Hindi Diwas Poem: हिंदी दिवस के मौके पर बोलें ये शानदार कविताएं, तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठेगा मंच
- हिंदी दिवस के मौके पर कई कार्यालयों, स्कूलों और कॉलेजों में कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। अगर आप भी किसी प्रोग्राम में बोलने के लिए हिंदी पर एक अच्छी कविता खोज रहे हैं तो हम आपके लिए आज कुछ बेहतरीन चुनिंदा कविताएं लेकर आए हैं।
14 सितंबर के दिन पूरे देशभर में हिंदी दिवस धूमधाम से मनाया जाता है। इसी दिन वर्ष 1949 में संविधान सभा द्वारा हिंदी भाषा को राजभाषा का दर्जा दिया गया था। इस महत्वपूर्ण पल की अहमियत को मद्देनजर रखते हुए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के सुझाव पर साल 1953 से पूरे भारत में 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। भारत में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा हिंदी को प्रोत्साहित करने के लिए इस दिन को बड़े ही शानदार तरीके से मनाया जाता है। देश भर के स्कूलों और कॉलेजों में हिंदी भाषा में कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। अगर आप भी हिंदी दिवस पर बोलने के लिए कोई कविता ढूंढ रहे हैं तो आज हम आपके लिए कुछ शानदार कविताएं लेकर आए हैं।
1) माँ भारती के भाल का शृंगार है हिंदी
हिंदोस्ताँ के बाग़ की बहार है हिंदी
घुट्टी के साथ घोल के माँ ने पिलाई थी
स्वर फूट पड़ रहा, वही मल्हार है हिंदी
तुलसी, कबीर, सूर औ' रसखान के लिए
ब्रह्मा के कमंडल से बही धार है हिंदी
सिद्धांतों की बात से न होयगा भला
अपनाएँगे न रोज़ के व्यवहार में हिंदी
कश्ती फँसेगी जब कभी तूफ़ानी भँवर में
उस दिन करेगी पार, वो पतवार है हिंदी
माना कि रख दिया है संविधान में मगर
पन्नों के बीच आज तार-तार है हिंदी
सुन कर के तेरी आह 'व्योम' थरथरा रहा
वक्त आने पर बन जाएगी तलवार ये हिंदी
-डॉ जगदीश व्योम
2) अभिनंदन अपनी भाषा का
करते हैं तन-मन से वंदन, जन-गण-मन की अभिलाषा का
अभिनंदन अपनी संस्कृति का, आराधन अपनी भाषा का।
यह अपनी शक्ति सर्जना के माथे की है चंदन रोली
माँ के आँचल की छाया में हमने जो सीखी है बोली
यह अपनी बँधी हुई अंजुरी ये अपने गंधित शब्द सुमन
यह पूजन अपनी संस्कृति का यह अर्चन अपनी भाषा का।
अपने रत्नाकर के रहते किसकी धारा के बीच बहें
हम इतने निर्धन नहीं कि वाणी से औरों के ऋणी रहें
इसमें प्रतिबिंबित है अतीत आकार ले रहा वर्तमान
यह दर्शन अपनी संस्कृति का यह दर्पण अपनी भाषा का।
यह ऊँचाई है तुलसी की यह सूर-सिंधु की गहराई
टंकार चंद वरदाई की यह विद्यापति की पुरवाई
जयशंकर की जयकार निराला का यह अपराजेय ओज
यह गर्जन अपनी संस्कृति का यह गुंजन अपनी भाषा का।
– सोम ठाकुर
3) हिंदी हमारी आन बान शान
हिंदी हमारी आन है, हिंदी हमारी शान है,
हिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है,
हिंदी हमारी वर्तनी, हिंदी हमारा व्याकरण,
हिंदी हमारी संस्कृति, हिंदी हमारा आचरण,
हिंदी हमारी वेदना, हिंदी हमारा गान है,
हिंदी हमारी आत्मा है, भावना का साज़ है,
हिंदी हमारे देश की हर तोतली आवाज़ है,
हिंदी हमारी अस्मिता, हिंदी हमारा मान है,
हिंदी निराला, प्रेमचंद की लेखनी का गान है,
हिंदी में बच्चन, पंत, दिनकर का मधुर संगीत है,
हिंदी में तुलसी, सूर, मीरा जायसी की तान है,
जब तक गगन में चांद, सूरज की लगी बिंदी रहे,
तब तक वतन की राष्ट्र भाषा ये अमर हिंदी रहे,
हिंदी हमारा शब्द, स्वर व्यंजन अमिट पहचान है,
हिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है।
– अंकित शुक्ला
4) हैं ढेर सारी बोलियां
भाषाओं की हमजोलियां
फिर भी सभी के बीच
हिंदी का अलग ही ढंग है
इसका अलग ही रंग है।
मीठी है ये कितनी जबां
इस पर सरस्वती मेहरबां
कविता-कथा-आलोचना
हर क्षेत्र में इसका समां;
सब रंक – राजा बोलते
बातों में बातें तोलते
महफिल में भर जाती खनक
हर सिम्त उठती तरंग है
इसका अलग ही रंग है।
इसमें भरा अपनत्व है
भारतीयता का सत्व है
इसके बिना तो संस्कृति
औ सभ्यता निस्सत्व है
इसमें पुलक आतिथ्य की
इसमें हुलस मातृत्व की;
मिलती है खुल के इस तरह
जिस तरह मिलती उमंग है
इसका अलग ही रंग है।
इस बोली में मिलती है लोरियां
इस भाषा में झरती निबोरियां
इस बोली में कृष्ण को छेड़ती
गोकुल – बरसाने की छोरियां;
कहीं पाठ चलता अखंड है
कहीं भक्तिमय रस रंग है
कहीं चल रहा सत्संग है
इसका अलग ही रंग है।
इसका अलग ही ढंग है।
- डॉ. ओम निश्चल
5) मेरी भाषा में तोते भी राम-राम जब कहते हैं।
मेरे रोम-रोम से मानो सुधा स्रोत तब बहते हैं।
सब कुछ छूट जाय मैं अपनी भाषा कभी न छोडूँगा।
वह मेरी माता है उससे नाता कैसे तोडूंगा।
कभी अकेला भी हूँगा मैं तो भी सोच न लाऊंगा।
अपनी भाषा में हिन्दी के गीत वहां पर गाऊँगा।
मुझे एक संगिनी वहां पर अनायास मिल जायेगी।
मेरे साथ प्रतिध्वनि देगी, हृदय कमल खिल जायेगी।
- मैथिलीशरण गुप्त
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