सिमडेगा के पहाड़ों में बसे 1023 घरों को 24 घंटे रोशन कर रहे सूर्य देव
simdega district news: झारखंड के सिमडेगा जिले के सुदूरवर्ती गांवों के 1023 घरों को 24 घंटे निर्बाध बिजली मिल रही है। गांव के लोगों को इसके लिए हर माह महज 100 रुपए खर्च करना पड़ता है।
झारखंड के सिमडेगा जिले के कुरडेग प्रखंड के सुदूरवर्ती गांव के 1023 घरों को 24 घंटे निर्बाध बिजली मिल रही है। यह कमाल यहां लगाए माइक्रो सोलर प्लांट की वजह से हुआ है। गांव के लोगों को हर माह महज 100 रुपए पर सौर ऊर्जा की बिजली मिल रही है। इस माइक्रो सोलर ग्रिड के रखरखाव की जिम्मेदारी ग्रामीण ही संभाल रहे हैं। इसके संचालन के लिए प्रत्येक गांवों में एक सौर ऊर्जा समिति का गठन किया गया है। समिति में कुल 15 सदस्य हैं। सभी समितियों को अलग-अलग नाम दिया गया है। समिति हर परिवार से 100 रुपये वसूलती है। यह राशि समिति के बैंक खाते में जमा होती है। ज्यादा बिजली खर्च करने वाले परिवार को अधिकतम 150 से 180 रुपये तक जमा करना पड़ता है।
सौर ऊर्जा समिति में महिलाओं को प्राथमिकता
गांव में बनी 15 सदस्यों वाली सौर ऊर्जा समिति में महिलाओं को प्राथमिकता दी गई है। समिति में ज्यादातर सदस्य महिलाएं हैं। समिति में अध्यक्ष, सचिव और कोषाध्यक्ष का सर्वसम्मति से चयन किया गया है। इनके नाम से बैंक में संयुक्त खाता है।
17 माइक्रो सोलर ग्रिड स्थापित कर 17 गांवों को जोड़ा
ग्रामीणों को ढिबरी युग से कृत्रिम रोशनी की ओर ले जाने का काम बहुउद्देश्यीय संस्था टीआरआईएफ ने किया है। संस्था के अधिकारियों ने टाटा कैपिटल के साथ मिलकर गांव में माइक्रो सोलर ग्रिड स्थापित करने की योजना बनाई। इसके बाद जमीन चिह्नित कर 17 माइक्रो सोलर ग्रिड स्थापित कर 17 गांवों को जोड़ा। अब माइक्रो सोलर ग्रिड से इन गांवों के 1023 घर 24 घंटे जगमग हो रहे हैं।
झारखंड-छत्तीसगढ़ की सीमा पर बसे गांवों को मिल रहा लाभ
कुरडेग प्रखंड का मुड़ाअंबा, डबनीपानी, झिमरी, सराइपानी, बड़ाइक टोली, उरूमकेला, गिरांग, राउतटोली, डोंगापानी, चेंगझरिया, टुकुपानी, भलमंडा, टांगरटोली, बिजाखामन, झरैन, टांगरटोली, भिजरीबारी, डाकुटोली, परतापुर गांव झारखंड और छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित गांवों को फायदा मिल रहा है। सभी गांव घने जंगलों और पहाड़ों के बीच बसे हैं।
दुर्गम पहाड़ों में सोलर प्लांट बना रोल मॉडल
कुरडेग में स्थापित माइक्रो सोलर ऊर्जा प्लांट रोल मॉडल बन चुका है। यहां स्थापित माइक्रो सोलर ऊर्जा प्लांट के सफलता की चर्चा अन्य राज्यों में भी हो रही है। अति दुर्गम और पहाड़ों के बीच स्थापित इस सोलर प्लांट को देखने कैंब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर समेत अन्य राज्यों के विशेषज्ञों की टीम भी गांव पहुंचकर प्लांट का अवलोकन कर चुकी है।
क्या कहते हैं संस्था के प्रबंधक
टीआरआई संस्था के प्रबंधक सूरज कुमार भगत ने बताया कि ये गांव दुर्गम इलाके में बसे हैं। यहां के लोग अंधेरे में ढिबरी के सहारे ही रात गुजारते थे। इन गांवों में जाने के लिए सड़क भी नहीं है। ऐसे में घर-घर बिजली पहुंचाना चुनौतीपूर्ण था क्योंकि पहाड़ों पर पोल गाड़ना मुश्किल होता है। अंतत: इस समस्या के निदान के लिए सोलर प्लांट की स्थापना का निर्णय लिया गया। यह आज कारगर साबित हो रहा है। गांव के लोग रोशनी आने से खुश हैं।
रोशनी में पढ़ते हैं नौनिहाल
ग्रामीण सोनू साय, रोशन टेटे, मधुसूदन बड़ाइक ने बताया कि सोलर प्लांट से बिजली मिलने से कई तरह की परेशानी दूर हुई है। अब खतरनाथ जानवरों और विषैले जीवों का सामना नहीं करना पड़ता। 24 घंटे बिजली रहने से बच्चों को पढ़ाई में भी परेशानी नहीं होती। जब बिजली नहीं थी, तब मोबाइल चार्ज करने के लिए पांच किमी दूर प्रखंड मुख्यालय जाना पड़ता था। इससे समय की बर्बादी के साथ-साथ पैसे भी खर्च होते थे।
खुद से ज्यादा सोलर प्लांट की सुरक्षा
समिति से जुड़ी सनियारो देवी ने बताया कि वे लोग स्वयं ही सोलर प्लांट का संचालन करते हैं। देखरेख करने का जिम्मा गांव के लोगों को ही है। ग्रामीण इसका सुख भोग रहे हैं, इसलिए खुद से ज्यादा सोलर प्लांट की सुरक्षा करते हैं। पहले लोग शाम होते ही घरों में दुबक जाते थे, जब से रोशनी आई है, बच्चे देर तक पढ़ते हैं। रोशनी में बैठकर लोग एक-दूसरे से बातें करते हैं।