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पुरुषों के मुकाबले डिप्रेशन से ज्यादा पीड़ित रहती हैं महिलाएं, ये है डॉक्टर की सलाह

हमारी दुनिया में हम से जुड़ी क्या खबरें हैं? हमारे लिए उपयोगी कौन-सी खबर है? किसने अपनी उपलब्धि से हमारा सिर गर्व से ऊंचा उठा दिया? ऐसी तमाम जानकारियां हर सप्ताह आपसे यहां साझा करेंगी, जयंती रंगनाथन

Manju Mamgain हिन्दुस्तानFri, 24 Jan 2025 02:47 PM
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पुरुषों के मुकाबले डिप्रेशन से ज्यादा पीड़ित रहती हैं महिलाएं, ये है डॉक्टर की सलाह

मुंबई के नेवी स्कूल में पढ़ने वाली सत्रह साल की काम्या कार्तिकेयन विश्व के 7 महाद्वीपों की सबसे ऊंची चोटियों पर चढ़ने वाली सबसे कम उम्र की महिला बन गई हैं। पिछले सप्ताह एक न्यूज चैनल से बात करते हुए काम्या ने बताया कि वो अफ्रीका में माउंट किलिमंजारो, यूरोप में माउंट एल्ब्रस, ऑस्ट्रेलिया में माउंट कोज्स्कीस्जको, दक्षिण अमेरिका में माउंट एकॉनकागुआ, उत्तरी अमेरिका में माउंट डेनाली और एशिया में माउंट एवरेस्ट चढ़ चुकी हैं। अपने पिता कमांडर एस. कार्तिकेयन की प्रेरणा से काम्या को भी पर्वतों पर चढ़ने का शौक आया। बचपन से काम्या को खेल-कूद में रुचि थी। अपने पिता को जब उन्होंने ट्र्रैंकग करते और पर्वतों पर चढ़ते देखा, तो काम्या ने भी ठान लिया कि वो भी उनके साथ जाएंगी। काम्या की कामयाबी से उसके परिवार वाले और स्कूल वाले बेहद खुश हैं। काम्या को इस बात का संतोष है कि उन्हें जो काम अच्छा लगता है, वो उसे कर पा रही हैं।

लंबी उम्र का यह है राज

चीन की क्वी चैशी की उम्र है, 124 साल। यानी इस समय दुनिया की वो सबसे अधिक उम्रदराज महिला हैं। उम्र के इस पड़ाव में भी क्वी अपने सारे काम खुद करती हैं। चीन के स्टार अखबार को दिए अपने इंटरव्यू में क्वी कहती हैं कि वो आज भी दिन में तीन वक्त भोजन करती हैं। हर भोजन के बाद कुछ देर टहलती हैं, लोगों से मिलती-जुलती हैं और हमेशा आशावादी सोच रखती हैं। क्वी के परिवार में छह पीढ़ियां रहती हैं। उनकी पोती की भी पोती हो चुकी है। क्वी ने पिछले सौ सालों से अधिक समय में चीन को कई बार बदलते देखा है। जब 1901 में वे पैदा हुईं, वहां राजा का निरंकुश शासन चलता था। अपने समय में उन्होंने सत्ता में परिवर्तन होते देखा और लोगों के हाथों में शासन की बागडोर को आते देखा। अपने जीवन में उन्होंने कम दुख नहीं झेले। चालीस साल की थीं, जब उनके पति की मृत्य हो गई। इसके बाद अपने चारों बच्चों को अकेले पाला। वो कहती हैं, जिंदगी में कई आपदाएं आईं, पर वे कभी निराश नहीं हुईं। आज भी क्वी मवेशियों को खुद चारा देती हैं, सीढ़ियां चढ़ लेती हैं और खाना भी बना लेती हैं। उन्हें सबसे अधिक खुशी होती हैं, जब वे अपने पड़-पोतियों को आगे बढ़ते देखती हैं।

क्या सच में आप पीड़ित हैं अवसाद से?

महामारी के बाद से चिंताा यानी एंग्जाइटी और अवसाद के मरीजों में भारी वृद्धि हुई है। डेली मेल में प्रकाशित एक खबर के अनुसार महिलाओं में अवसाद और चिंता की शिकायत पुरुषों के मुकाबले 37 प्रतिशत अधिक होती है। रॉयल कॉलेज ऑफ जनरल प्रैक्टिशनर के पूर्व कुलपति डॉक्टर डेम क्लॉर्क गेराडा के अनुसार अवसाद की शिकायत लेकर विशेषज्ञों के पास पहुंचने वाले 46 मामले अवसाद के नहीं होते। महामारी के बाद से लोग मामूली चिंता और परेशानी को भी अवसाद मानने लगे हैं और नकारात्मक होने लगे हैं। उनका मानना है कि ऐसे मामलों में अवसाद और एंग्जाइटी की दवाइयों से नुकसान पहुंच सकता है। उनका मानना है कि खासकर महिलाएं यह निर्णय लेने में जल्दबाजी कर रही हैं कि उनकी परेशानी दरअसल मामूली चिंता है या अवसाद। उनकी सलाह है कि अगर आपको किसी बात पर चिंता हो रही है, मन में नकारात्मक ख्याल आ रहे हैं, किसी काम में मन नहीं लग रहा, वजन बढ़ने या कम होने लगा है तो सबसे पहले अपने लिए वक्त निकालना शुरू कीजिए। सुबह और शाम तेज गति से चलिए। किसी शांत स्थान पर बैठ कर ध्यान कीजिए और शरीर को डिटॉक्स कीजिए। 27% मामले में इसी से आपको राहत मिल जाएगी। वे यह भी कहते हैं कि जिंदगी में रोज-बेरोज घटने वाली छोटी-मोटी बातों से परेशान होना हमें छोड़ देना चाहिए और बिना बात दवा नहीं लेनी चाहिए।

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