप में देख सकते हैं।

कठिन बचपन बनता है कारण

क्या आपने माता-पिता के बीच खराब रिश्ते, टूटा हुआ घर, दुव्र्यवहार करने वाले परिवार को जिया या देखा है? बचपन में अलग- अलग तरह के दुर्व्यवहार अलग-अलग स्तरों पर आघात का कारण बनते हैं। यकीनन यह किसी व्यक्ति के प्यार और रिश्तों को देखने के तरीके को बदल देते हैं। इस बाबत ईला कहती हैं कि अगर आपके माता-पिता भावनात्मक रूप से आपके लिए मौजूद नहीं थे या आपकी भावनात्मक जरूरतें एक बच्चे के रूप में पूरी नहीं हुई थीं तो मुमकिन हैकि आप आसानी से लोगों से प्रभावित होकर जुड़ाव महसूस कर सकती हैं। विषाक्त माहौल में जीने वाले बहुत से लोग यह मानकर बड़े होते हैं कि वे प्यार के लायक नहीं हैं। उन्हें त्याग दिए जाने का डर सताता है। वे अकसर मानवीय शालीनता और दयालुता को प्यार समझने की भूल कर बैठते हैं। नतीजा, जल्दी दूसरों से लगाव महसूस करने लग जाते हैं। साथ छूट जाने और दर्द की टीस के चलते वह कई बार विषैले रिश्तों से भी बाहर नहीं निकलना चाहते। यह सच है कि भावनात्मक आघातों से उबरना आसान नहीं होता, लेकिन आपको भावों का समझना सीखना होगा। आपको इंसानियत और स्नेह में फर्क समझना होगा ताकि आप कष्ट से खुद को बचा सकें।

संभव है उबरना

महसूस करें भावनाओं को: हो सकता है कि आप ब्रेकअप या एक तरफा क्रश से छुटकारा पाना चाह रही हों। पर, खुद को दुखी न होने देने के डर से अपनी भावनाओं को बनाए रखना समझदारी नहीं होगी। निराश होना सामान्य बात है और जितनी देर आप अपनी भावनाओं को नकारेंगी, उतनी देर तक आप उनके बारे सोचेंगी और दुखी होती रहेंगी।

रखें उचित दूरी: हो सकता है कि आप किसी ऐसे विषैले सहकर्मी से अलग होना चाहती हों, जिनसे चाहकर भी अलग नहीं हुआ जा सकता। वह पर्सनल या प्रोफेशनल कैसा भी रिश्ता हो सकता है। ऐसे में भावनात्मक रूप से अपने और दूसरे व्यक्ति के बीच किसी भी अन्य चीज को लेकर एक उचित दूरी बनाएं। आपका ऐसा करना आपका ध्यान केवल अपने काम और उसे अच्छी तरह से करने पर केंद्रित करता है। साथ ही आप दूसरे व्यक्ति पर ध्यान और ऊर्जा देना छोड़ पाते हैं।

करें प्यार दूर से: आपके परिवार में कोई सदस्य है, जिसका व्यवहार विषाक्त है और आपने वर्षों से खुद को उससे बहस करते हुए पाया है। मुमकिन है व्यवहार बदलने का भी अनुरोध भी किया हो। पर, नतीजा कुछ खास नजर न आया हो। ऐसे में उससे जुड़े रहकर लड़ाई के पैटर्न में फंसे रहने से बेहतर उससे दूर रहकर स्नेह बनाएं रखें।

लें काउंसिलिंग और ध्यान का सहारा: बकौल ईला, भावनात्मक अलगाव एक गंभीर मानसिक चुनौती है। इससे गुजर रहे लोग कठिनाई का अनुभव करते हैं, लेकिन चिकित्सकीय परामर्श आपके लिए मरहम का काम करेगा। सच को स्वीकार करें। अपनी आवश्यकताओं को नाम दें। अपने महत्व को स्वीकार करें। खुद को तरजीह दें। ईला की मानें तो नियमित काउंर्संलग, प्राणायाम आपकी भावनाओं को नियंत्रित करने में मददगार साबित होगा।

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