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'मांसाहारी' कही जाती है ये दाल, जानें क्यों इसे खाने से परहेज करते हैं साधु-संत

  • आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन एक दाल ऐसी भी है जिसे हिन्दू धर्म में 'मांसाहार' में शामिल माना जाता है। आइए इसके पीछे की धार्मिक और अन्य कई वजहों के बारे में जानते हैं।

Anmol Chauhan लाइव हिन्दुस्तानThu, 30 Jan 2025 09:54 AM
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'मांसाहारी' कही जाती है ये दाल, जानें क्यों इसे खाने से परहेज करते हैं साधु-संत

दाल हमारे खानपान का एक बड़ा ही अहम हिस्सा है। स्वादिष्ट होने के साथ-साथ दाल में ढेर सारे पोषक तत्व भी पाए जाते हैं। वेजिटेरियन लोगों के लिए तो दाल प्रोटीन का बहुत ही अच्छा सोर्स होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक दाल ऐसी भी है जिसे मांसाहारी यानी नॉन वेज की कैटेगरी में रखा जाता है? यह सुनने में भले ही बहुत अजीब और अटपटा लगे लेकिन सच्चाई यही है। यहां हम जिस दाल की बात कर रहे हैं, वो है 'मसूर की दाल'। जी हां, हिन्दू धर्म में इसे मांसाहारी भोजन में शामिल किया जाता है। ब्राह्मण और साधु संत मसूर की दाल को अपने भोजन में शामिल करने से भी परहेज करते हैं। तो आइए जानते हैं कि इसके पीछे का कारण क्या है।

मसूर की दाल को क्यों माना जाता है मांसाहारी

हिंदू धर्म में मसूर की दाल को मांसाहारी भोजन की श्रेणी में शामिल किया जाता है। इसके पीछे कई धार्मिक कारण बताए जाते हैं। कुछ धार्मिक मान्यताओं के अनुसार समुंद्र मंथन के समय जब भगवान विष्णु ने स्वरभानु नामक दैत्य का मस्तक काटा तो वो मरा नहीं बल्कि उसका सिर और धड़ अलग हो गए। सिर 'राहु' कहलाया तो वहीं धड़ 'केतु' के नाम से जाना गया। कहते हैं मस्तक कटने के दौरान राक्षस के शरीर से जो रक्त गिरा, उसी से मसूर की लाल दाल उत्पन हुई। इसके अलावा कुछ धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दिव्य गौ कामधेनु के रक्त से मसूर दाल की उत्पत्ति मानी जाती है। इसी के चलते धर्म से जुड़े हुए कई लोग मसूर दाल को अपने भोजन में शामिल नहीं करते हैं।

धार्मिक करणों से परे ये हो सकती हैं वजह

धार्मिक मान्यताओं के परे देखें तो मसूर की दाल को नॉन वेज की कैटेगरी में शामिल करने की कुछ और वजह भी हो सकती हैं। दरअसल मसूर की दाल में प्रोटीन भरपूर मात्रा में पाया जाता है, ऐसे में इसकी तुलना अक्सर नॉन वेज से की जाती है। इसके अलावा आयुर्वेद के अनुसार मसूर की दाल में तामसिक गुण ज्यादा होता है। इसे खाने से कामेच्छा, क्रोध, उग्रता और सुस्ती जैसे चीजों को बढ़ावा मिलता है, इसलिए भी साधु संत या धार्मिक मार्ग पर चलने वाले लोग इसे अपने भोजन में शामिल नहीं करते हैं।

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